एमपी और राजस्थान के बाद सीएम बघेल नहीं ले रहे छत्तीसगढ़ में कोई चांस, 50 कांग्रेसी विधायकों को बांटी पोस्ट
प्रदेश के भाजपा नेता इसे कांग्रेस की राजस्थान और उससे पहले मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के गिरने से उत्पन्न भय का परिणाम बात रहे हैं.
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रायपुर.
पृथ्वीराज सिंह
मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार का जाना, राजस्थान की कांग्रेस सरकार में बगावत के बाद छत्तीसगढ़ के सत्ताधारी दल के विधायकों में बढ़ते असंतोष की चर्चाओं के बीच भूपेश बघेल ने पिछले एक सप्ताह में करीब 50 विधायकों और अलग-अलग गुटों के नेताओं को सरकार का हिस्सा बनाया है. इन नेताओं को संसदीय सचिव, प्रदेश के बोर्ड, आयोग और निगमों में अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पदों से नवाज़ा गया है.
हालांकि पार्टी के प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये नियुक्तियां एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हैं और सत्ता में आने के बाद सभी सरकारें करती हैं. जिन नेताओं ने पार्टी के लिए काम किया और चुनाव जीता उनको सत्ता का भागीदार बनने का भी अधिकार है. इसे किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए. भाजपा नेताओं को 15 साल सत्ता में रहने के बाद विपक्ष में रहना अब रास नही आ रहा है, इसलिये वे ओछी बातें कर रहें हैं. भूपेश बघेल सरकार मजबूती से काम कर रही है और उसे किसी प्रकार का खतरा नहीं है, राज्य के सभी नेताओं का पूरा सहयोग मिल रहा है.’
वहीं भाजपा के एक अन्य विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने दो दिन पहले ही चटकारे लेते हुए ट्वीट किया, ‘सचिन पायलट जी को धन्यवाद. सारे घोड़े अस्तबल में ही रहें इसके लिए छ्त्तीसगढ़ सरकार आनन-फानन में संसदीय सचिव नियुक्त करने जा रही है जिसके विरोध में वर्तमान विधिमंत्री न्यायालय में गए थे.’
कांग्रेस पार्टी के नेता इस मामले पर खुलकर नहीं बोल रहे हैं लेकिन दबी जुबान से यह जरूर कह रहे कि मुख्यमंत्री ने समय रहते पार्टी और विधायकों में पनप रहे असंतोष को शांत करने का अच्छा प्रयास किया है. वहीं प्रदेश के भाजपा नेता इसे कांग्रेस की राजस्थान और उससे पहले मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के गिरने से उत्पन्न भय का परिणाम बात रहे हैं.
बघेल सरकार के निर्णय पर दिप्रिंट से बात करते हुए भाजपा के पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने सीधे कटाक्ष करते हुए कहा, ‘पिछले एक सप्ताह में सरकार ने जिस तरह से अपने विधायकों को राजनीतिक नियुक्तियां दीं उससे यह साफ है कि ‘बारिश राजस्थान में हुई और छाता छ्त्तीसगढ़ में खुला’. भूपेश बघेल जिस तरह पिछले 18 माह से सरकार चला रहे हैं उससे सत्तारूढ़ दल के विधायकों में काफी असंतोष बढ़ रहा है. ये 50 नियुक्तियां इसी असंतोष को रोकने का प्रयास है.’
दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के नेता यह मानते हैं कि ये नियुक्तियां असामान्य हैं विशेषकर कोरोनाकाल की जरूरतों को देखते हुए लेकिन उनका यह भी कहना है कि लगातार बढ़ रहे दबाव के चलते विधायकों को खुश रखना भी मुख्यमंत्री की मजबूरी थी.
पार्टी के एक नेता जिनको नियुक्तियों में नाम आने उम्मीद थी अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं कि ये नियुक्तियां विधायकों में बढ़ते असंतोष और संगठन के गुटीय संघर्ष को संतुलित करने का प्रयास है. हालांकि यह सबको पता है कि इस असंतोष से छ्त्तीसगढ़ सरकार को बहुत फर्क नहीं पड़ रहा था लेकिन पहले मध्य प्रदेश, फिर राजस्थान और अब महाराष्ट्र में भी बातों के बीच एक डर तो बन ही गया था.’
इस नेता का कहना है, ‘नियुक्तियों से साफ जाहिर है कि विधायकों के अलावा बड़े नेताओं के लोगों को एडजस्ट किया गया है. ये सभी नाम बड़े नेता मुख्यमंत्री के अलावा स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव, विधासभा स्पीकर चरणदास महंत, मोतीलाल वोरा और गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के समर्थक हैं. सबको पता है कि ये बड़े नेता भूपेश बघेल के विरोधी माने जाते हैं और 2018 में मुख्यमंत्री बनने की होड़ में थे.’
कांग्रेस के एक दूसरे नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि ये नियुक्तियां पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के विधानसभा क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव के देखते हुए भी की गई हैं ताकि पार्टी के सभी धड़े चुनाव एकजुट होकर लड़ें. इस नेता के अनुसार जोगी से सदा छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले बघेल के लिए यह व्यक्तिगत साख की भी लड़ाई है.
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व मीडिया प्रभारी और प्रवक्ता राजेश बिस्सा का कहना है कि ‘मुख्यमंत्री ने उन सभी नेताओं को सम्मानित किया है जिन्होंने पार्टी के लिए काफी मेहनत की है. मेरे विश्लेषण के अनुसार विधायक हो या अन्य नाम सभी नेताओं ने 2018 विधानसभा में या तो जीतकर आये या फिर पार्टी की जीत में बड़ा योगदान दिया है.’
ज्ञात हो कि भूपेश बघेल सरकार ने पिछले एक सप्ताह में पहले 15 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया है. इसके बाद गुरुवार को 32 दूसरे नामों की सूची जारी कर राज्य के बोर्ड, निगम, आयोग और सहकारी संस्थाओं में अध्यक्ष, उपाध्याय और सदस्य बनाया था. मंत्रिमंडल को मिलाकर बघेल ने सत्तारूढ़ दल के 50 से भी अधिक विधायकों को पिछले कुछ महीनों में सरकार का हिस्सा बना दिया है.
संसदीय सचिव का मामला है कोर्ट में लंबित
गौरतलब है कि 2017 में तत्कालीन भाजपा की रमन सिंह सरकार द्वारा 11 विधायकों को संसदीय सचिवों की नियुक्तियों का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. हालांकि इस मामले में सुनवाई करते हुए छात्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने वर्तमान विधिमंत्री मोहम्मद अकबर और एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को सुनवाई के मान्य कर लिया था. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
इसी सबंध में चंद्राकर ने एक दूसरे ट्वीट के माध्यम से बघेल सरकार से मांग की है कि उसे इन नियुक्तियों से संबंधित न्यायालय के आदेश को स्पष्ट करना चाहिए.
कोरोनाकाल काल में मुख्यमंत्री अपने ही आश्वासन से पलटे: भाजपा
भाजपा ने इन नियुक्तियों के खिलाफ आरोप लगाया है कि कोरोना काल में मितव्ययता की बात करने वाली भूपेश बघेल सरकार का यह कदम अपने ही आश्वासनों को अंगूठा दिखाने जैसा है.
मूणत कहतें हैं, कोरोनाकाल से उत्पन्न असामान्य परिस्थितियों को देखते हुए मुख्यमंत्री ने स्वयं सरकारी खर्चे में 30 प्रतिशत और कर्मचारियों के वेतन में कटौती की घोषणा की थी.
सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री का कहना था कि इन कठिन परिस्थितियों में यदि राज्य के हर व्यक्ति की कोविड-19 जांच की जाए तो एक करोड़ प्रतिदिन का खर्चा आएगा. इसके अलावा सरकार का कहना है कि विकास के कार्यों के लिए फंड नहीं है. अब इन नियुक्तियों से फंड बढ़ेगा या फिर खर्चे में कमी आएगी. सरकार को सफाई देनी चाहिए.
राज्य के 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 69 विधायक हैं और भाजपा के 14. इसके अलावा 4 विधायक अजीत जोगी कांग्रेस के पास हैं. तीन निर्दलीय हैं.
( साभार : दि प्रिंट )