एडीजी कल्लूरी फिर बने मुसीबत, सरकार को देना पडे़गा मुआवजा
• राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का निर्देश, झूठे आरोप पर आया फैसला
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रायपुर.
बस्तर के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक ( आईजी ) एसआरपी कल्लूरी ने राज्य सरकार के लिए मुसीबत खडी़ कर दी है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ( एनएचआरसी ) ने कल्लूरी के समय बस्तर में हुई ज्यादतियों पर छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ फैसला दिया है. झूठे आरोपों पर उसे पीडि़तों को मुआवजा देने का निर्देश आयोग ने दिया है.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ झूठे मुक़दमे दर्ज करने के लिए एक-एक लाख रूपए मुआवजा देने का निर्देश छत्तीसगढ़ सरकार को दिया है.
कब का और क्या है मामला
5 नवंबर 2016 को छत्तीसगढ़ पुलिस ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं, आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत जुर्म दर्ज किया था.
मामले से जुडे़ संजय पराते बताते हैं कि सुकमा जिले के नामा गांव के शामनाथ बघेल नामक किसी व्यक्ति की हत्या के आरोप में यह अपराध दर्ज हुआ था.
बताया जाता है कि यह मामला शामनाथ की विधवा विमला बघेल की लिखित शिकायत पर दर्ज किया गया था.
बहरहाल, इसके प्रमाण हैं कि अपनी शिकायत में उसने प्रो. नंदिनी सुंदर, सुश्री अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय पराते, सुश्री मंजू और मंगलाराम कर्मा में से किसी का भी नाम नहीं लिया था.
इसके बावजूद बस्तर के तत्कालीन आईजी ( वर्तमान में एडीजी के पद पर छत्तीसगढ़ में ही पदस्थ हैं ) कल्लूरी के निर्देश पर यह आरोपी बनाए गए थे.
15 नवंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इनकी गिरफ़्तारी पर रोक लगाते हुए इन्हें संरक्षण दिया था. चूंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले की जांच करने या इसके खात्मे के लिए कोई कदम नहीं उठाया, इस कारण पीडि़त पक्ष ने वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
एफआईआर से हटाया था नाम
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मामले की जांच की. हत्या के मामले में इनका कोई हाथ न पाए जाने पर फरवरी 2019 में अपना आरोप वापस लेते हुए एफआईआर से इनका नाम हटा लिया था.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले को अपने संज्ञान में लिया था. बस्तर पुलिस द्वारा इनके पुतले जलाए गए थे. यह आयोग के संज्ञान में था. “अबकी बार बस्तर में घुसने पर पत्थरों से मारे जाने” की तत्कालीन आईजी कल्लूरी की धमकी को भी नोट किया था.
उल्लेखनीय है कि मानवाधिकार हनन के इस मामले में आयोग द्वारा समन किए जाने के बावजूद कल्लूरी आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए थे.
छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा इनके खिलाफ कोई मामला न होने की स्वीकृति को देखते हुए फरवरी 2020 में आयोग ने नोट किया था कि :
“हमारी दृढ़ राय है कि पुलिस द्वारा इन लोगों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज किए जाने के कारण वे निश्चित ही मानसिक रूप से परेशान और प्रताड़ित हुए हैं और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है. छत्तीसगढ़ सरकार को इसका मुआवजा देना चाहिए. अतः मुख्य सचिव के जरिए छत्तीसगढ़ सरकार को हम सिफारिश करते हैं और निर्देश देते हैं कि प्रो. नंदिनी सुंदर, सुश्री अर्चना प्रसाद, श्री विनीत तिवारी, श्री संजय पराते, सुश्री मंजू और श्री मंगला राम कर्मा को, जिनके मानवाधिकारों का छत्तीसगढ़ पुलिस ने बुरी तरह उल्लंघन किया है, को एक-एक लाख रूपए का मुआवजा दिया जाए.”
तेलंगाना के अधिवक्ताओं को भी मिलेगा
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ऐसा ही मुआवजा देने का निर्देश तेलंगाना के अधिवक्ताओं के एक तथ्यान्वेषी दल के लिए भी दिया है, जिन्हें लगभग सात माह सुकमा जेल में बिताने के बाद सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था.
सभी पक्षकारों ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश का स्वागत किया है. उन्होंने आशा जताई है कि “हमें जो मानसिक प्रताड़ना पहुंची है और हमारी प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुंची है, उसकी भरपाई के लिए छत्तीसगढ़ सरकार तुरंत कार्यवाही करेगी”.
उन्होंने यह उम्मीद भी जताई है कि “हम लोगों पर झूठे आरोप पत्र दाखिल करने वाले जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों, ख़ास तौर से तत्कालीन बस्तर आईजी कल्लूरी के खिलाफ जांच की जाएगी और उन पर मुकदमा चलाया जाएगा”.
याद आया सलवा जुडूम
आईपीएस एसआरपी कल्लूरी के नेतृत्व में चलाये गए सलवा जुडूम अभियान और उनके मातहत काम कर रहे विशेष पुलिस अधिकारियों ( एसपीओ ) को वर्ष 2011 में ताड़मेटला, तिमापुरम और मोरपल्ली गांवों में आगजनी करने, स्वामी अग्निवेश पर जानलेवा हमले का सीबीआइ द्वारा दोषी पाए गया था.
दोषी ठहराए जाने के तुरंत बाद ही इन लोगों के खिलाफ ये झूठे आरोप मढ़े गए थे. यह दुखद है कि वर्ष 2008 की मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों और सुप्रीम कोर्ट के लगातार निर्देशों के बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार ने हजारों ग्रामीणों को कोई मुआवजा नहीं दिया है.
मुआवजे की बांट जोह रहे यह वही ग्रामीण हैं जिनके घरों को सलवा जुडूम अभियान में जलाया गया है. न ही बलात्कार और हत्याओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर आज तक कोई मुकदमा ही चलाया गया है.
पराते ने छत्तीसगढ़ के सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामलों को उठाने और आयोग के इस आदेश से अवगत कराने के लिए सभी की तरफ से पीयूसीएल के प्रति आभार प्रकट किया है.
यह बहुत ही निराशाजनक है कि पीयूसीएल की सचिव और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के ऐसे सभी मामलों को खुद उठाया है, आज झूठे आरोपों में गिरफ्तार हैं. हमें विश्वास है कि सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को, जिन्हें गलत टीके से आरोपित किया गया है, न्याय मिलेगा.