ये देश बिकाऊ नहीं है . . .
• 9 अगस्त को मजदूर-किसानों का देशव्यापी आंदोलन
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रायपुर.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन के आह्वान पर 9 अगस्त को छत्तीसगढ़ में किसानों और आदिवासियों के 25 संगठन “ये देश बिकाऊ नहीं है और कॉर्पोरेटों, किसानी छोड़ो” के थीम नारे के साथ आंदोलन के मैदान में होंगे.
इसी दिन केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के झंडे तले संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूर भी देशव्यापी आंदोलन करेंगे. किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन से जुड़े विजय भाई और छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने यह जानकारी दी.
एक बयान में उन्होंने बताया कि यह आंदोलन मुख्यतः जिन मांगों पर केंद्रित है, उनमें आगामी छह माह तक हर व्यक्ति को हर माह 10 किलो अनाज मुफ्त देने और आयकर के दायरे के बाहर के हर परिवार को हर माह 7500 रुपये नगद सहायता राशि देने की मांग प्रमुख है.
इसके अलावा मनरेगा में मजदूरों को 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने और शहरी गरीबों के लिए भी रोजगार गारंटी योजना चलाने, श्रम कानूनों, आवश्यक वस्तुओं, कृषि व्यापार और बिजली कानून में हाल ही में अध्यादशों और प्रशासकीय आदेशों के जरिये किये गए संशोधनों को वापस लेने की मांग दोहराई जाएगी .
कोयला, रेल, रक्षा, बैंक और बीमा जैसे सार्वजनिक उद्योगों के निजीकरण पर रोक लगाने, किसानों की फसल का समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना तय करने, उन्हें कर्जमुक्त करने, किसानों को आधे दाम पर डीजल देने, प्राकृतिक आपदा और लॉक डाऊन के कारण खेती-किसानी को हुए नुकसान की भरपाई करने की मांग फिर से उठाई जाएगी.
वनाधिकार कानून के तहत आदिवासियों को वन भूमि के व्यक्तिगत और सामुदायिक पट्टे देने तथा पेसा और 5वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का फैसला करने का अधिकार स्थानीय समुदायों को दिए जाने की मांगें शामिल हैं.
अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों में किये गए परिवर्तनों को किसान विरोधी बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे फसल के दाम घट जाएंगे, खेती की लागत महंगी होगी और बीज और खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी हस्तक्षेप की संभावना भी समाप्त हो जाएगी.
वन नेशन , वन एमएसपी चाहिए
ये परिवर्तन पूरी तरह कॉरपोरेट सेक्टर को बढ़ावा देते हैं. उनके द्वारा खाद्यान्न आपूर्ति पर नियंत्रण से जमाखोरी व कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा कि किसानों को “वन नेशन, वन एमएसपी” चाहिए, न कि वन मार्केट!
किसान नेताओं ने कहा कि कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में केंद्र की भाजपा सरकार आम जनता विशेषकर मजदूरों, किसानों और आदिवासियों को राहत पहुंचाने में असफल साबित हुई है.
वह उनके अधिकारों पर हमले कर रही है. आत्मनिर्भरता के नाम पर देश के प्राकृतिक संसाधनों और धरोहरों को चंद कारपोरेट घरानों को बेच रही है. इसलिए देश के गरीबों को आर्थिक राहत देने और उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर किसानों और आदिवासियों के संगठन 9 अगस्त को गांवों और मजदूर बस्तियों में देशव्यापी विरोध आंदोलन आयोजित कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में इस आंदोलन में शामिल होने वाले संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन प्रमुख हैं.
दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), किसान महापंचायत, आंचलिक किसान सभा, सरिया, परलकोट किसान संघ शामिल होंगे.
इसी तरह अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी आदि संगठन प्रमुख हैं. 9 अगस्त को ये संगठन फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने-अपने क्षेत्रों में सत्याग्रह, धरना, प्रदर्शन, सभाएं आदि आयोजित करेंगे.