मई-जून में अजब संयोग बनाएंगे चार ग्रह
ज्योतिषशास्त्र में कुल 9 ग्रह बताए गए हैं जिनका प्रभाव हमारे जीवन और समाज पर होता है। इनमें 2 ग्रह राहु केतु हमेशा वक्री यानी उलटी चाल से चलते हैं और सूर्य एवं चंद्रमा हमेशा सीधी चाल से चलते हैं। बाकी 5 ग्रह व्रकी और मार्गी होते रहते हैं।
इस वर्ष मई जून में ग्रहों का अजब संयोग बना है जब राहु केतु के अलाव चार और ग्रह वक्री यानी उलटी चाल से चलेंगें इसे ग्रहों की प्रतिगामी चाल भी कहते हैं।
इस बीच काल सर्प योग भी प्रभावी रहेगा। ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहों की ऐसी स्थिति शुभ नहीं होती है। पूरी दुनिया इन दिनों एक गंभीर संकट का सामना कर रही है ऐसे में 6 ग्रहों का एक साथ उलटी चाल में चलना क्या गुल खिलाएंगा जानिए ऐस्टॉलजर नीरज धनखड़ से…
11 मई को शनि अपनी राशि मकर में वक्री हो जाएंगे। इसके बाद 13 मई को शुक्र और फिर 14 मई को बृहस्पति भी वक्री हो रहे हैं। इसके अलावा, 18 जून को बुध उलटी चाल से चलने लगेंगे।
गौरतलब है कि 18 जून से 25 जून के बीच ये चारों ग्रह एक ही समय पर प्रतिगामी यानी वक्र रहेंगे। ग्रहों की यह स्थिति 15 जुलाई तक कालपुरुष कुंडली में बने काल सर्प दोष के साथ परस्पर व्याप्त होती है जिसका परिणाम चिंताजनक हो सकता है।
शनि के परिणाम –
प्रतिगामी शनि उन कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए शक्ति प्रदान करते है जिन्हें अतीत में अधूरा छोड़ दिया गया था।
शनि भारत की कुंडली में नौवें और दसवें भाव के स्वामी हैं, अर्थात योगकारक ग्रह हैं। शनि 11 मई से 29 सितंबर तक मकर राशि में वक्री रहेंगे जो भारत की कुंडली के नौवें भाव में है।
शनि का प्रतिगमन जिम्मेदारियों और काम के बोझ के साथ एक कठिन अवधि को दर्शाता है। लेकिन यह लोगों को अपने कौशल को अधिक निखारने और यथार्थवादी एवं व्यवहारिक बनने में भी मदद करेगा।
कोरोनावायरस के कारण आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए नए कानून और नीतियां बनाई जा सकती हैं। न्यायिक सुधार और न्यायिक ढांचे का पुनर्गठन भी हो सकता है।
शुक्र के परिणाम –
शुक्र विलासिता, आराम, सौंदर्य और खुशी की भावना का ग्रह है। भारत की कुंडली में वह पहले और छठे भाव के स्वामी हैं। शुक्र 13 मई से 25 जून तक वृष राशि में वक्री रहेंगे जो भारत की कुंडली के पहले भाव में स्थित हैं।
इस अवधि के दौरान लोगों के सामान्य दृष्टिकोण में सुधार होगा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की समीक्षा की जाएगी। यात्रा और आतिथ्य उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन मिल सकता है। साथ ही भारत के प्रतिष्ठा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा मिलेगा।
बृहस्पति के परिणाम –
बृहस्पति ज्ञान और बुद्धिमत्ता के ग्रह हैं। प्रतिगामी गति में उनके शुभ परिणाम देने की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
बृहस्पति भारत की कुंडली में आठवें और ग्यारहवें भाव के स्वामी है और 14 मई से 13 सितंबर तक मकर राशि में वक्री रहेंगे जो भारत की कुंडली के नौवें घर में स्थित हैं।
इस समय के दौरान देश में उन कार्यों और परियोजनाओं को फिर से शुरू करने की क्षमता बढ़ेगी जिन्हें पहले अधूरा छोड़ दिया गया था।
यह वह समय है जब बीमार कंपनियों को पुनर्जीवित किया जा सकता है और सरकार द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज भी प्रदान किया जा सकता है। भारत के अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों को मजबूती मिल सकती है।
इस समय जन आक्रोश और अशांति की आशंका रहेगी। मौजूदा कानूनों और नीतियों के खिलाफ धार्मिक समुदायों में भी असंतोष पैदा हो सकती है।
बुध के परिणाम –
बुध व्यापार, संचार व्यवस्था एवं नयी सोच का प्रतीक है। भारत की कुंडली में, बुध दूसरे और पांचवें भाव के मालिक हैं।
यह 18 जून से 12 जुलाई के बीच वृषभ राशि में वक्री रहेंगे, जो भारत की कुंडली के पहले भाव में स्थित है। इस समय के दौरान कोरोनो वायरस के प्रभावों से निपटने के लिए नए विचार और समाधान सामने आ सकते हैं।
पड़ोसियों देशों के साथ संवाद में व्यवधान आ सकता है। यह भी गौरतलब है कि 18 जून से 25 जून के बीच चार ग्रह – शनि, बृहस्पति, शुक्र और बुध – एक ही समय में प्रतिगामी गति में होंगे जो भ्रम और अराजकता पैदा कर सकते हैं।
सौर मंडल के सभी ग्रह पृथ्वी के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। लेकिन सांसारिक दृष्टिकोण से ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी नहीं चल रही है, और सभी ग्रह केंद्र के रूप में पृथ्वी के साथ घूम रहे हैं।
यह सिर्फ एक ऑप्टिकल भ्रम है। इसलिए ग्रह रुकते हुए प्रतीत होते हैं, पीछे की ओर जाते हैं, फिर से रुकते हैं और आगे जाते हैं जिसे डायरेक्ट मोशन कहते हैं।
वैदिक ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार, सूर्य और चंद्रमा हमेशा प्रत्यक्ष गति में होते हैं (अर्थात, वे कभी पीछे नहीं चलते हैं) जबकि राहु और केतु हमेशा प्रतिगामी यानी वक्री होते हैं (अर्थात, वे हमेशा पीछे की ओर बढ़ते हैं)। पांच ग्रह, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि दोनों प्रत्यक्ष और प्रतिगामी गति में चलते हैं।
प्रतिगामी गति के क्या होते हैं प्रभाव?
प्रतिगामी ग्रह अक्सर अप्रत्याशित रूप से अच्छे और बुरे दोनों परिणाम देते हैं। प्रतिगामी गति में ग्रह पृथ्वी के अधिक निकट होते हैं। इसलिए उनका प्रभाव अधिक महसूस होता है।
प्रतिगामी गति में ग्रहों के कारक तत्वों की कमी हो जाती है। ऐसी स्थिति में कुंडली के जिस घर में वक्री ग्रह होते हैं उनके परिणाम समुचित नहीं दे पाते हैं। इसलिए जब ग्रह वक्र हो तब किसी नई नीति या परियोजना को शुरू नहीं करना चाहिए