मनोचिकित्सक को तरसते बाड़मेर के मनोरोगी

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बाड़मेर.

पाकिस्तान की सीमा से सटे राजस्थान के बाड़मेर जिले में सिर्फ एक मनोचिकित्सक कार्यरत है. इसकी भी नियुक्ति महज दो साल पूर्व की बताई जाती है.

चिकित्सा के जानकार बताते हैं कि बाड़मेर के राजकीय अस्पताल में दो साल के पूर्व तक मनोचिकित्सक होता ही नहीं था. तब महज ओपीडी में जांच होती थी.

जांच के बाद गंभीर रूप से मनोचिकित्सा को लेकर बीमार चल रहे मरीजों को सीधे जोधपुर रेफर किया जाता था. अब जबकि बाड़मेर में मेडिकल कॉलेज खुल गया है तब भी मनो रोगियों के लिए चिकित्सा के इंतजाम बेहतर नहीं किए जा सके हैं.

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. ओपी डूडी बताते हैं कि यह आत्महत्या के मामलों में बेहद गंभीर होता है. पिछले एक माह के दौरान आत्महत्या के बढ़ते मामलों में राजस्थान में बाड़मेर का नाम तेजी से आ रहा है.

बाड़मेर जिले में आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. वर्ष 2016 में 134 लोगों ने आत्महत्या की थी. इसके अगले साल यह आंकड़ा थोड़ा सा कम हुआ और 125 तक पहुंच गया.

2018 में इस आंकड़े में जबरदस्त उछाल देखी गई. तब 147 लोगों ने आत्महत्या की थी. लगता है यह साल आत्महत्या के मामले में 2018 को पीछे छोड़ जाएगा. इसी साल 22 जुलाई तक 82 लोगों ने आत्महत्या कर ली है.

बाड़मेर जिले के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो कि आत्महत्या के मामले में प्रदेश स्तर पर बदनाम हैं. इनमें चौहटन का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है. आत्महत्या करने वालों में पुरूषों की संख्या अधिक बताई गई है.

पिछले सात माह में हुए सामूहिक आत्महत्या के मामले में पुलिस आज तक कोई ठोस कारण तक नहीं पहुंची है. उसकी जांच है कि खत्म ही नहीं होती.

मनोचिकित्सक बताते हैं कि जीवन में बढ़ते तनाव के कारण पुरूष ज्यादा आत्महत्या करते हैं. पारिवारिक व आर्थिक कारण इसमें प्रमुख हैं.

उनके अनुसार प्रेम प्रसंग में आत्महत्या करने वालों में देखा गया है कि वह सामाजिक दबाव झेल नहीं पाते हैं. बच्चों के साथ आत्महत्या करने वाली महिलाओं में घरेलू कलह सबसे प्रमुख कारण है.

बहरहाल आत्महत्या के बढ़ते मामलों में कहीं न कहीं मनोचिकित्सा की अनदेखी को एक प्रमुख कारण गिना जा सकता है. मनोचिकित्सा नहीं हो पाने के कारण बाड़मेर जिला खुदकुशी की ओर बढ़ता प्रतीत होता है.

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