जनचर्चा : दुर्ग सीट हारने के क्या होंगे आयाम ?
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वर्ष 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी थी तब राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से प्रदीप गांधी सांसद पद पर निर्वाचित हुए थे.
ये वही प्रदीप गांधी हैं जो कि बाद में लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी द्वारा कुछ एक सदस्यों के साथ बर्खास्त कर दिए गए थे.
बर्खास्तगी का कारण भी भ्रष्टाचार था. इसी भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा गाहे बेगाहे कांग्रेस पर आरोप लगाते रही है.
खैर प्रदीप गांधी की बर्खास्तगी के बाद राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के देवव्रत सिंह ने एकतरफा जीत हासिल की थी.
तब प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह हुआ करते थे. वे तब राजनांदगांव जिले की डोंगरगांव विधानसभा सीट से निर्वाचित होकर आए थे.
उस दौरान मुख्यमंत्री के निर्वाचन जिले में लोकसभा के उपचुनाव में भाजपा की हार से डॉ. रमन सिंह ने तत्काल सीख ली थी.
डॉ. रमन सिंह ने चुनावी नतीजे आने के तत्काल बाद अपनी टीम में बहुत सा रद्दोबदल किया था. कई नए सलाहकार मुख्यमंत्री की टीम से जोड़े गए थे.
इसका क्या कुछ असर हुआ यह लोग अपने अपने तरीके से निकाल सकते हैं लेकिन एक वो दिन था और एक आज का दिन है.
उस समय डॉ. रमन सिंह द्वारा अपनी टीम में किए गए आंशिक फेरबदल के बड़े दूरगामी परिणाम निकले थे. ऐसे परिणाम निकले थे कि डॉ. रमन सिंह ने 2008 व 2013 के विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की थी. 15 साल भाजपा की सरकार यहां बनी रही.
इस बार जनचर्चा इन दिनों लोकसभा चुनाव पर छिड़ी हुई है. लोगों के बीच चर्चा हो रही है कि भाजपा व कांग्रेस में कौन कितनी सीट जीतेगा?
चर्चा का एक बिंदु दुर्ग सीट पर आकर अटक जाता है. क्या नेता, कार्यकर्ता, अधिकारी, व्यापारी, युवा, विद्यार्थी… किसी भी वर्ग से पूछिए तो दस में से आठ लोग दुर्ग सीट को भाजपा के खाते में जाता बता रहे हैं.
क्या वाकई ऐसा होगा? क्या कांग्रेस दुर्ग सीट हार जाएगी? क्या मुख्यमंत्री अपने गृह जिले में कांग्रेस की हार देखते रह जाएंगे?
क्या प्रदेश के गृहमंत्री, संसदीय कार्यमंत्री व लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय मंत्री के गृह जिले में भाजपा कांग्रेस को हरा सकती है? ये चंद सवाल हैं जो कि जनचर्चा में बड़ी प्रमुखता से उभरे हैं.
0 खिसक रहा जनाधार ?
तकरीबन छ: माह पहले विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे. तब कांग्रेस ने 68 सीट जीतकर अपना डंका बजाया था. भाजपा महज 15 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.
लेकिन क्या अभी भी वैसा जनाधार कांग्रेस अथवा उसके मुखिया के पास बना हुआ है? जनचर्चा कहती है कि बड़ी तेजी से जनाधार खसक रहा है.
तो क्या प्रदेश में मोदी लहर कायम है? इस सवाल का जवाब आपको स्वयमेव मिल जाएगा. दरअसल राजनीति के जानकार रणनीतिक चूक बताते हैं.
वे कहते हैं कि सलाहकारों की सलाह ठीक नहीं रही है. दिन प्रतिदिन लोकप्रियता घट रही है. जनचर्चा के मुताबिक ट्यूटर सरकार प्रदेश को मिल गई है.
ऊपर से साहू समाज की नाराजगी कांग्रेस को महंगी पड़ती नजर आ रही है. बताया तो यहां तक जाता है कि पिछले बार के सांसद और वर्तमान प्रत्याशी के बीच जमकर वाद विवाद हुआ है.
जनचर्चा के अनुसार प्रत्याशी चयन में कहीं न कहीं कोई न कोई गफलत हुई है. दुर्ग के संदर्भ में कहा जाता है कि वहां से साहू समाज के व्यक्ति को प्रत्याशी बनाना था लेकिन कांग्रेस ने वह नहीं किया.
अब यदि कांग्रेस दुर्ग सीट हार जाती है तो इसके क्या नतीजे होंगे? इस पर जनचर्चा बताती है कि कांग्रेस के भीतर आंतरिक विरोध बड़ी तेजी से पनपेगा.
प्रदेश की नौकरशाही सरकार को आंख दिखाने लगेगी. मतलब साफ है कि नौकरशाह बेलगाम हो जाएंगे. यह स्थिति कांग्रेस के लिए स्वीकार योग्य नहीं होगी.
तब स्थिति को नियंत्रण में लाने अमूलचूल परिवर्तन प्रदेश में करना पड़ेगा. सलाहकार बदलने पड़ेंगे. नौकरशाही में ऐसे अफसर सामने लाने पड़ेंगे जो कि न केवल ईमानदार हैं बल्कि किसी भी राजनीतिक दल से उनका जुड़ाव रत्तीभर नहीं है.
लेकिन यह सब क्या वाकई होगा? क्या वाकई दुर्ग सीट से कांग्रेस हार रही है? यदि हार रही है तो बात तो ठीक है लेकिन यदि जीत गई तो प्रदेश का मुखिया न केवल ताकतवर होगा बल्कि वन मेन शो केंद्रित राजनीति को बढ़ावा मिलेगा.
और यदि वाकई भाजपा ने दुर्ग लोकसभा सीट से जीत हासिल कर ली तो क्या होगा? जनचर्चा कहती है कि तब भाजपा और उसके मुठ्ठी भर विधायक सरकार पर आक्रमक हो जाएंगे.
वह हर दिन एक नया बखेड़ा सरकार के लिए खड़ा करेंगे. यदि केंद्र में भाजपा की सरकार आ गई तो उसे वहां से जो ऊर्जा मिलेगी उस ऊर्जा का सदुपयोग छत्तीसगढ़ में सरकार को परेशान करने किया जाएगा.