खबरों की खबरछत्‍तीसगढ़धर्म आध्‍यात्‍महिंदुस्तान

24 या 28 : कितने किमी है करणी माँ की ओरण परिक्रमा ?

शेयर करें...

www.nationalert.in

देशनोक/9770656789.

चूहों की देवी के मँदिर के रूप में विश्व में प्रसिद्ध करणी माँ की ओरण परिक्रमा 3 नवंबर से प्रारँभ हो रही है. इसका समापन 5 नवंबर को होगा. अब सवाल इस बात का है कि कितने किलो मीटर (किमी) की होती है ओरण परिक्रमा ?

ज्ञात हो कि करणी माँ का ओरण मार्ग बीकानेर नोखा मार्ग के दोनों तरफ है. ओरण तकरीबन 12 कोस लँबा है.12 कोस लगभग 24 से 36 किलोमीटर हो सकते हैं, क्योंकि एक कोस की लँबाई अलग-अलग क्षेत्रों के अनुसार भिन्न होती है.

यह 3 किलोमीटर (लगभग 36 किमी) या 2-2.5 किलोमीटर (लगभग 24-30 किमी) की मानक लँबाई पर आधारित हो सकता है. कुछ क्षेत्रों में, जैसे राजस्थान, पँजाब या हरियाणा में, एक कोस लगभग 2 किलोमीटर होता है, जो 12 कोस (12x12x12𝑥2 किलोमीटर) = 24equals 24
= 24 किलोमीटर के बराबर होगा.

24 अथवा 28 किमी में कौन सा सही है ? इस का जवाब भी ओरण पथ में ही छिपा हुआ है. बताया जाता है कि यदि मँदिर से ओरण के लिए निकला जाए तो कुलजमा 28 किमी लँबी दूरी तय कर वापस मँदिर में आएँगे. दूसरी तरफ सीधे ओरण मार्ग से शुरू होंगे तो यह दूरी 24 किमी होगी.

देशनोक स्थित मँदिर की देखरेख श्री करणी मँदिर निजी प्रन्यास, देशनोक, बीकानेर, राजस्थान नामक ट्रस्ट द्वारा की जाती है. फिलहाल इसके अध्यक्ष बादलसिंह देपावत हैं. सचिव की जिम्मेदारी शँकरदान जी के पास है.

वे बताते हैं कि प्रत्येक वर्ष देशभर से आए लाखों श्रद्धालु भगत ओरण परिक्रमा में शामिल होते हैं. वैसे तो विदेशी मेहमानों का यहाँ आना लगा रहता है लेकिन ओरण परिक्रमा को नज़दीक से देखने के इच्छुक विदेशियों की सँख्या भी बडी़ तादाद में होती है.

24 घंटे खुला रहेगा दरबार . . .

ओरण परिक्रमा के दिनों में करणी माता का दरबार 24 घंटे खुला रहेगा. भगदड़ न हो ऐसा सोचकर ही यह व्यवस्था की जा रही है.वे बताते हैं कि देशनोक के करणी माता का मँदिर विश्व प्रसिद्ध है. देश विदेश से माँ के श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं. चूंकि माँ के दरबार में छोटा बडा़ कोई नहीं होता इस कारण वीआईपी दर्शन जैसी कोई व्यवस्था यहाँ देखने को नहीं मिलेगी.

मँदिर प्रन्यास के बताते हैं कि बीकानेर – नोखा मार्ग के दोनों तरफ फैले ओरण में यह परिक्रमा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि ओरण परिक्रमा के दिन स्वयं माँ करणी इस मार्ग पर चलती हैं.

उनके अनुसार ओरण परिक्रमा मँदिर से प्रारंभ होती है. इसका समापन भी वापस मँदिर में आकर होता है. मार्ग के दोनों तरफ परिक्रमावासियों की सेवा के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध होती है.

क्या है ओरण . . ?

ओरण का अर्थ सँरक्षित भूमि से है. ऐसी भूमि या जमीन जो चारागाह के लिए छोड़ रखी है उसे ओरण कहा जाता है.
इस भूमि पर ना कोई घर बना सकता है और ना ही जुताई कर सकता है. यह भूमि देवी – देवताओं के नाम से छोड़ दी गई है.

इस भूमि का उपयोग पशु – पक्षियों के चारागाह के तौर पर होता है. इसे ओण, ओवण और ओरांस भी कहा जाता है. इस भूमि में खेती करना या घर बनाना तो दूर की बात है, यहाँ से चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी तक नहीं ली जाती है.

प्रचलित मान्यताओं की जानकारी देते हुए सचिव कहते हैं कि तथ्यों के आधार पर ओरण शब्द कि उत्पत्ति संस्कृत के ‘अरण्य’ शब्द से हुई है. कुछ लोग कहते हैं कि राजस्थान में जो भूमि सीधी और सपाट होती है, उसे रण कहते हैं. उनके मुताबिक ऐसे में हो सकता है कि देवी – देवताओं को समर्पित यह भूमि ‘ओम रण’ से अपभ्रंश हो ओरण हो गई हो. बहरहाल, ओरण परिक्रमा की जोरशोर से तैयारी की गई है.