जोगीदास के गाँव की भुआसा जो जसोल की बन गईं रानी सा !
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नेशन अलर्ट/जसोल.
रानी सा अथवा रानी भटियानी सा के नाम से पूजी जाने वाली माजीसा को उनके मायके में भुआ सा के नाम से पूजा जाता है. वैसे विक्रम सँवत 1745 के भादवा सुदी सातम को माँ (स्वरूपकँवर) का अवतरण हुआ था.
राजस्थान के एक जिले का नाम है जैसलमेर. इसकी स्थापना 1156 ईस्वीं की मानी जाती है. पँडित राजू महराज के मुताबिक जैसलमेर को बसाने का काम भाटी राजपूत शासक रावल जैसल ने किया था. उन्हीं के नाम से इस शहर का नामकरण जैसलमेर हुआ.
इसी जैसलमेर से तकरीबन 85 किलोमीटर दूर जोगीदास का गाँव नाम से एक गाँव स्थित है जिसे अब देश विदेश में जोगीदासधाम के नाम से जाना जाता है. इसी गाँव की एक बेटी है जिन्हें भुआसा (बुआजी) के नाम से भी लोग जानते हैं.
वैसे इनका मूल नाम स्वरूपकँवर था जिसे लोगों की आस्था ने, विश्वास ने रानी भटियानी, मोतियाँ वाली माँ जैसे अनेक नाम दिए हैं. जोगीदास का गाँव का इतिहास जानने हमें थोडा़ पीछे लौटना पडे़गा.
बात जैसलमेर के 21वें राजा महारावल मालदेवजी से जुडी़ हुई है. इतिहास के जानकारों से मिली जानकारी का उल्लेख करते हुए पँडित राजू महराज बताते हैं कि उनके वँश में राजश्री खेतसिंह हुए थे.
कौन थे जोगीदास..?

इन्हीं राजश्री खेतसिंह के सुपुत्र का नाम पँचावण दास रखा गया था. पँचावण दास के सुपुत्र का नाम पृथ्वीराज जी रखा गया. पृथ्वीराज के पाँच सुपुत्र हुए, जिनमें जोगीदास जी पहले थे.
पृथ्वीराज के दूसरे सुपुत्र का नाम जीवन दास था. तीसरे सुपुत्र का नाम माधुसिंह था. चौथे सुपुत्र का नाम भोजराज था. पाँचवें सुपुत्र का नाम भीवसिंह था.
पृथ्वीराज को भाटीसरा क्षेत्र की जागीर मिली थी. जैसलमेर के दक्षिण में है भाटीसरा क्षेत्र. यही इलाका आज दक्षिणी बसीया कहलाता है.
पृथ्वीराज के बडे़ सुपुत्र जोगीदास ने विक्रम सँवत 1741 में जोगीदास का गाँव स्थापित किया. उन्हीं के नाम से आज यह गाँव जोगीदास का गाँव है. यहाँ के वह पहले जागीरदार हुए.
उन्होंने गोगासर कुँआ, राणासर तालाब खुदवाए. जोगीदास के दो विवाह हुए थे. पहली शादी राजकँवर के साथ हुई थी. वह बाड़मेरा परिवार की थीं. राठौड़ रतनसिंह की सुपौत्री थीं. राजकँवर के पिता का नाम दलपत सिंह था.
दूसरा विवाह उन्होंने बदनकँवर खींवसर के साथ रचाया. करमसोत राठौड़ गोपालसिंह उनके दादाश्री थे. उनके पिताश्री का नाम अर्जुन सिंह था. विवाह उपरांत भी जोगीदास को लँबे समय तक सँतान सुख नहीं मिला था.
तब गुरू की आज्ञा अनुसार उन्होंने भाटीवँश की कुलदेवी माँ स्वाँगीया जी की विशेष पूजा की. माँ स्वाँगीयाजी को आईंनाथजी के नाम से भी जाना जाता है.
पूजा से माँ प्रसन्न हुईं. उन्हीं के आशीर्वाद से घर पर कुमकुम की बारिश हुई. तब विक्रम सँवत 1745 के भादवा सुदी सातम को माँ (स्वरूप कँवर) का अवतरण हुआ.
जन्म के नवमें दिन नाम रखा गया स्वरूप कँवर. स्वरूपकँवर बाईसा के बाद जोगीदास को तीन सुपुत्र प्राप्त हुए थे. हरनाथ सिंह, रायसिंह और लालसिंह, बाईसा के भाई थे.
स्वरूपकँवर के बडी़ होने पर माता पिता को उनके विवाह की चिंता सताने लगी. यह वह समय था जब मालानी राज्य के जसोल के रावल कल्याण सिंह के नाम की चर्चा हर तरफ हुआ करती थी.
कल्याण सिंह का विवाह देवडी़ अणँदकँवर से हो चुका था. दुर्भाग्य से कल्याण सिंह – अणँदकँवर की विवाह के लँबे समय बाद भी कोई सँतान नहीं हुई थी.
उसी समय जोगीदास के गाँव से दूसरे विवाह का प्रस्ताव कल्याण सिंह को भेजा गया. प्रस्ताव कल्याणसिंह ने स्वीकार्य भी कर लिया.
कालांतर में
कल्याणसिंह – स्वरूपकँवर विवाह बँधन में बँध गए. मालानी राज्य की रानी बनकर उन्हें एक नया सँबोधन मिला रानी सा. चूँकि वह भाटीकुल में जन्मीं थी इसलिए उन्हें प्यार व सम्मान से रानी भटियानी सा के नाम से भी पुकारा जाता है.

