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बाबा रामदेव : जब मँदिर बना था तब 57 हजार आई थी लागत

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नेशन अलर्ट / रामदेवरा.

616 साल पहले अवतरित हुए रामसा पीर अथवा बाबा रामदेव के मुख्य मँदिर में भगतों की भीड़ बढ़ने लगी है. इस मँदिर का निर्माण जब हुआ था तब महज 57 हजार रूपए लागत आई थी. कालाँतर में दर्शनार्थियों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने लाखों रूपए खर्च किए गए जोकि अभी भी अनवरत जारी है.

उल्लेखनीय है कि मान्यता अनुसार बाबा रामदेव का जन्म विक्रम सँवत 1409 में हुआ था. बाड़मेर जिले में एक स्थान का नाम ऊंडु काश्मीर है. इसी स्थान पर बाबा अवतरित हुए थे.

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने बाबा रामदेव के रूप में अवतार लिया था. ऊंडु काश्मीर के राजा अजमाल अथवा अजमल जी तँवर व रानी मैणादे के यहाँ इनका अवतार माना जाता है.

मारवाड़ के तत्कालीन राठौर राजा श्रीनाथ जी ने बाबा रामदेव को पोकरण की जागीरी दी थी. हरजी भाटी जैसे सहयोगी की सहायता से इन्होंने अपना राजपाठ सँभाला. इसी जागीर के अधीन रामदेवरा आता था जहाँ आज समाधी वाला मँदिर है.

रामदेव जी के जन्म स्थान को लेकर मतभेद भले हों, परँतु सब एक मत हैं कि उनका समाधी स्थल रामदेवरा ही है. यहाँ वे मूर्ति स्वरूप में पूजे जाते हैं.

रामदेवरा वही स्थान है जहाँ पर उन्होंने विक्रम सँवत 1442 को जीवित समाधी ली थी. यहीं पर उनका भव्य मँदिर बना हुआ है.

1912 में बना मँदिर…

पूर्व में समाधी छोटे छतरीनुमा मँदिर में बनी थी. वर्ष 1912 में बीकानेर के तत्कालीन शासक महाराजा गँगासिंह ने छतरी के चारों तरफ बड़े मँदिर का निर्माण कराया, जिसने शनैशनै भव्य मँदिर का रूप ले लिया.

उस समय मँदिर के निर्माण में 57 हजार रूपए की लागत आई थी. यह मँदिर हिंदुओं एवं मुसलमानों दोनों की आस्था का प्रबल केंद्र है. मँदिर में बाबा रामदेव की मूर्ति के साथ−साथ एक मजार भी बनी हुई है.

बाबा की समाधी के सामने पूर्वी कोने में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित रहती है. दर्शन द्वार पर लोहे का चैनल गेट लगाया गया है. दर्शनार्थी अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए कपड़ा, मौली, नारियल आदि बाँधते हैं. मनौती पूर्ण होने पर खोल देते हैं.

राजस्थान से ही नहीं बल्कि गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश से भी बड़े पैमाने पर श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने प्रायः आते हैं. शेष भारत व विदेशों से भी अवसर विशेष पर श्रद्धालुओं का आना होते रहता है.

मँदिर में प्रातः 04.30 बजे मँगला आरती, प्रातः 8.00 बजे भोग आरती, दोपहर 3.45 बजे श्रृँगार आरती, सायं 7.00 बजे सँध्या तथा रात्रि 9.00 बजे शयन आरती होती है.

डालीबाई का कँगन…

समाधी स्थल के पास ही रामदेवजी की परमभक्त शिष्या डाली बाई की समाधी और कँगन हैं. डाली बाई का कँगन पत्थर से बना है. इसके प्रति धर्मालुओं में गहरी आस्था है.

मान्यता के अनुसार इस कँगन के अँदर से होकर निकलने पर सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं. मँदिर आने वाले लोग इस कँगन के अँदर से निकलने पर ही अपनी यात्रा पूर्ण मानते हैं.

परचा बावड़ी…

मँदिर के समीप ही स्वयँ रामदेव जी द्वारा खुदवाई गई परचा बावड़ी अपनी स्थापत्य कला में बेजोड़ है. इस बावड़ी का निर्माण फाल्गुन सुदी तृतीया विक्रम संवत् 1897 को पूर्ण हुआ था.

बावड़ी का जल शुद्ध व मीठा है. बावड़ी का निर्माण रामदेव जी के कहने पर बणिया बोयता ने करवाया था.

बावड़ी पर लगे चार शिलालेखों से पता चलता है कि घामट गाँव के पालीवाल ब्राह्मणों ने इसका पुनर्निर्माण कराया था. इस बावड़ी का जल रामदेवजी का अभिषेक करने के काम में लाया जाता है.

रामसरोवर तालाब…

गाँव के निवासियों को जल का अभाव न रहे इसलिए रामदेव जी ने मँदिर के पीछे विक्रम संवत् 1439 में रामसरोवर तालाब खुदवाया था. यह तालाब 150 एकड़ क्षेत्र में फैला है.

इसकी गहराई 25 फीट है. तालाब के पश्चिमी छोर पर अद्भुत आश्रम तथा पाल के उत्तरी सिरे पर रामदेवजी की जीवित समाधी है. इसी क्षेत्र में डाली बाई की जीवित समाधी भी है.

तालाब के तीनों ओर पक्के घाट बनाए गए हैं. पाल पर श्रद्धालु पत्थरों से छोटे−छोटे मकान बनाकर अपने सपनों का घर बनाने की रामदेव जी से विनती करते हैं.

बताया जाता है इस तालाब की मिट्टी के लेप से चर्म रोग दूर हो जाता है. कई श्रद्धालु तालाब की मिट्टी अपने साथ ले जाते हैं.

रूणीचा कुआँ (राणीसा का कुआँ)…

रामदेवरा मँदिर से 2 किलोमीटर दूर पूर्व में निर्मित रूणीचा कुंआँ (राणीसा का कुंआ) और एक छोटा रामदेव मँदिर भी दर्शनीय है.

बताया जाता है कि अपनी पत्नी रानी नेतलदे को प्यास लगने पर रामदेव जी ने भाले की नोंक से इस जगह पाताल तोड़ कर पानी निकाला था. तब ही से यह स्थल “राणीसा का कुंआँ” के नाम से जाना जाता है.

कालाँतर में अपभ्रंश होते−होते “रूणीचा कुंआ” में परिवर्तित हो गया. जिस पेड़ के नीचे रामदेव जी को डाली बाई मिली थी, उस पेड़ को डाली बाई का जाल कहा जाता है.

पँच पीपली का परचा…

बाबा रामदेव जी के 24 परचों में पँच पीपली भी प्रसिद्ध स्थल है. इस संबंध में प्रचलित कथानक के अनुसार, रामदेव जी की परीक्षा के लिए मक्का−मदीना से पाँच पीर रामदेवरा आए और उनके अतिथि बने थे.

भोजन के समय पीरों ने कहा कि वे स्वयँ के कटोरे में ही भोजन करते हैं. रामदेव ने वहीं बैठे − बैठे अपनी दाई भुजा को इतना लँबा फैलाया कि मदीना से कटोरे वहीं आ गए.

पीरों ने उनका चमत्कार देखकर उन्हें अपना गुरु (पीर) माना. यहीं से रामदेव जी का नाम रामसा पीर पड़ा. बाबा को “पीरों के पीर रामसा पीर” की उपाधी भी प्रदान की गई.

इस घटना से मुसलमान इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी इनकी पूजा करनी शुरू कर दी. रामदेवरा से पूर्व की ओर 10 किलोमीटर एकां गांव के पास छोटी सी नाडी के पाल पर घटित इस घटना के दौरान पीरों ने भी परचे स्वरूप पांच पीपली लगाई थी, जो आज भी मौजूद हैं.

यहाँ बाबा रामदेव का एक छोटा सा मंदिर व सरोवर भी बना है. मँदिर में पुजारी द्वारा नियमित पूजा की जाती है.

पोकरण से दस किमी दूर स्थित रामदेवरा में रामदेव जी के मँदिर से मात्र 1.5 किलोमीटर दूर आरसीपी रोड पर श्री पार्श्वनाथ जैन मँदिर, गुरु मँदिर एवं दादाबाड़ी दर्शनीय क्षेत्र विद्यामान हैं.

दिल्ली में शासन कर चुके हैं तँवर…

बाबा रामदेव का जन्म वैष्णव भक्त अजमल जी के घर मैणादे की कोख से हुआ था. अजमल जी किसी समय दिल्ली के सम्राट रहे अनंगपाल तँवर के वंशज माने जाते है.

बाद में वे आकर पश्चिमी राजस्थान में निवास करने लगे. अजमल जी द्वारिकाधीश के अनन्य भक्त थे. मान्यता है कि भगवान कृष्ण की कृपा से बाबा रामदेव का जन्म हुआ.

उनके जन्म से लौकिक एवँ अलौकिक चमत्कारों, शक्तियों का उल्लेख भजनों, लोकगीतों और कथाओं में व्यापक रूप से मिलता है.

उनके लोक गीतों और कथाओं में भैरव राक्षस का वध, घोड़े की सवारी, लक्खी बँजारे का परचा, पाँचों पीर का परचा, नेतलदे की अपंगता दूर करने आदि के उल्लेख बखूबी पाए जाते हैं. उनके घोड़े की श्रद्धा से पूजा की जाती है.

रामदेवजी ने तत्कालीन समाज में व्याप्त छूआछूत, जात−पांत का भेदभाव दूर करने तथा नारी व दलित उत्थान के लिए भयपूर प्रयास किए थे.

अमर कोट के राजा दलपत सोढा की अपँग कन्या नेतलदे को पत्नी स्वीकार कर समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया. दलितों को आत्मनिर्भर बनने और सम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित किया.

उन्होंने पाखँड व आडँबर का विरोध किया. सगुन−निर्गुण, अद्वैत, वेदाँत, भक्ति, ज्ञान योग, कर्मयोग जैसे विषयों की सहज व सरल व्याख्या की. आज भी बाबा की वाणी को “हरजस” के रूप में गाया जाता है.

बहरहाल, बाबा रामदेव जी के जन्मोत्सव पर मेला आज से शुरु हो गया है. विधिपूर्वक बाबा के जन्मोत्सव के पर्व को मनाया जा रहा है. आज सोमवार (25 अगस्त) को दूज से प्रारँभ हुआ पर्व भादो सुदी पूर्णिमा (7 सितँबर) तक चलेगा.