तीर्थंकर आदिनाथ की भक्ति में डूबे देशवासी
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रायपुर.
आज (रविवार) का दिन भगवान आदिनाथ को समर्पित है. उन्हें जैन धर्म का सँस्थापक माना जाता है. जैनियों के 24 तीर्थंकरों में ऋषभदेव जिन्हें आदिनाथ के नाम से भी जानते हैं, का प्रथम स्थान है.
दरअसल, दिगँबर जैन समाज आज तीर्थंकर आदिनाथ जी का जन्मोत्सव माना रहा है. देशभर में जगह जगह उनकी आराधना हो रही है. सुबह से जैन मँदिरों में भगवान आदिनाथ जिन्हें आदिश जीना के नाम से भी जाना जाता है, की पूजा अर्चना हो रही है.
कौन थे आदिनाथ अथवा ऋषभदेव . . ?

आचार्य जिनसेन के आदिपुराण में आदिनाथ अथवा ऋषभदेव का विस्तार से वर्णन है. इन्हें जैन धर्म का पहला तीर्थंकर माना जाता है. वैसे जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं. भगवान महावीर 24वें तीर्थंकर हैं.
इनका जन्म चैत्र कृष्ण नवमीं को अयोध्या में हुआ था. पिता राजा नाभिराज व रानी मरूदेवी इनकी माता थी.यशावती और सुनंदा से आदिनाथ का विवाह हुआ था. तीर्थंकर आदिनाथ के 100 पुत्र और दो पुत्रियां थीं.
जैन धर्म के ग्रँथों के मुताबिक आदिनाथ ने ही लोगों को खेती करना सिखाया था. इनके ही समय से अक्षर व गिनती का ज्ञान शुरू हुआ था. तीर्थंकर आदिनाथ को जैन धर्म का सँस्थापक माना जाता है
हिंदुओं की मान्यता है कि आदिनाथ ही भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं. इन्हें शिव से भी जोड़कर देखा जाता है. मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले के बावनगजा में ऋषभदेव की एक 84 फ़ुट की विशाल मूर्ति है.
महाराष्ट्र के मांगीतुंगी में आदिनाथ की एक 108 फ़ुट की विशाल मूर्ति है. राजस्थान के उदयपुर ज़िले में भी ऋषभदेव का एक मँदिर है.
आदिनाथ जब राजा हुआ करते थे तब इन्हें ऋषभदेव के नाम से जाना जाता था. उनके दरबार में नीलांजना नाम की एक नृत्यांगना थी. नीलांजना के नृत्य देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो जाते थे.
एक मर्तबा नृत्य करने के दौरान ही नीलांजना मूर्च्छित होकर ज़मीन पर गिर पड़ीं. वह बेहोश हो गईं थी. इस दृश्य ने राजा ऋषभदेव को बहुत प्रभावित किया. उन्होंने अपना राजपाट अपने बच्चों को सौंप दिया.
इसके बाद सिर मुंडवा कर संन्यासी बनकर जंगल की तरफ़ चले गए. वहां उन्होंने लंबी तपस्या की और ज्ञान हासिल किया. जैन साहित्य के अनुसार माघ कृष्ण चतुर्दशी को उन्होंने मोक्ष/ निर्वाण प्राप्त किया. उनका मोक्ष कैलाश पर्वत पर हुआ था.
जैन धर्म में तीर्थंकर को जिन या सभी धार्मिकों के विजेता कहा जाता है. ‘तीर्थंकर’ शब्द ‘तीर्थ’ और ‘संसार’ का मेल है. तीर्थ का उद्देश्य एक तीर्थ स्थल से है और दुनिया का उद्देश्य अर्थव्यवस्था जीवन से है.
एक तीर्थंकर हैं जो जन्म और मृत्यु के अनंत समुद्र रूपी मोह से मुक्त होने के मार्ग पर हैं. जैन धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है. कुछ शिक्षा अनुयायियों का दावा है कि यह पूर्व – वैदिक सिंधु घाटी सभ्यता से पहले का है.
इस दृष्टिकोण के अनुसार, कुछ का दावा है कि जैन धर्म हिंदू धर्म से पहले था, जिससे यह दुनिया का सबसे पुराना धर्म बन गया.
24 तीर्थंकरों के नाम :
1 ऋषभदेव अथवा आदिनाथ जी
2 अजितनाथ
3 सम्भवनाथ
4 अभिनंदन
5 सुमतिनाथ
6 पद्ममप्रभु
7 सुपार्श्वनाथ
8 चंदाप्रभु
9 सुविधिनाथ
10 शीतलनाथ
11 श्रेयांसनाथ
12 वासुपूज्य
13 विमलनाथ
14 अनंतनाथ
15 धर्मनाथ
16 शांतिनाथ
17 कुंथुनाथ
18 अरनाथ
19 मल्लिनाथ
20 मुनिसुव्रत
21 नमिनाथ
22 अरिष्टनेमि
23 पार्श्वनाथ
24 वर्धमान महावीर जी.

