जिसके जीवन में गुरु नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं : समतासागर महाराज जी
डोंगरगढ़। गुरू की महिमा बरनी न जाए, गुरु नाम जपो मन बचन काय, गुरु भारतीय संस्कृति की खोज है। दुनिया के पास टीचर तो है, लेकिन गुरू नहीं, गुरू तो ज्ञानी, पारखी, उदार हृदय तथा गंभीर एवं रहस्य उद्घाटक होते है, वह साक्षात प्रभु की तस्वीर होते है।
उपरोक्त उद्गार निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने चंद्रगिरी तीर्थ पर प्रातःकालीन धर्म सभा में प्रभु और गुरु के महत्व को दर्शाते हुये व्यक्त किये। मुनि श्री ने कहा कि जिसका कोई गुरू नहीं उसका जीवन शुरू नहीं, जिंदगी की शुरुआत और जिंदगी की पहुंच गुरु के माध्यम से ही होती है। आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागरजी महामुनिराज में आचार्य परमेष्ठी के रुप में जितने गुण होना चाहिये, वह सभी गुण उनके अंदर विद्यमान थे, वह श्रेष्ठ संघ नायक थे। अध्यन-अध्यापन की दृष्टी से वह उपाध्याय परमेष्ठी तथा निरंतर आत्मसाधना के रुप आत्मोनुखी होकर श्रेष्ठ साधु की चर्या का पालन करते थे अर्थात पंचपरमेष्ठी के तीन गुण आचार्य उपाध्याय एवं साधू के गुण उनमें एक साथ समाहित होते थे। संघ उनके साथ था वह संघ के साथ कभी नहीं रहे। ज्येष्ठ निर्यापक मुनि श्री योगसागर जी को संदेश भेज दिया था, लेकिन अंदर ही अंदर सभी को डर भी था कि पहल कौन करेगा? सभी ने हमें ही आगे बढ़ाया, उस समय गुरूदेव दीवारों की ओर मुख करके लेटे थे, हम भी हिम्मत करके गुरु चरणों में जाकर बैठ गये और धीरे से निवेदन किया कि आपकी अस्वस्थता का समाचार सुनकर के हम सभी का मन व्याकुल था, इसलिये हम लोग विना संकेत के यहां पर चले आये है, हम जानते है, यह हमारी गलती है, लेकिन इतने पास से आप निकल रहे है तो हम सभी का मन नहीं माना और हमारे इतना कहने पर आचार्य श्री ने आंखें खोली और वह उठकर बैठ गये और हम सभी की ओर देखकर मुस्कुराते हुये आशीर्वाद दिया तथा राजवार्तिक ग्रंथ का उदाहरण देते हुये कहा कि सुनो भक्ती को एकांत वाची बताया है और वह सम्यक् दर्शन का अंग है बातावरण अनुकूल हुआ और गुरुदेव से चर्चा शुरू हुई। धीरे-धीरे हम लोगों ने माहौल बनाया और आगे विहार में गुरूदेव की डोली उठाने का सौभाग्य सभी मुनिराजों ऐलक जी तथा सभी ब्रहम्चारी को मिल गया।
इस अवसर पर मुनि श्री आगम सागर, मुनि श्री पुनीत सागर ऐलक श्री धैर्य सागर ऐलक श्री निश्चयसागर ऐलक श्री निजानंद सागर सहित आर्यिकारत्न गुरुमति माताजी, दृणमति माता जी, आदर्शमति माता जी, चिंतन मतिमाताजी सभी माताजी संघ सहित तथा संघस्थ ब्रहम्चारी एवं बहनें उपस्थित थी। गुरूवर बात जरा गहरी है, गुरुवर बात जरा गहरी है, क्योंकि हम सबकी जिन्दगी आप में ही ठहरी है।
अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, निर्मल जैन, सुभाष चंद जैन, चंद्रकांत जैन, सप्रेम जैन, डोंगरगढ़ जैन समाज के अध्यक्ष अनिल जैन, कोषाध्यक्ष जय कुमार जैन, सचिव यतीश जैन, सुरेश जैन, निशांत जैन, विद्यातन पदाधिकारी निखिल जैन, दीपेश जैन, अमित जैन, सोपान जैन, जुग्गू जैन, यश जैन, प्रतिभास्थली के अध्यक्ष पप्पू भैया सहित समस्त पदाधिकारी उपस्थित थे। विद्यातन के अध्यक्ष विनोद बडजात्या ने बताया कि 1 फरवरी 2025 से 6 फरवरी 2025 तक होने वाले प्रथम समाधि स्मृति महोत्सव कि पूर्ण रूपरेखा बना ली गयी है, जिसमें सभी साथियों को कार्यविभाजन कर आवास, यातायात, भोजन, सिक्यूरिटी आदि व्यवस्था सुनिश्चित कर दी गयी है एवं देश-विदेश के सभी लोगो से करबद्ध निवेदन किया है कि सभी उक्त कार्यक्रम में अपनी गरिमामयी उपस्तिथि दर्ज कर धर्म लाभ लेवे। उक्त जानकारी निशांत जैन (निशु) द्वारा दी गयी है।
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