आशीष के बहाने सरकार को घेर रहे ओपी
रायपुर.
झीरम कांड में मारे गए बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा के बेटे आशीष कर्मा को डिप्टी कलेक्टर बनाने पर छत्तीसगढ़ की राजनीति में उबाल आ गया है।
पूर्व कलेक्टर और भाजपा नेता ओपी चौधरी ने सोशल मीडिया पर चार सवाल किये हैं।
चौधरी ने कहा, मैं महेन्द्र कर्मा का बहुत सम्मान करता हूं। कर्मा के बाद उनके परिवार से विधायक रहे, नगर पंचायत अध्यक्ष हैं, जिला पंचायत में भी प्रतिनिधित्व है, लोकसभा में भी उनके परिवार से चुनाव लड़ा गया।
उनके अनुसार यह सब अपनी जगह है, लेकिन अब उनके एक पुत्र को कांग्रेस सरकार ने सीधा डिप्टी कलेक्टर बना दिया।
कई लोग आरोप लगा रहे हैं कि कर्मा परिवार को लोकसभा की टिकट की दावेदारी से रोकने के लिए कांग्रेस ने तुष्टिकरण का यह कदम उठाया है।
चौधरी ने कहा, यदि कर्मा होते तो शायद वो अपने बेटे को काबिलियत के आधार पर कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर बनाना पसंद करते न कि तुष्टिकरण की राजनीति के तहत।
बेहतर होता कि कांग्रेस की सरकार तुष्टिकरण की राजनीति करके लाखों युवाओं के साथ अन्याय करने के बजाय कर्मा के परिवार की आर्थिक सुरक्षा हेतु अनुकंपा का कोई अन्य उपाय करती।
चौधरी ने कहा कि इस परिवेश में मेरे मन में कुछ सवाल उठ रहे हैं, जिन्हें सार्वजनिक करना अपना धर्म समझता हूं।
इस बार सीजी पीएससी परीक्षा में डिप्टी कलेक्टर के लिए सामान्य वर्ग का एक, एसटी के लिए दो और एससी-ओबीसी के लिए शून्य पद हैं।
डिप्टी कलेक्टर के सिर्फ तीन पद हैं, ऐसे में कांग्रेस सरकार का तुष्टिकरण का कदम छत्तीसगढ़ के युवाओं के साथ अन्याय नहीं है?
क्या सरकार अन्याय नहीं कर रही
चौधरी ने पूछा-छत्तीसगढ़ के उन लाखों युवाओं के साथ क्या यह अन्याय नहीं है? जो युवा सालों से प्रदेश के सर्वोच्च प्रशासनिक पद को अपनी योग्यता से प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं, क्या झीरम कांड के अन्य शहीदों के परिवारों को सरकार के तुष्टिकरण के निर्णय से पीड़ा नही हुई होगी? हजारों जांबाज जवान, नक्सलियों से सीधे लड़ते हुए शहीद हुए हैं। उनके परिवारों को दर्द नहीं हो रहा होगा?
बस्तर के सभी दलों के सामान्य जनप्रतिनिधित्व और आम आदिवासी भाई- बहन हर रोज माओवादी हिंसा से प्रभावित हो रहे हैं।
दंतेवाड़ा के एजुकेशन सिटी के आस्था गुरुकुल में नक्सल हिंसा से अनाथ हुए सैकड़ों आदिवासी बच्चे अपने बेहतर भविष्य के लिये पढ़ाई कर रहे हैं। क्या इन सब लोगों के साथ कांग्रेस सरकार का यह निर्णय अन्याय नहीं है?