शुक्ला से किए वायदे पर खरे उतरे गर्ग-वर्मा
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रायपुर.
पत्रकार कमल शुक्ला, मुख्यमंत्री के सलाहकार रूचिर गर्ग-विनोद वर्मा, आईजी एसआरपी कल्लूरी, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच ऐसा कौन सा संबंध है कि बात वायदों तक पहुंच गई है? दरअसल गर्ग-वर्मा ने कल्लूरी को लेकर जो वायदा कमल शुक्ला से किया था उस पर वे खरे उतरे हैं.
बस्तर में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) पद पर रहते हुए एसआरपी कल्लूरी न केवल विवादित हुए बल्कि उन्होंने नए नए लोगों को अपने खिलाफ कर लिया था.
तत्कालीन भाजपा सरकार के समय कल्लूरी और विवाद एक दूसरे के पूरक समझे जाते थे. थक हार कर भाजपा सरकार ने कल्लूरी को बस्तर के मोर्चे से हटा दिया था.
तीन माह का समय मांगा था
पंद्रह साल के बाद प्रदेश में सरकार बदली. भाजपा को चारों खाने चित कर कांग्रेस की सरकार बनीं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया गया तो लगा कि सब कुछ ठीक है. शायद ऐसा नहीं था.
बगैर किसी महत्वपूर्ण विभाग के समय काट रहे आईजी एसआरपी कल्लूरी को ईओडब्लू-एसीबी का दायित्व सौंप दिया गया. इससे बस्तर के वे लोग आंदोलित हो गए जिन्होंने कल्लूरी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था.
इसी में एक नाम पत्रकार कमल शुक्ला का भी है. कमल शुक्ला ने कल्लूरी को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाए जाने के विरोध में राजधानी रायपुर में अनशन शुरू कर दिया था. तब लगा था कि कांग्रेस सरकार के खिलाफ आंदोलन की सुगबुगाहट है.
वक्त था 22 जनवरी 2019 का… उस समय लगा कि सरकार के लिए परेशानी खड़ी होगी. तब सरकार के प्रतिनिधियों के रूप में सीएम के मीडिया सलाहकार रूचिर गर्ग व राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा सामने आए थे.
दोनों ने धरना स्थल पर जाकर न केवल कमल शुक्ला से बातचीत की थी बल्कि समस्या का निदान निकालने का प्रयास भी किया था. उस समय उन्होंने कमल शुक्ला को आश्वस्त किया था कि ईओडब्लू-एसीबी से एसआरपी कल्लूरी हटा दिए जाएंगे.
उस वक्त कमल शुक्ला ने नेशन अलर्ट से कहा था कि सरकार के प्रतिनिधियों ने कार्यवाही के लिए तीन माह का वक्त मांगा है. तब लगा कि बात आई और गई हो गई लेकिन जो वायदा किया था उसे इन दोनों ने निभाया भी है.
27 फरवरी को एक आदेश जारी होता है. इस आदेश में पांच आईपीएस अफसर व एक सीसी लेवल के अधिकारी के नाम शामिल थे. सूची में दूसरे क्रम पर एसआरपी कल्लूरी का नाम शामिल था. उन्हें ईओडब्लू-एसीबी से हटाकर अपर परिवहन आयुक्त बनाकर भेज दिया गया था.
बहरहाल कमल शुक्ला से जो बातें या वायदें उस दौरान किए गए थे वो सब आई और गई बात नहीं रही. तीन माह के भीतर ही कल्लूरी को हटाकर सरकार ने ये साबित किया है कि वो जो कहती है वह करती भी है.