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अस्ताचलगामी सूर्य को काँकेरवासियों ने भी दिया अर्घ्य

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काँकेर/नेशन अलर्ट.

लोक आस्था का महापर्व छठ आज काँकेर सहित पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. उत्तर भारतीय राज्यों सहित देश विदेश के कई हिस्सों में घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी है. सोमवार को इस पर्व का तीसरा दिन है, जब व्रती महिलाओं ने शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया और प्रार्थना की.

प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी काँकेर शहर एवं ज़िले में चार दिवसीय छठ महा पर्व अत्यंत उत्साह पूर्ण माहौल में मनाया जा रहा है. छठ मैया को पार्वती जी का ही एक रूप माना जाता है. उनकी तथा सूर्य देव की पूजा की जाती है.

इस महापर्व का प्रथम दिन “नहाए खाए ” कहा जाता है, जो प्रातः काल सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ प्रारंभ होता है. महिलाओं द्वारा पारंपरिक लोकगीत भी गाए जाते हैं.

दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन की विशेषता गुड़ से बनी खीर तथा अन्य प्रादेशिक व्यंजन होते हैं, जिन्हें पूजा पाठ के पश्चात ग्रहण किया जाता है. छठ महापर्व का तीसरा दिन अत्यंत विशेष होता है ,क्योंकि इस दिन अस्त होते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है.

विशिष्ट पूजा विधान संध्या काल संपन्न किए जाते हैं. अस्त होते हुए सूर्य की पूजा और सम्मान इसी समाज में प्रचलित है और इसे विशेष बनाते है. महापर्व का समापन चौथे दिन प्रातः काल उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाएगा.

कँकालिन तालाब के घाटों में बहा भक्तिभाव …

पर्व के शुभारँभ से समापन तक पूजा, आराधना, व्रत उपासना की जाती है. नगर के कँकालिन, ऊपर नीचे रोड़ तालाब के घाट छठ पर्व की साज सजावट की कहानी कहते नज़र आ रहे हैं. इनके घाट रँग बिरँगी रौशनी से जगमगाए हुए हैं. इस पर्व पर छठ मैया के लोकगीतों का गायन किया जाता है. इस अवसर पर भारत के लोगों को महान लोकगीत गायिका शारदा सिन्हा की याद आनी स्वाभाविक है.

शारदा जी छठ मैया के लोकगीतों की इतनी लोकप्रिय गायिका तथा भक्तिभाव में लीन रहती थीं कि उन्हें लोकगीतों की “बड़की माई” तथा “बड़ी मां” आदि शब्दों से संबोधित किया जाता है. गत वर्ष त्योहार के दिन ही “बड़की माई ” शारदा सिन्हा का स्वर्गवास हो गया था. बिहार से बाहर भी उन्हें फिल्म “मैंने प्यार किया” के गीत के कारण याद किया जाता है.(एस. सीताराम की रपट)