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उदासीन आचार्य श्री श्री चंद्रदेव जी का किया पुण्य स्मरण

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नेशन अलर्ट/राजनाँदगाँव.

उदासीन आचार्य श्री श्री चंद्रदेव जी का पुण्य स्मरण सोमवार को किया गया. दरअसल, उनके 531वें जन्मोत्सव पर विविध कार्यक्रम आयोजित हुए जिनमें उनके बताए गए मार्ग याद किए गए.

डोंगरगाँव मार्ग पर श्री कल्याणिका देवस्थानम नाम से एक आश्रम स्थित है. इस आश्रम की देखरेख अमरकँटक के पूज्यप्रतापी बाबा कल्याण दास के आशीर्वाद से उनके परम शिष्य श्री अनँतानँद महराज जी कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि 531वें जन्मोत्सव पर आचार्य पूजन, धुना पूजन, हवन, रोट प्रसाद का भोग लगाया गया. भगतों ने इन कार्यक्रमों में पूरी श्रध्दा के साथ सहभागिता निभाई.

कौन थे चंद्रदेवजी..?

उपलब्ध जानकारी बताती है कि उदासीन सँप्रदाय की स्थापना करने वाले बाबा श्री चंद्रदेव जी गुरु नानक के ज्येष्ट पुत्र थे. इनका जन्म 8 सितंबर 1494 को हुआ था. आपने 13 जनवरी 1629 को देह त्यागी थी.

उदासी संप्रदाय के संस्थापक श्री चंद्रदेव, पिता गुरु नानकदेव व
माता सुलखनी की सँतान थे. आप लुप्तप्राय उदासीन संप्रदाय के पुनः प्रवर्तक आचार्य हैं.

उदासीन गुरुपरंपरा में आपका 165 वाँ स्थान हैं. आपकी आविर्भाव तिथि संवत 1551भाद्रपद शुक्ला नवमीं तथा अंतर्धान तिथि संवत् 1700 श्रावण शुक्ला पंचमी है.

आपके प्रमुख शिष्य श्री बालहास, अलमत्ता, पुष्पदेव, गोविन्द, गुरुदत्त भगवद्दत्त, कर्ताराय, कमलासनादि मुनि थे.

बाबा श्रीचंद का जन्म 8 सितम्बर 1494 को पंजाब के कपूरथला जिला के सुल्तानपुर लोधी में हुआ था. जन्म के समय उनके शरीर पर विभूति की एक पतली परत तथा कानों में माँस के कुँडल बने थे. लोग भगवान शिव का अवतार मानने लगे.

जिस अवस्था में अन्य बालक खेलकूद में व्यस्त रहते हैं, उस समय बाबा श्रीचंद गहन वन के एकान्त में समाधि लगाकर बैठ जाते थे. कुछ बड़े होने पर वे देश भ्रमण को निकल पड़े.

उन्होंने तिब्बत, कश्मीर, सिंध, काबुल, कंधार, बलूचिस्थान, अफगानिस्तान, गुजरात, पुरी, कटक, गया आदि स्थानों पर जाकर साधु – सँतों के दर्शन किए. वे जहाँ जाते, वहाँ वाणी, चमत्कारों से दीन – दुखियों के कष्टों का निवारण करते थे.

श्रीचंद जी ने बहुत छोटी उम्र में ही योग के तरीकों में महारथ हासिल कर ली थी. वे अपने पिता गुरु नानक के प्रति हमेशा समर्पित रहे. उन्होंने उदासीन सँम्प्रदाय की नींव रखी.

उन्होंने दूर – दूर तक यात्रा की. इनके प्रयासों से गुरु नानक के बारे में जागरूकता फैल गई. बाबा श्रीचंद की मृत्यु माघ सदी में 13 जनवरी 1629 को किरतपुर में हुई. उदासीन सम्प्रदाय परम्पराओं का मानना है की बाबा श्रीचंद कभी मर नहीं सकते.

वे चँबा के जँगल में गायब हो गए. बाबा श्री चंद्रदेव के अदृश्य होने के बाद बाबा गुरदित्ता उदासीन सम्प्रदाय के उत्तराधिकारी बने.