मैडम देशमुख ये बताइए कि कारवाँ क्यूं लुटा ?
नेशन अलर्ट/9770656789
राजनांदगाँव.
सँस्कारधानी की महापौर रहीं श्रीमती हेमा देशमुख निगम चुनाव में काँग्रेस की एकतरफा हार के बाद विपक्षियों से ज्यादा अपनों के ही निशाने पर हैं. उन पर आए दिन हो रहे जुबानी हमलों को सुनकर लगता है कि आने वाला समय उनके लिए ठीक नहीं है.
राजनांदगाँव के प्रसिद्ध मानव मँदिर चौक पर बीते दिनों चाय की चुस्की लेते हुए किसी ने श्रीमती देशमुख पर टिप्पणी की. टिप्पणी में उन्हें “तीन महापौरों” का सरदार बताया जा रहा था.
टिप्पणियों का यह सिलसिला देर रात तक चला. लब्बोलुआब यह रहा कि राजनांदगाँव में काँग्रेस को स्थानीय चुनाव में मिली हार के लिए ज्यादातर लोग हेमा देशमुख को ही जिम्मेदार मानते हैं.
भाजपा के इशारे पर चलती रहीं . . .
दरअसल, हेमा पर ऐसे ही आरोप नहीं लग रहे हैं. चुनाव विश्लेषक मृत्युँजय तो उन्हें फूलछाप काँग्रेसी की उपाधि देते हुए कहते हैं कि अपने कार्यकाल में उन्होंने न केवल जनता बल्कि प्रदेश काँग्रेस के नेताओं की भी आँखों में धूल झोंकी है.
इसे स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं कि निगम में काँग्रेस से ठीक पहले भाजपा का राज था. उस समय के भारी भरकम भ्रष्टाचार पर तगडी़ कार्रवाई की जा सकती थी लेकिन किसी भी मामले में कुछ नहीं हुआ.
वैसे पहले हेमा अपनी प्रतिक्रिया में प्रदेश स्तर पर काँग्रेस को मिली हार को गिना रहीं थीं लेकिन अब जबकि काँग्रेसियों ने उन्हें अपने निशाने पर ले रखा है तब वह चुप्पी साधे बैठ गईं हैं. बीते दिनों एक भाजपा पार्षद की आरती उतारते हुए वायरल हुआ उनका वीडियो बहुत कुछ कह जाता है.
2019 और 2025 में अँतर . . .
काँग्रेस ने 2019 में हुए नगरीय निकाय चुनाव में राजनांदगाँव नगर निगम अँतर्गत 22 वार्डों में कब्जा किया था. यह वही समय था जब प्रदेश में किसानों की कथित हितैषी, आदिवासियों की पूछपरख करने वाली काँग्रेसी सरकार थी.
इसके बाद भी भाजपा ने इतनी कडी़ टक्कर दी थी कि काँग्रेस को एकतरह से पसीना छूट गया था. तब भाजपा कडे़ मुकाबले और विरोधी सरकार के बाद भी 21 वार्डों की सीट जीत ले गई थी. सरकारी रहमोकरम पर काँग्रेसी महापौर बना था.
. . . लेकिन 2025 आते आते ऐसा क्या कुछ हुआ कि वार्डों से भी एक तरह से काँग्रेस बाहर कर दी गई. इस चुनाव में काँग्रेस के महज आठ पार्षद ही राजनांदगाँव नगर निगम में जीत पाए हैं.
उनमें भी जिनकी जीत हुई है वह अपने क्षेत्र में बडी़ अच्छी पकड़ रखते हैं. गौरीनगर वार्ड 13 से अधिवक्ता हफीज खान, बलरामदास वार्ड 14 से सतीश मसीह, तुलसीपुर वार्ड 17 से सँतोष पिल्ले इनमें कुछेक उदाहरण हैं.
दूसरी ओर भाजपा ने पिछली मर्तबा की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया. विपक्षी पार्टी की सरकार होते हुए जिस भाजपा ने पिछली बार 21 वार्डों में कब्जा किया था वह इस मर्तबा सीधे 39 वार्डों में अपने पार्षद चुनवाने में सफल रही.
राजनीतिक तौर पर इसे गलत टिकट वितरण का मसला माना जा सकता है. विश्लेषण करते हुए इसे वरिष्ठ पत्रकार अतुल श्रीवास्तव भी मानते हैं. लेकिन इससे भी ज्यादा वह श्रीमती हेमा देशमुख को ही जिम्मेदार मानते हैं.
अतुल कहते हैं कि हेमा देशमुख का कार्यकाल तो जिम्मेदार है ही, आखिर कई निर्दलियों को साथ लेकर और उनमें से एक को निगम अध्यक्ष और कई को एमआईसी में लेकर हेमा ने अपनी पार्टी के पुराने पार्षदों को दरकिनार जो किया था वह भी हार का प्रमुख कारण है.
अतुल यह भी मानते हैं कि हेमा के कार्यकाल के अलावा राज्य की तत्कालीन भूपेश सरकार की कार्यप्रणाली भी जिम्मेदार थी. श्रीवास्तव के कहे का मतलब निकाला जाए तो भ्रष्टाचार के साथ साथ निष्पक्षता, नांदगाँव के साथ सौतेला व्यवहार, षड्यंत्रकारी सरकार सरीखे प्रमुख कारण हो सकते हैं.
चुनाव विश्लेषण में माहिर हेमँत ओस्तवाल से भी “नेशन अलर्ट” ने बातचीत की थी. हेमँत, काँग्रेस की इस तरह से बुरी हार के लिए बहुतायत में हेमा देशमुख के अहँकार को ही जिम्मेदार ठहराते हैं.
वे कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व प्रभारी मँत्रियों की “चमचागिरी” के बाद हेमा के पास इतना समय ही नहीं बचा कि वह शहर की जरुरतों को समझ पाती, समस्याओं का निराकरण कर पातीं. इस कारण सँस्कारधानी में काँग्रेस की ऐसी गति हुई है.
बहरहाल, हेमा देशमुख यह कह कर नहीं बच सकतीं कि भाजपा की जीत प्रदेश स्तर पर हुई है. चूँकि वह नांदगाँव महापौर थीं इस कारण उनसे सवाल तो होगा कि कारवाँ क्यूं और कैसे लुट गया ?

