फिर लौटा 2003..!
नेशन अलर्ट/ आशीष शर्मा
इतिहास अपने आप को दोहराता है.. इस तरह की बातें आपने बहुत सी मर्तबा पढ़ी अथवा सुनीं होंगी.. लेकिन इस बार वास्तव में छत्तीसगढ़ में इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है. याद करिए 2003 का वह साल जब सत्ता के खिलाफ मुंह खोलने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी.. 2017 में भी तकरीबन उसी तरह की परिस्थिति के बीच इस बार विनोद वर्मा, राजेश मूणत, भूपेश बघेल और इन सब के बीच घूमती वह विवादित सीडी है जिसने प्रदेश को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है.
वर्ष 2003 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी. तब मुख्यमंत्री हुआ करते थे अजीत प्रमोद कुमार जोगी. जोगी जी का रुतबा कहिए अथवा ठसका, कोई भी उस समय बात सहीं हो अथवा गलत मुंह खोलने तैयार नहीं हुआ करता था. और तो और जिसने भी सरकार की खिलाफत करने की कोशिश की उसे सबक सिखा दिया गया. तकरीबन उसी तरह की परिस्थिति इस बार भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में दोहराई जा रही है.
तब जग्गी थे निशाने पर लेकिन सलाहकार वही
वर्ष 2002 के आते तक अजीत प्रमोद कुमार जोगी और स्व. विद्याचरण शुक्ल के बीच संबंध खटास पूर्ण हो गए थे. पहले मुख्यमंत्री बनने की दौड़ से बाहर हुए शुक्ल बाद में पल-पल अपमान का घूंट पीते रहे. इस हद तक वह कांग्रेस में नज़र अंदाज हुए कि उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को छत्तीसगढ़ में ला दिया. शुक्ल के साथ बहुत से कांग्रेसियों ने एनसीपी ज्वाईन की और रामअवतार जग्गी एनसीपी के कोषाध्यक्ष बने.
वर्ष 2003 में एनसीपी में रहते हुए विद्याचरण शुक्ल ने तब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री जोगी के खिलाफ माहौल तैयार करना चालू कर दिया था. इसी दौरान रामअवतार जग्गी की हत्या हो गई. मामले में तब जोगी के सुपुत्र अमित सहित कई अन्य लोगों का नाम आया. तब भी मुख्यमंत्री के सलाहकार वही लोग थे जो कि आज भाजपा सरकार को सलाह देने का काम कर रहे हैं.
आज विनोद वर्मा का प्रकरण चर्चा में है. वही विनोद वर्मा जो कि छत्तीसगढ़ से उठकर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता कर चुके हैं. दरअसल, उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस गाजियाबाद जिले से गिरफ्तार कर लाई है. वह भी भादंवि की धारा 384 और 506 के तहत उनकी गिरफ्तारी दर्शाई गई है. वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी ताल ठोक कर कहते हैं कि यदि इन्हीं धाराओं के तहत विनोद वर्मा गिरफ्तार किए गए हैं तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है.
मामला तब भी गंभीर था मामला आज भी गंभीर है. तब भी बहुत से मीडियाकर्मी शांत रहे थे और आज भी बहुत से मीडियाकर्मी शांत हैं. तब भी उन्हीं ने सरकार को सलाह दी थी जो कि आज सरकार को सलाह दे रहे हैं. तब की सलाह में चली सरकार चुनाव में डूब गई थी और इस बार भी यदि ऐसा कुछ हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा.
सलाहकार भरोसे का नहीं, सलाहकार समझदार होना चाहिए.. इससे भी ज्यादा जरुरी है कि सरकार का समझदार होना कि जिससे वो सलाह ले रही है वह किस हद तक समझदार है. नहीं तो परिणाम इसी तरह होते रहेंगे…