संकट में सरकार !
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• जनचर्चा
पंडित नेहरु ने कभी कहा था कि जनता से जितने कम से कम वायदे किए जाएं उतना अच्छा है . . .क्यूं कि कम वायदे में यदि आपने ज्यादा काम किया तो आपकी प्रशंसा ही होगी लेकिन यदि वायदों से कम काम किया तो असंतोष ही बढे़गा.
. . . लेकिन यहां हो इसके उलट रहा है. ढे़र सारे वायदे कर बनी सरकार हर किसी को संतुष्ट नहीं कर पा रही है. क्या अधिकारी-कर्मचारी और क्या युवा अथवा किसान वर्ग . . . हर कोई किसी न किसी वायदे के अब तक पूरा नहीं हो पाने के चलते नाराज़ हैं.
. . . तो क्या यह नाराज़गी इस हद तक बढ़ने लगी है कि वह सरकार के अस्तित्व की बात बन रही है ? ऐसा है भी और नहीं भी. आखिर ऐसा हो क्यूं रहा है ?
आक्रामक हुआ विपक्ष
दरअसल, विपक्ष इस तरह की परिस्थितियों का फायदा उठाने तैयार है. उसे नया सेनापति मिल गया है. इस सेनापति के आते ही मृत पडे़ विपक्षी दल में जैसे जान आ गई हो.
हर दिन उसके तीर प्रदेश के सरदार और उनकी सरकार को झेलने पड़ रहे हैं. और तो और पुराने मुखिया भी आए दिन ऐसे ऐसे कटाक्ष कर रहे हैं कि नए सरदार के रक्षाकवच छिन्नभिन्न हुए जा रहे हैं.
पुराने मुखिया की कभी सिरदर्द रहीं उनकी ही पार्टी की नेता ने तो जैसे रानी लक्ष्मी बाई अथवा रानी दुर्गावती का रुप धर लिया हो.
उन्होंने तो सरकार की नाक में दम कर देने का जैसे प्रण ही कर लिया हो. वह कभी सरकार के भीतर के असंतोष पर बात करती हैं तो कभी अपने लोगों पर दर्ज हो रहे मामले मुकदमे को लेकर चुनौती देती हुईं नज़र आती हैं.
इधर, भीतर भी स्थिति कोई ठीकठाक नज़र नहीं आती. सरदार के प्रमुख योद्धा अपनी ही सरकार में अपने आप को शर्मिंदा बता देते हैं. पार्टी अध्यक्ष से लेकर एक और महंत भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं.
उस पर से सरकार के तथाकथित सलाहकारों व सचिवालय में पदस्थ अधिकारियों के खिलाफ चल रही उच्चस्तरीय जांच के भी आने वाले दिनों में गति पकड़ने की बात कहकर विपक्षी दुर्गा-लक्ष्मी ने संशय पैदा कर दिया है.
उपचुनाव के निपटते ही एक प्रदेश से खाली होकर दूसरे प्रदेश में हंगामा पैदा करने की तैयारी की जा रही है. आने वाले चार छह महीनों के बाद छिड़ने वाली बडी़ लडा़ई के लिए बहुत सारा गोला बारुद जुटाने में विपक्षी लोग एक राजधानी से दूसरी राजधानी में लगाए जा चुके हैं.
लगता है कि सरकार को भी असंतोष, नाराज़गी, अप्रसन्नता जैसी परिस्थितियों की खबर होने लगी है. डेमेज कंट्रोल के प्रयास इस ओर इशारा कर रहे हैं.
तभी तो नियुक्तियां की खबरें आने लगी है. फिर वह चाहे अपने सैनिकों की हो या फिर कलयुग के नारद मुनियों की जिन्हें नियुक्त किया जाने लगा है. संगठन स्तर पर भी पूछापाछी किए जाने की तैयारी है.
मतलब, शह और मात का खेल खेला जाने लगा है. तरकश में तीर सजाए जाने लगे हैं. पक्ष-विपक्ष की इस राजनीतिक रस्साकशी के बीच एक ही वर्ग है जो संतुष्ट है . . . वह है यवसुराप्रेमी !