पितृ पक्ष और पिंडदान : कैसे, कब और कहाँ करें ?
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मृत्युंजय
पितृ पक्ष बस आने को ही है. पितृ पक्ष में पिंडदान करने का भी बडा़ महत्व है. अब सवाल इस बात का उठता है कहाँ, कब और कैसे पिंडदान किया जाए कि घर के बडे़ बुजुर्गों को मोक्ष की प्राप्ति हो सके.
सनातनियों में पिंड दान करना बेहद ही शुभ माना जाता है. देशभर में कुछ ऐसी जगह उपलब्ध हैं जहां पर पिंड दान करना शुभ माना जाता है. मान्यता अनुसार ऐसा करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
17 से पितृ पक्ष . . .
पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हो रही है. सनातनियों में पिंड दान करना बेहद ही शुभ माना जाता है.
पिंड दान और श्राद्ध के लिए कुछ जगह बडी़ शुभ मानी जाती है.
आईए जानते हैं कि कौन सी हैं वो जगह . . .
बद्रीनाथ :
अलकनंदा के तट पर ब्रह्म कपाल घाट को पिंडदान के लिए शुभ माना जाता है. भक्त पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और पिंड दान करवाते हैं. यहां आत्मा को मुक्ति मिलती है. शांति भी मिलती है.
द्वारका :
भगवान कृष्ण द्वारा बसाई गई इस नगरी में भी पिंडदान की परंपरा रही है. यहाँ अमूमन कृष्ण के वंशज अथवा भगत पिंडदान के पहुँचते हैं.
हरिद्वार :
गँगा के तट पर बसा हरिद्वार भारत के सबसे पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है. यहाँ गँगा में नहाने से सभी पाप धुल जाते हैं. यहां पिंड दान करने पर दिवंगत की आत्मा को स्थायी शांति मिलती है.
प्रयागराज :
प्रयागराज में गँगाजी, यमुनाजी और सरस्वतीजी जैसी पवित्र नदियों का संगम माना जाता है. इनके तट पर पूर्वजों का पिंडदान करना मतलब आत्मा को जन्म – मरण के चक्र से मुक्त कराना माना जाता है.
वाराणसी :
वाराणसी जिसे काशी के नाम से भी आदिकाल से भारत के लोग जान रहे हैं वह गँगा के तट पर बसा है. यह भगवान शिव और पार्वती का उपरी भाग है. यहाँ गँगा घाट पर पिंडदान करने की प्रथा है.
बोध गया :
यह स्थान बिहार में स्थित है. फल्गु के तट पर लगभग 48 चबूतरे हैं जहां ब्राह्मण पंडितों द्वारा पिंडदान कराया जाता है. यहाँ कराया गया अनुष्ठान दिवंगत की आत्मा को पीड़ा से मुक्त करता है.