ये सरकार एक ‘देशद्रोही’ को नेता प्रतिपक्ष के रूप में बर्दाश्त कैसे कर रही है ?
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नज़रिया : डा. पँकज श्रीवास्तव
नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी यूँ तो हमेशा ही बीजेपी के निशाने पर रहते हैं लेकिन इस ट्रोल आर्मी का नेतृत्व ख़ुद देश का कृषिमंत्री करने लगे तो आश्चर्य होता है.
शिवराज चौहान बतौर कृषिमंत्री अब तक अपने इसी झूठे बयान के लिए कुख्यात थे कि ‘उनकी सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फ़सल ख़रीदती है’ लेकिन अब इस लिस्ट में राहुल गाँधी को ‘देशद्रोही’ बताने का बयान भी जुड़ गया है.
उन्होंने कहा है कि ‘राहुल गाँधी अमेरिका की यात्रा में जिस तरह से देश के विरोध में बोल रहे हैं वह देशद्रोह’ की सीमा में आता है.’ कैबिनेट मंत्री का बयान पूरी सरकार का बयान होता है.
. . . तो ये सरकार एक ‘देशद्रोही’ को नेता प्रतिपक्ष के रूप में बर्दाश्त कैसे कर रही है ? भारतीय संविधान के संकल्पों से बँधी सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह किसी भी देशद्रोही को सलाख़ों के पीछे भेजे.
वरना यही माना जाएगा कि सरकार ‘देशद्रोह’ जैसे गंभीर मुद्दे के साथ खिलवाड़ कर रही है. या वह ख़ुद को ही ‘देश’ मान बैठने की ग़लती कर रही है जैसे कि किसी भी तानाशाही में होता है और मोदी जी भी वैसे ही एक तानाशाह हैं जिनके लिए नेता विपक्ष हमेशा ही ‘देशद्रोही’ होता है.
बीजेपी को पूरा हक़ है कि वह राहुल गाँधी के बयानों पर सवाल उठाये. उनके तथ्यों को ग़लत साबित करे. लेकिन वह उन्हें ‘देशद्रोही’ बताने की हास्यास्पद हरक़त कर रही है.
ख़ुद को ‘देश’ और विरोधी को ‘देशद्रोही’ बताना आरएसएस यानी संघी टोले की मनोवैज्ञानिक समस्या है. ‘राष्ट्र’ और ‘राष्ट्रवाद’ के इस स्वयंभू टोले ने आज़ादी के आंदोलन के समय न सिर्फ़ अंग्रेज़ों का साथ दिया था बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों को बदनाम करने के लिए एक से बढ़कर एक घटिया कथाएँ गढ़ीं गयीं जिनका शाखाओं के ज़रिए कई पीढ़ियों तक प्रचार किया गया.
ऐेसे में विरोधियों को देशद्रोही बताकर वह अपनी हीनभावना से उबरने की कोशिश करता है. शिवराज सिंह चौहान भी ऐसी ही ‘गल्प-कथाओं’ को पढ़कर बड़े हुए हैं जिसमें ‘राष्ट्र’ का मतलब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रहा है और देश की परिधि इसके मुख्यालय की चारदीवारी तक सीमित रही है.
संघी टोला नेहरू की इस बात को समझ ही नहीं पाया कि ‘देश’ का मतलब देश के लोग होते हैं. भारत माता काग़ज़ पर बनाये गये किसी तस्वीर या नक़्शे में नहीं देश के आम लोगों में अभिव्यक्त होती है.
कल्पना ही की जा सकती है कि आज़ादी के आंदोलन, ख़ासतौर पर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का विरोध करने वाले संघी टोले को अगर महात्मा गाँधी ने ‘देशद्रोही’ कह दिया होता तो क्या होता ? लेकिन महात्मा गाँधी की हत्या के बाद भी ऐसा नहीं कहा गया जबकि आरएसएस की शाखाओं में महात्मा गाँधी की हत्या को ‘वध’ बताते हुए मिठाइयाँ बाटी गयी थीं.
उल्टा बड़ा दिल दिखाते हुए बीजेपी के ‘प्रात:स्मरणीय’ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था जिन्होंने मुस्लिम लीग के सहयोग से बनी बंगाल की फ़जलुल हक़ सरकार में मंत्री रहते 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने की कार्य-योजना अंग्रेज़ गवर्नर के सामने पेश की थी.
वही श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो हिंदू महासभा नेता बतौर अपनी अंग्रेज़-परस्ती के लिए नेता जी सुभाषचंद्र बोस के निशाने पर रहे थे.
घृणित सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशों से भरी भाषा और भाव वाले चुनावी भाषणों का रिकॉर्ड बनाने वाले पीएम मोदी, राहुल गाँधी को ‘शाहज़ादा’ कहते आये हैं लेकिन देश जानता है कि वे ‘शहीदज़ादे’ हैं.
उनके पिता राजीव गाँधी और दादी इंदिरा गाँधी देश के लिए शहीद हुईं. हक़ीक़त तो ये है कि उनका परिवार पाँच पीढ़ियों से देशभक्ति की मिसाल पेश करता आ रहा है.
राहुल पर विदेश में भारत की छवि बिगाड़ने का आरोप लगाने वाले शिवराज सिंह चौहान भूल गये हैं कि विदेश की धरती पर पूर्व सरकारों और अपने विरोधियों की आलोचना करने का रिकॉर्ड तो पीएम मोदी के नाम है. वे यहाँ तक कह चुके हैं कि उनके पीएम बनने के पहले लोग सोचते थे कि ‘भारत में जन्म लेना पूर्व जन्म के किसी पाप का नतीजा है.’
राहुल गाँधी ने ऐसी कोई बात नहीं की है. उन्होंने देश के हालात पर खुलकर बात की जिसमें पूरी सच्चाई है. क्या यह बात झूठ है कि बीते लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी के बैंक खाते फ़्रीज़ कर दिये गये थे ?
चुनाव आयोग की भूमिका को संदिग्ध बताते हुए कई चुनाव क्षेत्रों में मतगणना की गड़बड़ियों का मामला तो एडीआर जैसी संस्थाएँ प्रमाण के साथ उठा चुकी हैं. क्या ये सच नहीं है कि भारत में अल्पसंख्यक अभूतपूर्व ढंग से निशाना बनाये जा रहे हैं ?
हरियाणा में बीते दिनों कथित गौरक्षकों ने 12 वीं के छात्र आर्यन मिश्र की गोली मार कर हत्या कर दी और अफ़सोस ये है कि वह मुसलमान नहीं था ! मुसलमानों को मारना, उनकी दाढ़ी नोचना और बुलडोज़र से उनके घर या प्रतिष्ठान ढहाना बीजेपी शासित राज्यों का ‘न्यू नॉर्मल’ बन गया है.
सच तो ये है कि जिस अमेरिका की धरती पर राहुल गाँधी यह सब बोल रहे थे वहाँ का धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ख़ुद ऐसे मामलों को लेकर चिंता जता चुका है. वहाँ बार-बार सरकार से माँग हो रही है कि भारत को उन विशेष चिंता वाले देशों की सूची में डाला जाये जहाँ अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म होते हैं.
राहुल गाँधी ने ये नहीं कहा कि भारत में सिखों को कड़ा और पगड़ी पहनकर गुरुद्वारों में जाने नहीं दिया जाता, जैसा कि बीजेपी की ट्रोल आर्मी प्रचारित कर रही है. राहुल गाँधी ने आरएसएस के ‘हिंदू राष्ट्र’ प्रोजेक्ट को निशाना बनाते हुए कहा कि हमारी लड़ाई विचारधारा की है.
राहुल संविधान के उस संकल्प की याद दिला रहे थे जिसमें सभी धर्म के लोगों को आज़ादी के साथ अपनी आस्था पर चलने का अधिकार दिया गया है. चूँकि सिख अल्पसंख्यक समुदाय है और सामने एक सिख महोदय थे, तो उन्होंने कहा कि वे ऐसे भारत के लिए लड़ रहे हैं जहाँ सिख अपनी पगड़ी और कड़े के साथ गुरुद्वार जा सके.
यह बात सभी धर्मों के लिए है. ‘हिंदू राष्ट्र’ यानी एक धर्म को राष्ट्रीयता का आधार बताना क्या अल्पसंख्यकों के लिए ख़तरे की घंटी नहीं मानी जानी चाहिए ?
अमेरिकी दौरे में दिये गये राहुल गाँधी के भाषण दुनिया को बता रहे हैं कि भारत की आत्मा में आज भी गाँधी हैं. और उन्हें गोडसे से विस्थापित करने की संघी टोले की रणनीति को कड़ा मुक़ाबला मिल रहा हैं.
राहुल जब कहते हैं कि ‘मेरी भूमिका भारतीय राजनीति में प्रेम, सम्मान और विनम्रता के मूल्यों को शामिल करना है’ तो वे दुनिया को भारत के भविष्य के प्रति आश्वस्त कर रहे होते हैं. देश जान गया है कि राहुल से सच्चा देशभक्त आज कोई नहीं जिसके हाथों में संविधान और वाणी में गाँधी, बुद्ध, कबीर, रैदास और नानक का प्रकाश है.
इस प्रकाश को फैलने से रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
(यहाँ प्रकाशित विचार लेखक के अपने हैं. नेशन अलर्ट का सहमत होना कोई जरुरी नहीं है.)