डेढ़ दशक से जारी है रतनगढ़ से जसोल यात्रा

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रतनगढ़.

माँ माजीसा सेवा समिति रतनगढ़ धाम से जसोलधाम की यात्रा डेढ़ दशक पुरानी है. इस बार 16 वें वर्ष में यात्रा 16 सितंबर को रवाना होने वाली है.

माजीसा के रतनगढ़ धाम से जुडे़ लादुसिंह शेखावत बताते हैं कि यात्रा दो बसों में की जाएगी. इस मर्तबा तीन दिन की यात्रा पर तकरीबन 125 माजीसा भगत रवाना होंगे.

कहाँ कहाँ जाएंगे भगत . . ?

शेखावत के बताए मुताबिक यात्रा का शुभारंभ भादो सुदी तेरस को होगा. इस बार यह चाँदनी तेरस 16 सितंबर, दिन सोमवार को पड़ रही है.

पहले जसोलधाम में माजीसा मँदिर में माँ के दर्शन किए जाएंगे. इसके बाद तीर्थयात्री नागणेची माता के दर्शन के लिए पहुँचेंगे.

उल्लेखनीय है कि नागणेची माता का यह मंदिर नागाणा, कल्याणपुर, जिला बाड़मेर में स्थित है. नागणेच्या माँ (नागणेची माँ) सूर्यवंशी राठौड़ राजपूतों व सेेेेवड, सोढा़ राजपुरोहितों की एक कुलदेवी है.

इतिहास के जानकार बताते हैं कि राव सीहाजी के पोत्रव राव धूहड़ जी व पिथा जी सोढ़ा कन्नौज गए हुए थे.वहाँ पर राठौड़ राज करते थे. इन्होंने ही राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में नागणेच्या माँ के मँदिर की स्थापना की थी.

इतिहास की जानकारी देते हुए शेखावत बताते हैं कि मँदिर में देवी को हर हिंदू पूज सकता है. बारह सौ ईस्वी में राव धूहड़ जी ने माँ को शक्ति और देवी के रूप में देखा था.

बताते हैं कि तब से ही इन्हें सेवड़ राजपुरोहितों व राठौड़ों की कुलदेवी मान लिया गया. पूर्व में ज्योत नहीं करने देते थे इस कारण धुहड़ जी व पितर जी ने राजस्थान के खेड़ क्षेत्र में एक और मँदिर का निर्माण करवाया. यह राजस्थान के बोरटा, तहसील भिनमाल में स्थित है जिसे मिनी नागना भी कहा जाता है.

शेखावत के मुताबिक यहाँ से तीर्थयात्री ओम बन्ना के चोटिलाधाम के लिए रवाना होंगे. ज्ञात हो कि चोटिलाधाम एक पवित्र दर्शनीय स्थल है जो राजस्थान के पाली जिले के चोटिला गाँव में स्थित है.

पाली शहर से चोटिला की दूरी २० किलोमीटर है. जोधपुर से यह,५३ किमी दूर है. यहाँ लोग सफल यात्रा और मनोकामना माँगने दूर-दूर से आते हैं.

अनेक बुद्धिजीवी इस स्थान के बारे में मानते हैं कि ओम बन्ना का यह स्थान है. यहाँ पर ये एक बुलेट के रूप में पूजे जाते हैं. ये मँदिर पूरी दुनिया का अनोखा और एक मात्र बुलेट मँदिर है.

ओम बन्ना (बन्ना, राजपूत युवाओं के लिए प्रयुक्त एक सम्मानजनक शब्द) का पूरा नाम ओम सिंह राठौड है. ये चोटिला ठिकाने के ठाकुर जोग सिंह जी के पुत्र थे.

पाली जोधपुर राष्ट्रीय राज मार्ग पर ये स्थान है. यहाँ आज भी वही बुलेट मौजूद है. ओम बन्ना का चबूतरा भी है जहाँ वे दुर्घटनाग्रस्त हुए थे. यहाँ दिन रात जोत जलती रहती है. ग्रामीण यहाँ नारियल, फूल, दारू आदि बतौर प्रसाद चढा़ते हैं.

ब्रह्मा जी का करेंगे दर्शन . . .

यात्रा की तैयारियों में अपने साथियों के साथ जुटे शेखावत पुष्कर जाने की भी जानकारी देते हैं. उनके मुताबिक पुष्कर में सृष्टि के निर्माता माने जाने वाले ब्रह्मा जी के दर्शन किए जाएंगे.

पुष्कर से निकलकर यात्रा आगे मेड़ता पहुँचेगी. मेड़ता में कृष्ण भगत मीराबाई जी का मँदिर है. यात्रा के दौरान इसी मीराबाई के मँदिर के दर्शन किए जाएंगे.

मीराबाई का आशीर्वाद लेने के बाद तीर्थयात्री गुसाईंजी महाराज के दर्शन के लिए जुंजाला गाँव पहुँचेंगे. गुसाईं जी हिंदुओं के देवता हैं.

जुंजाला गाँव में एक प्रसिद्ध मंदिर है जोकि नागौर जिले में आता है. यद्यपि गुसाईंजी हिंदुओं के देवता हैं परंतु मुसलमान भी इनको मानते रहे हैं.

कहते हैं कि जब भगवान ने वामन अवतार धारण कर पृथ्वी का नाप किया तो पहला कदम मक्का मदीना में रखा गया था. वहाँ अभी मुसलमान पूजा करते हैं और हज करते हैं.

दूसरा कदम कुरुक्षेत्र में रखा था जहां अभी पवित्र नहाने का सरोवर है. तीसरा पैर ग्राम जुंजाला के राम सरोवर के पास रखा जहाँ आज मँदिर है. तीर्थ राम सरोवर में हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोग आते हैं.

हिंदू इसे गुसांईजी महाराज कहते हैं तो मुसलमान इसे बाबा कदम रसूल बोलते हैं. यह मँदिर ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत पुराना है.

यहाँ पर हर साल एक तो नव रात्रा के पहले दिन चैत्र सुदी १ व २ को तथा दूसरा आसोज सुदी १ व २ को मेला लगता है. यहाँ राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों से तीर्थयात्री आते हैं.

बाबा रामदेवजी के परिवार वाले भी यहाँ अपनी जात का जडूला चढाने जुंजाला आया करते थे. यहाँ मँदिर में एक पुराना जाल का पेड़ है जिसके नीचे बाबा रामदेवजी का जडूला उतरा हुआ है.

इसलिए जो लोग रामदेवरा आते हैं वह सब यात्री जुंजाला आते ही हैं. ऐसी मान्यता है कि जुंजाला आने पर ही तीर्थयात्रियों की रामदेवरा यात्रा पूरी मानी जाती है.। इसलिए भादवा और माघ के महीने में रामदेवरा के साथ साथ जुंजाला में भी मेला लगता है.

इसके बाद यात्रा अपने अँतिम पडा़व में नागौर जिले में स्थित
झोरड़ा पहुँचेगी. झोरडा़ वही स्थान है जहाँ पर हरिरामजी महाराज का मँदिर है. किसी को भी साँप काटने पर हरिराम जी महाराज झाडा़ देकर उपचार किया करते थे.

राजस्थान सहित देश भर के लोग झोरड़ा आकर हरिरामजी महाराज के मंदिर में धोक लगाते हैं. झोरड़ा गांव नागौर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

उल्लेखनीय है कि लोक देवता हरिरामजी की पूजा बगैर मूर्ति के की जाती है. राजस्थान का एकमात्र मंदिर है जहाँ पर पूजा के लिए मूर्ति नहीं बल्कि हरिरमजी की लाठी वह खड़ाऊ रखी हुई हैं. इनकी ही पूजा के साथ में बालाजी की भी पूजा होती है.

बहरहाल, तीर्थयात्रा की तैयारी अपने अँतिम चरण में बताई जा रही है. शेखावत व उनके साथी जहाँ पँजीयन करने में व्यस्त हैं वहीं मार्ग तय कर उसकी सभी तीर्थयात्रियों को जानकारी भिजवाई जा रही है.

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