नांदगाँव कलेक्टर, दुर्ग कमिश्नर का आदेश रद्द !
हाईकोर्ट ने पुन: जाँच के निर्देश दिए
नेशन अलर्ट/ 9770656789
राजनांदगांव.
उच्च न्यायालय बिलासपुर (हाईकोर्ट) ने एक मामले में नाराजगी जताते हुए उसकी पुनः जाँच के निर्देश दिए हैं. मामले में राजनांदगांव कलेक्टर सहित दुर्ग कमिश्नर द्वारा दिए गए आदेश रद्द कर दिए गए हैं. मामला राजनांदगांव जनपद पँचायत और आँगनबाडी़ सहायिका की नियुक्ति से जुडा़ है.
दरअसल, मामला वर्ष 2010 में नांदगाँव जनपद द्वारा निकाले गए आँगनबाडी़ सहायिका की भर्ती के विज्ञापन से जुडा़ हुआ है. तब चार अक्तूबर को ग्राम कुम्हालोरी में आँगनबाडी़ सहायिका की भर्ती के लिए आवेदन बुलवाए गए थे.
गाँव की ही अनुसूइया बाई नामक महिला ने आवेदन किया था. अगले वर्ष जब प्रक्रिया पूरी हुई तब अनुसूइया को चुन लिया गया. उसे कुम्हालोरी के वार्ड दो में नियुक्ति मिल गई. इसी तरह वार्ड एक में सरिता नामक महिला की नियुक्ति हो गई.
सुनवाई किए बगैर हटा दी गईं अनुसूइया, कोर्ट ने माना गलत हुआ…
मामले में मोड़ तब आया जब सरिता की नियुक्ति के खिलाफ गाँव की ही एक अन्य महिला अनीता महार ने शिकायत करते हुए कलेक्टर के समझ आवेदन लगाया. कलेक्टर ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ), जनपद पँचायत राजनांदगांव को जाँच के निर्देश दिए थे.
सीईओ ने निर्देश का पालन ऐसा किया कि अनिता-सरिता की लडा़ई में अनुसूइया पिस गई. सीईओ के जाँच प्रतिवेदन के आधार पर कलेक्टर ने उसकी नियुक्ति ही रद्द कर दी. मामले में परेशान अनुसूइया ने कमिश्नर के समझ पुनरीक्षण आवेदन भी लगाया लेकिन वहाँ भी उसे न्याय नहीं मिला.
थक हारकर अनुसूइया बाई ने हाईकोर्ट बिलासपुर में याचिका दायर की. जिसमें बताया गया था कि 24 जून 2013 को एक आदेश जारी कर उसे नौकरी से पृथक कर दिया गया. प्राकृतिक न्याय के सिध्दांत का उल्लंघन करते हुए अधिकारियों ने उसे सुनवाई का अवसर दिया बिना ही उससे नौकरी छीन ली.
सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी की सिंगल बैंच में हुई. उन्होंने कलेक्टर व कमिश्नर के आदेश को रद्द करते हुए पुनः जाँच के निर्देश जनपद सीईओ नांदगाँव को दिए हैं. आदेश में लिखा है कि जाँच करते समय सीईओ ने कलेक्टर के निर्देश का ध्यान नहीं रखा.
प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन प्रतीत होना बताते हुए कोर्ट ने आदेश में लिखा है कि नियुक्ति के दो साल बाद याचिकाकर्ता ( अनुसूइया बाई ) को सुनवाई का अवसर दिए बिना उनकी सेवा समाप्त कर दी गईं. इसका आधार क्या था यह भी सीईओ ने नहीं बताया था जोकि अन्याय है. अब नए सिरे से जाँच कर दस्तावेजों का परीक्षण कराने के साथ ही कलेक्टर-कमिश्नर के आदेश रद्द करते हुए प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए गए हैं.