साढे़ दस हजार आदिवासी अपने घर नहीं लौटना चाहते! आखिर क्यूं?
नेशन अलर्ट / 9770656789
जगदलपुर. बस्तर बदल रहा है . . . बदलने की रफ्तार कम ज्यादा हो सकती है लेकिन आदिवासियों की पीडा़ में कोई कमी नहीं आई है. यदि ऐसा नहीं है तो फिर बस्तर संभाग के साढे़ दस हजार आदिवासी क्यूं अपने घरों को लौटना नहीं चाहते हैं ?
कारण और कुछ नहीं बल्कि नक्सलियों द्वारा फैलाई गई दहशत है. आदिवासी हित का हल्ला मचाने वाले उन्हीं नक्सलियों ने इतना जुर्म किया कि सैकड़ों आदिवासी परिवार बस्तर से पलायन कर गए. इनमें से कुछ सरकारी योजनाओं पर भरोसा कर लौट आए लेकिन हजारों सदस्य अभी भी लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं.
24 सौ परिवारों ने घर छोड़ा . . .
उल्लेखनीय है कि पूरा बस्तर संभाग नक्सल प्रभावित है. इन्हीं वामपंथी उग्रवादियों की कारगुजारियों के चलते तकरीबन 24 सौ आदिवासी परिवार पलायन कर चले गए थे. यह सरकारी आंकड़ा है.
अकेले सुकमा जिले में रहने वाले 9 हजार 702 आदिवासी भाई बहन बीते वर्षों में विस्थापित हुए हैं. सुकमा की स्थिति में बडी़ तेजी से सुधार के हरसंभव प्रयास हो रहे हों लेकिन विस्थापित परिवारों का भरोसा अब तक जीत नहीं पाए. ऐसा आखिर क्यूं ?
इसी तरह बीजापुर जिले से 579 और दंतेवाडा़ जिले से 208 आदिवासी सदस्यों ने बार बार होने वाली हिंसा से मुक्ति का रास्ता अपने पलायन में ढूंढ लिया. ये सभी आदिवासी भाईबंधु पडोसी राज्यों तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की ओर कूच कर गए.
कुलजमा दो हजार 389 आदिवासी परिवारों के अपनी जमीन से पलायन का यह आंकड़ा आया कहाँ से ?
बताते हैं कि छत्तीसगढ़ से विस्थापित हुए इन आदिवासी परिवारों की पहचान एक सर्वे से हुई है. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की भूमि में अपने लिए जगह तलाश रहे इन विस्थापितों के सर्वे के लिए दल गठित किए गए थे.
जुलाई 2019 में ऐसा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और केंद्रीय जनजाति मंत्रालय की पहल पर हुआ था. तब इस तरह के दल गठित हुए थे जिनका काम पडोसी राज्यों के सीमावर्ती जिलों में इस तरह के विस्थापित परिवार ढूँढ़ना था.
छत्तीसगढ़ के साथ साथ महाराष्ट्र, ओडिसा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकार को यह पता लगाने कहा गया था कि 13 दिसंबर 2005 से पहले कितने आदिवासी परिवार विस्थापित हुए. ऐसे निर्देश पुनर्वास की प्रक्रिया शुरु करने के लिए थे.
विस्थापन और पुनर्वास के इस मसले पर कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य श्रीमती फूलोदेवी नेताम ने अभी हाल ही में केंद्रीय सरकार से सवाल किया था.
जवाब में जनजाति कार्य मंत्रालय संभाल रहे राज्य मंत्री दुर्गादास उइके ने बताया कि . . .
” प्रभावित परिवार राज्य की पुनर्वास योजनाओं की जानकारी देने और सुरक्षा शिविरों के माध्यम से उपलब्ध सुरक्षा के बावजूद अपने मूल गाँवों / स्थान पर लौटने को तैयार नहीं है. “