फटी भीत है, छत चूती है आले पर बिसतुइया नाचे
नेशन अलर्ट/9770656789
राजनांदगाँव.
ग्राम आलीवारा की शालेय छात्राओं की रोती बिलखती तस्वीरों ने प्रदेश की शासकीय शालाओं की बदहाल स्थिति की पोल खोल कर रख दी है. हाईकोर्ट के भी तेवर तल्ख हो गए हैं. दरअसल, मामले को स्वत: संज्ञान में लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है.
हाईकोर्ट ने राज्य शासन को प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए भर्ती कब तक होगी, यह बताने के निर्देश दिए हैं. इसके लिए चल रही प्रकिया की जानकारी भी मंगाई गई है. मामले में अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी.
महँगी पडी़ जेल भेजने की धमकी . . .
हाल ही में नादगाँव में शिक्षकों की मांग करने वाली शालेय छात्राओं को तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) ने बुरी तरह डांट दिया था. जिलाधीश के जनदर्शन में आलीवारा की उक्त छात्राएं अपनी समस्या बताने आई हुई थी.
जिलाधीश महोदय ने समस्या से वाकिफ होने के बाद उसके निराकरण के लिए छात्राओं को डीईओ से मिलने भेज दिया था. थोडी़ ही देर बाद डीईओ के चेंबर से छात्राएं रोती बिलखती निकली थी.
मामला आया और गया हो जाता यदि रोती हुई छात्राओं की शिक्षकों की कमी से जुडी़ समस्या मीडिया प्रस्तुत नहीं करता. खबर पढ़ने और देखने के बाद बवाल मच गया.
राजनीतिक दलों में बेचैनी दिखाई देने लगी. थक हारकर ऊपर से मिले निर्देश के मुताबिक डीईओ को लेकर कलेक्टर आलीवारा पहुँचे थे.
मीठी मीठी बात बोली गईं, माफी माँगने की औपचारिकता भी निभाई गई लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था. हाईकोर्ट ने मामले को सँज्ञान में ले लिया था. तब से विभागीय अधिकारियों को हाईकोर्ट के तीखे तेवरों से जूझना पड़ रहा है. जवाब देते नहीं बन रहा है.
मुख्य न्यायाधीश को प्रणाम . . .
मामले की गँभीरता को समझते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने जनहित याचिका के रूप में इसकी सुनवाई शुरू की. उन्हें प्रणाम क्यूं कि उन्होंने रोती बिलखती बच्चियों की शिक्षा और शिक्षकों की कमी को इस तरह से लिया.
प्रदेश के शालेय शिक्षा सचिव, संचालक शालेय शिक्षा, नांदगाँव जिलाधीश एवं शिक्षा अधिकारी से जवाब तलब किया. जस्टिस सिन्हा सहित जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था का ये हाल है तो कैसे काम चलेगा ?
राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता यशवंत सिंह ठाकुर ने कोर्ट में बताया कि प्रदेश में 297 स्कूल शिक्षकविहीन हैं. वहाँ पर वैकल्पिक व्यवस्था की गई है जिनके सहारे वहाँ अध्यापन कराया जा रहा है.
इनमें से 60 शालाओं में स्थानीय स्तर पर शिक्षकों की व्यवस्था की गई है. आसपास की शालाओं में पदस्थ शिक्षक फिलहाल इन शिक्षकविहीन शालाओं में भी पढ़ाते हैं.
इसे इस तरीके से भी समझ लीजिए कि एक-एक शिक्षक के ऊपर दो-दो शालाओं की जिम्मेदारी आन पडी़ है. यह स्थिति वाकई उन गरीब व मध्यम वर्गीय पालकों के लिए चिंताजनक है जिनके बच्चे शासकीय शालाओं में पढ़ते हैं.
कोर्ट को यह भी बताया गया कि समस्याग्रस्त जिलों में जिलाधीश और स्थानीय प्रशासन ने जनभागीदारी समिति के माध्यम से अस्थाई शिक्षकों की व्यवस्था भी की है. दूरस्थ और नक्सल प्रभावित शालाओं में शिक्षा दूत नियुक्त किए गए हैं.
बहरहाल, इस तरह की वैकल्पिक व्यवस्था पर हाईकोर्ट ने सवाल उठाया है. शासन का ऐसा जवाब सुनकर हाईकोर्ट ने हैरानी भी जताई है. चीफ जस्टिस सिन्हा ने कहा है कि शिक्षा व्यवस्था का ये हाल है तो कैसे काम चलेगा.
राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया है कि प्रांत में 48 हजार 548 सरकारी शालाएँ हैं. करीब 5 हजार 484 शासकीय शालाएँ इनमें से ऐसी हैं जहाँ एक ही शिक्षक पदस्थ हैं. 297 स्थानों पर बिना शिक्षक के शासकीय शालाओं का सँचालन कैसे किया जा रहा होगा यह समझ से परे है.
प्रदेश की शासकीय शालाओं में कुलजमा एक हजार 580 शिक्षकों की कमी बताई जाती है. 138 व्याख्याता, 358 शिक्षक और एक हजार 84 सहायक शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं.
प्राचार्य के 95 और प्रधान पाठक के 149 पद छत्तीसगढ़ में खाली पडे़ हुए हैं. शासकीय शालाओं में चपरासी के 999 पद स्वीकृत हैं. इनमें से 533 पद ही ऐसे जिन पर शासकीय चपरासी कार्यरत हैं. मतलब साफ है कि बिना किसी चपरासी की नियुक्ति के 466 शालाओं का सँचालन प्रदेश में हो रहा है.
वैसे भी कवि बाबा नागार्जुन बहुत पहले कह गए हैं जोकि आज बरबस याद आता है :
घुन खाये शहतीरों पर की बारहखड़ी विधाता बांचे
फटी भीत है, छत चूती है आले पर बिसतुइया नाचे
बरसा कर बेबस बच्चों पर मिनट-मिनट में पांच तमाचे
इसी तरह दुखरन मास्टर गढ़ता है आदम के सांचे.