पापा ही नहीं सभी कहते हैं . . . बडा़ नाम करेगा !
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जोधपुर. पापा ही नहीं बल्कि सभी लोग कहते हैं कि वह भविष्य में बडा़ नाम करेगा . . . जी हाँ, यहाँ बात हो रही है रौनक सियाग की जिनके कार्यों के चर्चे ब्लू सिटी से बहुत आगे निकल चुके हैं.
वर्ष 2005 के जुलाई माह की पहली तारीख . . . इसी रोज मोहन-सुशीलादेवी के घर किलकारियां गूँजी थी. किलकारी करने वाला कोई और नहीं बल्कि रौनक ही था.
जैसे जैसे रौनक की उम्र बढ़ती गई, जिंदगी की पाठशाला में कक्षाएँ बढ़ती गईं, वैसे वैसे सफलता के इतने झंडे़ं उसने गाडने शुरू किए कि यह सिलसिला अनवरत जारी है.
हनुमान का सच्चा भगत. . .
प्रभु श्रीराम के सच्चे सेवक थे हनुमानजी. . . और उनके सच्चे भगत हैं रौनक चौधरी जिन्हें बालाजी मंदिर के आसपास रहने वाले लोग बुलेट भैया के नाम से जानते हैं. रौनक बताते हैं कि वह बालाजी की आराधना कई वर्षों से करते आ रहे हैं. प्रत्येक मंगलवार को दर्शन के लिए बालाजी मंदिर जाते हैं.
उनके बालाजी मंदिर पहुँचते ही बुलेट वाले भैया आ गए का शोर सुनाई देता है. वह मंदिर बाद में जाते हैं. . . पहले उन गरीबों से मिलते हैं जिनके लिए वह कुछ न कुछ लेकर आए हुए रहते हैं.
बीए प्रथम वर्ष के छात्र रौनक अब तक कई दर्जन गरीबों को कंबल सहित कपडे़ आदि वितरित कर चुके हैं. कुत्तों को बिस्कुट, गायों को हरा चारा, पक्षियों को दाना डालना तो उनकी दैनिक दिनचर्या में शामिल हैं.
चौक चौराहों पर नज़र आने वाले गरीब बच्चे रौनक से मिलते ही मुस्करा उठते हैं. हो भी क्यों न . . . क्यूं कि रौनक के पास उन बच्चों के लिए हमेशा ही फल, चाकलेट अथवा खिलौने में से कुछ न कुछ रहता जरूर है. बीमार अथवा घायल जानवरों की सेवा करने रौनक हमेशा दवाओं को अपने साथ लिए चलते हैं.
रौनक की कभी इच्छा सीए बनने की थी जोकि अब वकील बनने पर आकर ठहर गई है. फिलहाल अपने पिता से मिलने वाले पैसों से मदद करने वाले रौनक कहते हैं कि जब कभी वह खुद कमाने लगेंगे तब अपनी आय का 60 फीसद हिस्सा इन्हीं सब कार्यों में खर्च करेंगे.
बहरहाल, रौनक के पिता मोहन और माता सुशीलादेवी चौधरी अपने बेटे से बेहद खुश हैं. झालामंड में जय माजीसा भारत गैस एजेंसी के संचालक मोहन सियाग कहते हैं कि जब किसी पिता को उसके पुत्र के कार्यों के चलते जाना जाने लगे तो सीना गर्व से चौडा़ होना स्वाभाविक है. . . और इसी स्वाभाविकता का अहसास रौनक हमें करा रहा है.