इतना क्यों हंसती हैं, हमारे मुल्क की बेचेहरा औरतें. . .

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जन संस्कृति मंच के आयोजन में पढी़ गईं कविताएँ

नेशन अलर्ट / रायपुर. जन संस्कृति मंच की रायपुर ईकाई ने शब्द प्रसंग के तहत छत्तीसगढ़ के दस बेहद उर्वर कवियों को लेकर एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया. यह काव्य गोष्ठी कई मायनों में इसलिए भी अलग थीं कि सभी कवियों ने समकाल की चुनौतियों के मद्देनजर खौफनाक समय से मुठभेड़ करती हुई कविताओं का पाठ किया.

कार्यक्रम में कवियों की कविताओं पर केंद्रित आधार लेख का समीक्षक इंद्र कुमार राठौर ने वाचन किया. कार्यक्रम का कुशल संचालन लेखिका कल्पना मिश्रा ने किया.

इस मौके पर स्त्री मन की पीड़ा को गहन अनुभूतियों के साथ अभिव्यक्त करने वाली कवियित्री जया जादवानी ने बेचेहरा शीर्षक से कविता पढ़ी-

एक सवाल का जवाब हमेशा ढूंढती हूं

इतना क्यों हंसती हैं

हमारे मुल्क की बेचेहरा औरतें

आखिर कहां चली जाती हैं

खुद से गुम हुई औरतें ?

कवि कमलेश्वर साहू ने अपनी कविता में कहा-

‘उनकी तृष्णा तक होती है चांदी की

वे पसंद करते हैं

चांदी के जूतों की मार

वे हमेशा चांदी नहीं बोते

मगर फसल चांदी की काटते हैं’

बेहद कम उम्र में ही अपनी परिपक्व कविताओं के लिए देशव्यापी पहचान बनाने वाली कवि वसु गंधर्व ने कहा-

“मैं एक हज़ार आइनों के अपने प्रतिबिम्बों में

एक हज़ार बार हो चुका हूँ उम्रदराज़

और अपने भीतर दौड़ती एक हज़ारवें पुरखे की नवजात दृष्टि में

समाई बूंद भर रोशनी के उजास से टटोल चुका हूँ

अपनी आगामी पीढ़ियों के हिस्से की रातों का अंधकार।”

कवि विनोद वर्मा ने अपनी कविताओं के जरिए कुछ जरूरी सवाल छोड़े. उन्होंने अपनी कविताओं में कहा-

जब लौटना हो

तब लौटना

जहां मन हो

वहां लौटना

हर जाने वाला

लौटना ही चाहता है एक दिन

लौटना तुम्हारा सपना हो सकता है

पर कोई नहीं लौट सकता

सपनों में

लौटना होता है सच के पास ही

भले नीम अंधेरा हो इस समय

आस रखना रोशनी की

अंधेरे से अंधेरे में मत लौटना.

कवि बुद्धिलाल पाल ने राजा की दुनिया को लेकर कई यक्ष प्रश्न खड़े किए-

“राजा कदम कदम पर

बहुत चौकन्ना होता है”

जबकि वस्तुत:

“यह उसका स्वभाव नहीं होता”

अलबत्ता

“उसकी आंखों में

पट्टी बांधी जाती है इसकी’

कि वह चौकन्ना है , घिरा है मक्कार चाटूकारों से।

“राजा अदृश्य होकर

वार करने की कला में माहिर होता है”

“वह अदृश्य ही रहता है

परंतु जब भी दृश्य में होता है

तो प्रकट होता है

ईश्वर की तरह

पीतांबर धारण किए होता है

मुद्रा तथास्तु की होती है !”

स्त्री विमर्श को अपने तीखे तेवर से नया आयाम देने वाली कवियित्री सुमेधा अग्रश्री ने पुरौनी शीर्षक से कविता पढ़कर सबका दिल जीत लिया.

गोरी, तीखी, नाजुक, सुड़ौल नही होती जो

वो भी होती तो लड़कियां ही हैं

पर इनके बनने की प्रक्रिया अलग है.

धीरे-धीरे पकती है ये तानों, उलाहनों, तिरस्कार

अवहेलना की भट्ठी पर

जो झुलस जाती है

वो लड़की ही रह जाती है

जो तप जाती है

वो ईश्वर द्वारा धरती को दी गई पुरौनी है.

अज़ीम शायर ज़िया हैदरी ने व्यंग्य भरी शायरी से माहौल में गर्मजोशी भर दी-

हमारे बच्चों को सच बोलना सिखाए कौन

जो हैं कबीले के सरदार झूठ बोलते हैं

वे बात करते हैं हर बार साफ गोई की

वो साफ गोई से हर बार झूठ बोलते हैं.

जन संस्कृति मंच की भिलाई ईकाई से संबंद्ध कवि विनोद शर्मा ने सामाजिक अंतर्विरोधों और लोकतंत्र की विडंबनाओं को उजागर करने वाली कविताएं पढ़ी. उन्होंने अपनी कविता में कहा-

“धरती के गर्भ में भरा होता है नेह

कोमल और मुलायम जीने की लालसा जगाता हुआ

दौड़ने का दम भरता हुआ

कि थकी हुई पलकों पर उंगलियां फेरता हुआ”

धरती कभी बांझ नहीं होती !

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