क्या मोदी लोकप्रिय और सर्वस्वीकार्य नेता हैं ?
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प्रकाशपुंज पांडेय
समाजसेवी और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाशपुंज पांडेय ने देश के ताज़ा राजनीतिक हालात पर अपने लेख द्वारा मीडिया के माध्यम से देश की जनता से एक बड़ा प्रश्न किया है कि, ‘क्या मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है?’
पांडेय ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि 2014 के बाद से जिस प्रकार से नरेंद्र मोदी देश में राजनीति के महानायक के रूप में उभरे थे, वह पूरे विश्व में देखा।
भारत की 137 करोड़ जनता में से अधिकांश लोगों ने उन्हें अपने सर आंखों पर बिठाया और उनका चेहरा देखते हुए भारतीय जनता पार्टी को 2014 और उसके बाद 2019 में भी अपार बहुमत से देश के लोकसभा चुनाव में विजय कराया।
2014 के बाद 2019 में दोबारा नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। भारत गणराज्य का प्रधानमंत्री बनना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है लेकिन साथ ही उसने ही बड़ी ज़िम्मेदारी भी है, क्योंकि 137 करोड़ आबादी वाले इस देश में विभिन्न जातियों, विभिन्न धर्म समुदायों, विभिन्न वर्गों और विभिन्न क्षेत्रों में रहते हैं।
फिर भी भारत एक है
यहां बोली – भाषा – विचार – खान-पान – सोच, हर चीज़ एक दूसरे से अलग है फिर भी भारत एक है। इसीलिए ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी थी। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि 2020 आते-आते भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो कि एक लोकप्रिय और सर्वस्वीकार्य नेता हैं, उनकी लोकप्रियता घटती जा रही है।
यह सब ने देखा है कि वर्ष 2019 के चुनाव से पहले भी भारतीय जनता पार्टी के बहुत से सहयोगी दलों ने एनडीए का साथ छोड़ दिया।
प्रकाशपुंज ने कहा कि छोटी मोटी पार्टियों के साथ ही बड़ी पार्टियों ने भी भारतीय जनता पार्टी का साथ समय-समय पर छोड़ा जैसे तेलुगू देशम पार्टी हो उसके बाद पीडीपी हो या शिवसेना हो या फिर कोई और पार्टी।
इसका क्या कारण है? यह जानना जरूरी है। आज एक और खबर आ रही है की केंद्रीय मंत्री और शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने भी इस्तीफ़ा दे दिया है। यह किस ओर इशारा कर रहा है। यह जानना ज़रूरी है।
लोगों की माने तो भारतीय जनता पार्टी में शीर्ष नेतृत्व और सहयोगी दलों में वार्तालाप की कमी साफ़ दिखाई देती है। सूत्र बताते हैं कि अपने अहंकार के चलते वे लोग किसी की बातें समझना तो दूर सुनना भी पसंद नहीं करते हैं।
शायद यही कारण था कि भारतीय जनता पार्टी के भी बहुत से नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी, तो सहयोगियों के क्या कहने!
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के कई बड़े नेताओं की वर्चुअल मीटिंग जो की यूट्यूब पर लाइव होती थी उसमें भी लाइक (पसंद) से ज्यादा अनलाइक (नापसंद) आए हैं। मतलब कि युवाओं ने भी नरेंद्र मोदी को अब अपनी राय बता दी है।
प्रकाशपुंज पांडेय ने कहा कि असल बात यह है कि मोदी जी को जितना इस देश की जनता ने प्यार दिया था वह इसलिए दिया था कि वह देश में जिन वादों के साथ चुनाव में आए थे उन वादों को पूरा करें।
लेकिन ना दो करोड़ रोज़गार प्रतिवर्ष मिले, न 15 लाख रुपये प्रत्येक व्यक्ति के खाते में आए, न 50 दिनों में नोटबंदी से देश उबर पाया, ना जीडीपी में बढ़ोतरी हुई, उल्टा ऐतिहासिक स्तर पर गिर गई।
न ही जीएसटी के नियमों को सुचारू रूप से लागू किया गया, ना ही महंगाई पर काबू पाया जा सका ना ही आप की विदेश नीति सही रही उल्टा पड़ोसी राज्यों से हमारे देश के रिश्ते खराब होते चले गए।
ना ही सीमा पर हमने काबू पाया, ना ही आतंकवाद और नक्सलवाद पर हमने काबू पाया, ना ही शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हुई तरक्की की और उसके बाद कोरोना काल के बाद देशव्यापी लॉकडाउन में न ही देश ने 21 दिनों पर कोरोना पर विजय हासिल की।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने भी यह खुलासा किया कि अन्ना आंदोलन भी एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा था जिसके कारण यूपीए की सरकार को गिराया जा सके।
क्योंकि अन्ना हजारे को अब देश में कोई कमी नजर नहीं आती और उस समय बहुत तेजी से उभरे स्वामी रामदेव को भी अब देश में कोई भ्रष्टाचार या काला धन दिखाई नहीं देता। यह बहुत बड़ी विडंबना है।
प्रकाशपुंज पांडेय ने अंत में कहा कि अब देश की जनता को “सत्याग्रह, आत्मनिग्रह और आत्मचिंतन” करने की आवश्यकता है, क्योंकि सरकारें तो आएंगीं और जाएंगीं, पर यह देश हमेशा विजय पथ पर चलते रहे यही हम सभी भारतीयों की आशा है।