फटी भीत है, छत चूती है . . . आले पर बिस्तुईया नाचे !
55 फीसदी शालाओं में नहीं है पीने के पानी की जांच की सुविधा
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नईदिल्ली / रायपुर.
राष्ट्रीय स्तर पर कराए गए सर्वे का लब्बोलुआब यह है कि 90 फीसदी स्कूलों में पीने का पानी तो है लेकिन 55 फीसदी स्कूलों में नहीं होती पानी की शुद्धता की जांच . . . और तो और 22 प्रतिशत शालाओं में खेल के मैदान नहीं हैं जबकि 21 प्रतिशत शाला ऐसी हैं जहांं खेल यंत्र मौजूद नहीं हैं.
यह अध्ययन राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कराया है. उसकी रपट बताती है कि
देश के 22 फीसदी स्कूल या तो पुराने भवनों में चल रहे हैं या फिर जर्जर हालत में है.
31 फीसदी स्कूलों के भवनों की दीवारों पर दरारें भी हैं यानि देश के 22 फीसदी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे सुरक्षित नहीं है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने देश भर के 12 राज्यों में स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के इंतजाम की जानकारी जुटाने के लिए सर्वे किया.
12 राज्य के 201 जिले शामिल
यह सर्वे 12 राज्यों के 201 जिलों के 26071 सरकारी व निजी स्कूलों में किया गया. हालांकि इसमें सरकारी स्कूलों की संख्या अधिक है.
छत्तीसगढ़ के अलावा चंडीगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, मध्यप्रदेश, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, और राजस्थान में किए गए सर्वे में 4 प्रतिशत स्कूल शामिल थे.
क्या कहता है अध्ययन
बताया गया कि अध्ययन के आंकडे़ चौंकाने वाले हैं. रपट बताती है कि 44 फीसदी स्कूलों में ही कंप्यूटर उपलब्ध हैं.
34 प्रतिशत शालाओं में हर कक्षा के लिए कमरे उपलब्ध नहीं हैं.
40 फीसदी शालाओं में प्रयोगशालाओं को लेकर लचर व्यवस्था का उल्लेख रपट में है.
22 फीसदी शालाएं ऐसी हैं जहांं प्रांगण में हाई वॉल्टेज ट्रांसफार्मर लगे पाए गए हैं.
63 प्रतिशत शालाओं में ही अग्निशमन यंत्र या आग बुझाने की व्यवस्था पाई गई यानिकि 37 प्रतिशत शालाएं ऐसी थी जहांं आग लगने पर उसे बुझाने की कोई सुविधा नहीं पाई गई.
इसी तरह से सिर्फ 21 प्रतिशत शालाओं में भूकंपरोधी उपाय पाए गए. 79 फीसदी शालाएं ऐसी हैं जहांं पर भूकंप आने पर किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है.
खेल के मैदान भी नहीं
बच्चों के शारीरिक विकास के लिए उनका खेलना कूदना बेहद जरुरी है लेकिन क्या ऐसी सुविधा शासकीय अथवा निजी शालाएं देशभर में बच्चों को उपलब्ध करवा पा रही हैं?
इस प्रश्न का जवाब है पूरी तरह नहीं क्यूं कि 22 प्रतिशत स्कूलों में खेल के मैदान ही नहीं हैं जबकि 21 प्रतिशत शालाओं में खेल यंत्र मौजूद नहीं पाए गए हैं.
देश के 11 प्रतिशत स्कूल नदी या सागर किनारे मौजूद हैं. इनमें से 56 फीसदी स्कूलों में बाढ़, तूफान और बादल फटने से बच्चों को बचाने के इंतजाम नहीं हैं. न ही बच्चों को आपातकाल स्थिति से बाहर निकालने के लिए कोई वाहन मौजूद था.
रपट बताती है कि सिर्फ 28 फीसदी स्कूलों में स्कूल प्रबंधन की बसें मौजूद हैं. इसमें भी 34 फीसदी बसों में फर्स्ट एड किट की उपलब्धता नहीं पाई गई थी.
अध्ययन की एक अच्छी बात यह थी कि 96 फीसदी शालाओं में शौचालय मौजूद हैं. 89 फीसदी स्कूलों में महिलाओं के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था की गई है. 67 प्रतिशत शालाओं में सफाईकर्मी की व्यवस्था थी.
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगों ने बताया कि आयोग ने बच्चों की भागीदारी के साथ यह रपट तैयार की है.
उन्होंने कहा कि यह रपट देश के बच्चों की स्कूल सुरक्षा सुनिश्चित करने में मददगार साबित होगी. यह रपट उन बच्चों को समर्पित है जो हर अच्छी य़ा बुरी स्थिति का सामना करते हुए शिक्षा प्राप्त करने के अपने राष्ट्रीय दायित्व को पूरा कर रहे हैं.
मतलब साफ है कि बाबा नागार्जुन की वह कविता आज भी शालाओं की स्थिति पर सही उतरती है जिसमें उन्होंने कहा था कि
फटी भीत है,
छत चूती है,
आले पर बिस्तुईया नाचे !