कहां खो गए नांदगांव का नाम “रौशन” करने वाले ?

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नेशन अलर्ट / 97706 56789

राजनांदगांव.

संस्कारधानी नगरी राजनांदगांव के वो चेहरे न जाने कहां खो गए हैं, गुम हो गए हैं जिन्होंने दिनरात “मेहनत” कर इसका नाम “रौशन” किया था. इनकी गुमशुदगी से संस्कारधानी बेचैन होने लगी है.

इनकी तलाश में लोगों को सांत्वना पहुंचाने पुलिस ने किसी के मोबाइल को ट्रेस करना चालू किया है तो किसी की सूचना देने वालों के लिए पुरस्कार की घोषणा कर रखी है.

जी हां , शायद आप भी शीर्षक पढ़कर धोखा खा गए होंगे. लेकिन यह धोखा उस धोखे की तुलना में माफी योग्य है जो इन्होंने समाज, देश-प्रदेश, अर्थतंत्र अथवा नियम, कायदे और कानून को दिया है.

इनमें से एक का कृत्य तो सीधे चुनाव से जुडा़ हुआ है जबकि दूसरे का काम शांति – सद्भाव, संविधान को ठेस पहुंचाने वाले लोगों की सहायता करने का है.

आरोप तो दोनों पर ही गंभीर हैं. इसकी गूंज संस्कारधानी से निकल कर रायपुर होते हुए दिल्ली तक जा ही रही है. यदि यह गलत नहीं थे तो छिपे क्यूं ? . . . सच्चाई का इन्होंने सामना क्यूं नहीं किया . . ?

दादा ट्रेवल्स . . . राजेश बाफना :

पहले बात दादा ट्रेवल्स की . . . इस पर आरोप है कि इसने विधानसभा उपचुनाव में कम संख्या में गाडियां लगा कर ज्यादा संख्या में गाडियों का बिल प्रस्तुत किया.

आपसी खींचतान में मामला उजागर हो गया तो रायपुर पुलिस लाइन की ओर से प्रकरण कोतवाली रायपुर में दर्ज करवाया गया. चूंकि मामला पुलिस द्वारा चुनाव कार्य में बोगस बिल से जुडा़ हुआ था इस कारण एफआईआर भी तुरंत हो गई.

17 की जगह 32 बसों के फर्जी बिल का यह मामला तकरीबन 26 लाख के बेजा आहरण से जुडा़ बताया गया. मामले की जांच संभाल रहे कोतवाली रायपुर में पदस्थ आरके पात्रे के मुताबिक प्रकरण में दादा ट्रेवल्स के राजेश बाफना पर अपराध दर्ज हुआ है.

पात्रे बताते हैं कि राजेश मूलत: राजनांदगांव का रहने वाला है. उस पर भादंवि की धारा 420, 467, 468, 471, 472 सहित धारा 34 भी लगाई गई है. गिरफ्तारी के संबंध में पात्रे मौन साध लेते हैं.

राजनांदगांव कार्यालय से मिली खबर बताती है कि अपने खिलाफ जुर्म दर्ज होते ही राजेश फरार है. उसका मोबाइल भी स्वीच आफ आ रहा है. ज्यादातर संगी-साथियों, नाते-रिश्तेदारों ने उससे दूरी बना ली लेकिन कुछेक उसकी मदद करते-कराते प्रतीत हो रहे हैं.

लैंडमार्क रायल इंजीनियर . . . वरुण जैन :

दूसरा मामला भी गंभीर ही है. नक्सल प्रभावित इलाकों में पूरी शांति के साथ काम करने का क्या तरीका हो सकता है यह आपको यदि जानना हो तो लैंडमार्क रायल इंजीनियर नामक फर्म से मिल लीजिए.

इस फर्म के कर्ताधर्ता कोई वरूण जैन बताए जाते हैं. नक्सलियों से दोस्ती कर, नक्सलियों की जरुरत का हर सामान चाहे वह हथियार ही क्यूं न हो उन तक पहुँचा कर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बिना नुकसान काम कर इन्होंने संस्कारधानी का नाम रौशन करने की ठानी थी.

वरुण की परेशानी तब बढी़ जब कांकेर पुलिस ने किसी एक को गिरफ्तार कर उससे मिलने वाली जानकारी के आधार पर एक एक कडी़ जोड़नी शुरु की. एक, दो, तीन, चार नहीं बल्कि 12 लोग जो शहरों में रह कर इसी तरह का काम करते हुए नक्सलियों के मददगार थे उन्हें कांकेर पुलिस ने गिरफ्त में ले लिया. इनमें से कोई राजनांदगांव का है तो कोई मध्यप्रदेश अथवा उत्तर प्रदेश का.

मामला कांकेर के एएसपी कीर्तन राठौर के नेतृत्व में जब आगे बढा़ तो पहले मेसर्स लैंडमार्क रायल इंजीनियरिंग ( इंडिया ) प्रा.लि. बिलासपुर के मालिक निशांत ( 41 ) पिता सुरेश जैन निवासी शांति नगर बिलासपुर का नाम आया. फिर इस कहानी में लैंडमार्क रायल इंजीनियर राजनांदगांव के मालिक वरूण जैन अवतरित हुए. उनकी पतासाजी करते हुए जब कांकेर पुलिस थक गई तो उसने वरुण पर दस हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

कांकेर पुलिस अधीक्षक एमआर आहिरे ने आरोपी वरूण जैन के संबंध में किसी भी प्रकार की सूचना देने एवं गिरफ्तारी कराने वाले को उक्त इनाम देने की घोषणा की है. पुलिस थाना सिकसोड़ सहित कांकेर के वो टेलीफोन नंबर भी सार्वजनिक किए गए जिस पर वरुण से जुडी कोई भी जानकारी दी जा सकती है.

बहरहाल, दोनों ने संस्कारधानी का भले ही गलत तरीकों से लेकिन नाम ही रौशन किया है. एक तरफ राजेश बाफना ( दादा ट्रेवल्स ) है जिसने चुनावी कार्य में लगाई गई गाडियों की बिलिंग में कथित तौर पर गड़बड़ी की है.

. . . तो दूसरी तरफ वह वरुण जैन ( लैंडमार्क रायल इंजीनियर राजनांदगांव ) है जिसने ज्यादा कमाई के सिलसिले में सही गलत का भी ध्यान नहीं रखा. वरुण पर देश विरोधी ताकतों से मिलीभगत का आरोप कोई आपने अथवा हमने नहीं लगाया है बल्कि पुलिस का है.

गौरतलब, यह है कि दोनों ही ( राजेश बाफना और वरुण जैन ) उस राजनांदगांव के निवासी हैं जोकि नक्सल प्रभावित है. साथ ही साथ दोनों से जुडा़ मामला भी नक्सल बेल्ट से संबंधित है.

. . . तो क्या यह माना जाए कि दोनों ही पैसे वाले ऐसे ही नहीं बने हैं ?

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