क्या झारखंड में भी “अभूतपूर्व जीत” की ओर बढ़ रही भाजपा?
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रांची.
झारखंड विधानसभा चुनाव के जैसे जैसे चरण पूरे होते जा रहे हैं वैसे वैसे भाजपा की “अभूतपूर्व जीत” पर बात होने लगी है. राजनीतिक विशेषज्ञ “अभूतपूर्व जीत” को महाराष्ट्र और हरियाणा से जोड़कर देखते हैं.
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र व हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बाद यह कहा था कि दोनों राज्यों में भाजपा की अभूतपूर्व जीत हुई है.
इसमें ले देकर भाजपा ने हरियाणा में तो सरकार बना ली लेकिन देश की आर्थिक राजधानी कहलाने वाले मुंबई का महाराष्ट्र राज्य भाजपा से दूर हो गया.
अब यही “अभूतपूर्व जीत” झारखंड में दिखाई देने लगी है. भाजपा की ज्यादा चिंता उन सीटों को लेकर है जहां पर उसके ही विद्रोही उसकी राह कठिन कर रहे हैं. इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण सीट मुख्यमंत्री रघुवर दास की जमशेदपुर है.
जब रघुवर दाग कहकर संबोधित किया था
मुख्यमंत्री रघुवर दास की राह उनके ही कबीना मंत्री रहे सरयू राय ने मुश्किल की है. भाजपा ने सरयू राय को टिकट नहीं दी तो उन्होंने पूर्व और पश्चिम से बागी होकर चुनाव में ताल ठोंक दी.
अब रघुवर दास के खिलाफ वह चुनावी मैदान में हैं. यह वही सरयू राय हैं जिन्होंने नामांकन के तुरंत बाद रघुवर दास को रघुवर दाग कहकर संबोधित किया था. मतलब साफ है कि सरयू अब आरपार की लड़ाई के मूड़ में हैं.
इसके अलावा भवनातपुरय से भ्रष्टाचार के आरोपी भानुप्रताप शाही, पांकी से यौनशोषण सहित हत्या के आरोपी शशिभूषण मेहता, बाघमारा से यौनशोषण सहित रंगारी के आरोपी रहे ढूल्लू मेहतो को टिकट दिए जाने से भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता परेशान हैं.
उनकी परेशानी तब और बढ़ जाती है जब बोकारो विधायक रहे बिरंची नारायण का एक वीडियो वायरल हो जाता है. इस वीडियो में वह क्षेत्र में किए गए कार्यों से संबंधित सवालों का जवाब भी नहीं दे पाते हैं.
पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री रघुवर दास को लेकर विरोध के स्वर सुनाई देते रहे हैं. चुनाव के समय अब यह स्वर हाई स्केल पर पहुंचने लगे हैं. रघुवर दास का पार्टी के भीतर ही जबरदस्त विरोध हो रहा है.
इनमें पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष करिया मुंडा हो अथवा अनंतप्रताप देव, गणेश मिश्रा, सरयू राय, राधाकृष्ण किशोर, दिनेशानंद गोस्वामी जैसे वरिष्ठ नेता रहे हों जिन्हें इस बार टिकट के लिए पूछा भी नहीं गया. इन सबकी नाराजगी मुख्यमंत्री से है.
बताया जाता है कि राज्य में 24 में से 10 जिलों की भाजपा कमेटी अपने ही नेताओं से नाराज चल रही है. यदि समय रहते भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इन्हेें समझाने का प्रयास नहीं किया तो चुनाव परिणाम भाजपा के लिए “अभूतपूर्व” साबित होंगे.
भाजपा की परेशानी रघुवर दास से ज्यादा अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं से जुड़ी है जो कि पार्टी से बेहद नाराज चल रहे हैं. 8 एसटी-एससी वर्ग के विधायकों की भाजपा टिकट काट चुकी है. यह नाराजगी भी मतदाताओं में घर कर गई है.
भाजपा का अब एकमात्र सहारा प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रह गये हैं. यदि इनका जादू चल गया तो ठीक है नहीं तो भाजपा झारखंड में भी हरियाणा और महाराष्ट्र की “अभूतपूर्व जीत” हासिल करते हुए नजर आएगी.