जीपी कैसे बने मुकेश गुप्ता के संकटमोचक ?
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रायपुर.
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पुलिस की बहुत बडी़ दखल है. कभी कभार ही राजनीतिक दल अथवा राजनेता यहां पुलिस को नियंत्रित करते दिखाई देते हैं. नहीं तो अक्सर पुलिस अधिकारियों का दबदबा नेताओं पर नज़र आता है. ऐसे ही दबदबे वाले अधिकारी कहे जाने वाले आईपीएस मुकेश गुप्ता हैं जिन्होंने एक अन्य अधिकारी जीपी सिंह के सहयोग से राज्य सरकार को उच्चतम न्यायालय में घेरने जाल बिछाया है .
आखिर कैसे ? क्या अखिल भारतीय पुलिस सेवा के निलंबित अधिकारी मुकेश गुप्ता और जीपी सिंह में मित्रता है ? क्या जीपी सिंह की कार्यवाही ऐसी रही कि उससे मुकेश गुप्ता को फायदा होगा ? क्या जीपी सिंह ने मुकेश गुप्ता को साक्ष्य उपलब्ध करवाए हैं ?
ये चंद सवाल ऐसे हैं जो गाहे बेगाहे अपना जवाब मांगते हैं. छत्तीसगढ़ में इन दिनों शह और मात का खेल बडे़ पैमाने पर खेला जा रहा है. ये सवाल भी उसी से जुड़े हुए हैं.
मुकेश गुप्ता 1988 बैच के अफसर हैं. वहीं महकमे में जीपी कहकर बुलाए जाने वाले सिंह 1994 बैच के अफसर बताए जाते हैं. गुप्ता व सिंह की यह जुगलबंदी वर्षों पुरानी बताई जाती है.
सुको की याचिका के लिए साक्ष्य किए गए तैयार
दरअसल मुकेश गुप्ता ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर रखी है. याचिका में उन्होंने राज्य सरकार की खुद के प्रति भावना को एक तरह से दूषित बताया है .
मुकेश गुप्ता के खिलाफ राज्य की कांग्रेस सरकार ने कुछेक कडे़ कदम उठाए हैं. इनमें नान सहित फोन टैपिंग, साडा की जमीन खरीदने में मुकेश गुप्ता द्वारा की गईं कथित गड़बडि़यों पर अपराध दर्ज करने जैसे मामले शामिल हैं .
वर्षों पुराना मिक्की मेहता का मामला अलग से मुकेश गुप्ता के पीछे लगा हुआ है . मिक्की के भाई माणिक की शिकायत पर पृथक से जांच करवाई जा रही है . इन सबमें कभी भी मुकेश गुप्ता की गिरफ्तारी संभावित बताई जाती है.
इन सब कारणों से मुकेश गुप्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. फौरी तौर पर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत भी तब मिल गई जब कोर्ट ने मुकेश गुप्ता द्वारा पक्षकार बनाए गए अधिकारियों- राजनेता को नोटिस जारी कर जवाब मांगा .
इस याचिका में उन्होंनें छत्तीसगढ़ सरकार सहित संयुक्त सचिव अनिल टूटेजा, केंद्रीय अन्वेंषण ब्यूरो के अलावा माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को नामजद पक्षकार बनाया है. लेकिन यहां पर वह ईओडब्ल्यू-एसीबी पर मेहरबानी करते नजर आए हैं.
ईओडब्ल्यू पर उन्होंने क्यूंकर मेहरबानी की अथवा ईओडब्ल्यू के प्रभारी आईपीएस जीपी सिंह को क्यूंकर पक्षकार नहीं बनाया इस पर सवाल उठ रहे हैं.
पहले भी ऐसा हो चुका है. तब मुकेश गुप्ता की पसंदीदा कर्मचारी बताई जाने वाली रेखा नायर ने भी आईपीएस जीपी सिंह को अपनी एक याचिका में पक्षकार नहीं बनाया था.
इन सवालों का जवाब जब ढूंढ़ने जाएंगे तो अनायास ही पहले शिवशंकर भट्ट और बाद में सीएम साहब अथवा चिंतामणि चंद्राकर के शपथपत्र पर नजर टिक जाएगी.
भट्ट व चंद्राकर एक ही मामले ( नान घोटाला ) के आरोपी हैं. भट्ट ने कथित तौर पर धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने के बाद सार्वजनिक तौर पर बहुत कुछ कहा था.
पूर्व खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहिले , नागरिक आपूर्ति निगम के तत्कालीन अध्यक्ष लीलाराम भोजवानी सहित पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को घोटाले के लिए भट्ट ने ही जिम्मेदार ठहराया था .
गौरतलब तथ्य यह है कि अपने तमाम आरोपों पर भट्ट साहब जुबानी जमाखर्च करने के अलावा एक भी सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाए थे .
भट्ट का सिलसिला अभी थमा भी नहीं था कि एक दिन खबर सुनाई दी कि चिंतामणि चंद्राकर को ईओडब्ल्यू – एसीबी की टीम ने गिरफ्तार कर लिया है. बाद में वह छोड़ दिए गए.
इसके बाद 57 वर्षीय चिंतामणि चंद्राकर जिन्हें प्रदेश में सीएम साहब के नाम से संबोधित किया जाते रहा है ने एक शपथपत्र 16 सितंबर को तैयार कराया.
शपथपत्र में वैसे तो बहुत कुछ है लेकिन यहां उनसे परे उन बिंदुओं पर नजर दौड़ाई जाए जहां मुकेश गुप्ता की मदद करते हुए जीपी सिंह नजर आ रहे हैं.
मुकेश गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका लगाई है उसमें उन्होंने राज्य सरकार पर दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्य करने का आरोप लगाते हुए स्वयं के खिलाफ पंजीबद्ध सारे मामलों की जांच सीबीआई को स्थानांतरित करने की अपील की है.
सीएम उर्फ चिंतामणि चंद्राकर ने जो शपथपत्र दिया है उसमें उन्होंने एडीजी जीपी सिंह के बरताव पर सवाल उठाए हैं. मतलब साफ है कि स्पेशल डीजी मुकेश गुप्ता इसका उपयोग स्वयं की याचिका को पुष्ट करने करेंगे.
इसके अलावा बगैर किसी नोटिस के चंद्राकर ने स्वयं को उठाए जाने का जो उल्लेख किया है वह भी मुकेश गुप्ता की मदद करेगा.
चंद्राकर ने अपने शपथपत्र में ईओडब्ल्यू के दफ्तर व जीपी सिंह का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ” हमारा टारगेट सिर्फ रमन सिंह और मुकेश गुप्ता है. हमें तुमसे कुछ लेना देना नहीं है. ” यह तथ्य भी मुकेश गुप्ता उपयोग में ला सकते हैं.
शपथपत्र में सीएम उर्फ चंद्राकर ने यह भी उल्लेख किया है कि एमजीएम ( मुकेश गुप्ता का ट्रस्ट ) को हर महीने 15 लाख रूपए उसके द्वारा दिए गए थे.
यह जानकारी जीपी सिंह के बोले अनुसार उनके पास है. इस तथ्य का भी उपयोग आने वाले दिनों में मुकेश गुप्ता करते नजर आएंगे.
इसके अलावा ऐसे कई तथ्य हैं जिन पर बात की जा सकती है. मसलन सीएम साहब (चिंतामणि चंद्राकर) ने शपथपत्र में जो उल्लेख किया है उसकी बकायदा टाइमिंग भी उल्लेखित है.
और तो और . . . एक उदाहरण यहां इस बात का है कि श्रीमति लता चंद्राकर द्वारा डायल 112 में फोन लगाकर चिंतामणि चंद्राकर के साथ हुई घटना की जानकारी दी गई. इसका पंजीयन क्रमांक 726767 भी शपथपत्र में उल्लेखित है.
चिंतामणि चंद्रकार के द्वारा शपथपत्र में भी लिखा गया है कि उनके पुत्र ने मुख्य सचिव को लिखित शिकायत भेजी थी. वकील रवि शर्मा (दिल्ली) के द्वारा एडीजी जीपी सिंह से बात करने का भी उल्लेख किया गया है.
मतलब साफ है कि सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से हुआ है. चिंतामणि चंद्राकर को अचानक बगैर नोटिस दिए इस तरह उठाकर उसके खिलाफ कार्यवाही किए जाने का माहौल बनाते हुए दरअसल एडीजी जीपी सिंह ने आईपीएस मुकेश गुप्ता की मदद ही की है.
यह ऐसी मदद है जिसका उपयोग आईपीएस मुकेश गुप्ता अपनी याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कर सकते हैं.
वह सरकार की बदनीयती पर जो सवाल उठा रहे हैं उसके लिए उनके पास भले ही पहले साक्ष्य नहीं रहे हो लेकिन आईपीएस जीपी सिंह की इस कार्यवाही से वह साक्ष्यों से परिपूर्ण हो गए हैं.
संभवतः इस कारण ही जीपी सिंह के एक बैचमेट नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि जीपी के सिर पर मुकेश गुप्ता का हाथ बहुत पहले से रहा है.
वह यह भी बताते हैं कि जीपी सिंह को अब तक मुकेश गुप्ता – अमन सिंह के ” आशीर्वाद ” से प्रभावी पद मिलते रहे थे.
ऐसे में इस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है कि जीपी सिंह अपने हालिया दायित्वों के प्रति ईमानदार रहे हैं. शायद इन्हीं कारणों से इन दिनों ” जय जय संकटमोचक जीपी “ कहा जाने लगा है .