माँ करणी का अवतरण दिवस 29 को, निकलेगी शोभायात्रा
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नेशन अलर्ट/देशनोक.
29 सितँबर को माँ करणी का अवतरण दिवस पड़ रहा है. इस दिन अपने भगतों को दर्शन देने वह शोभायात्रा के रूप में नगर भ्रमण पर निकलेंगी.
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि आश्विन माह के शुक्लपक्ष की सातम को माँ करणी अवतरित हुईं थीं. इस बार यह तिथि 29 सितँबर को पड़ रही है. देशनोक के मुख्य मँदिर सहित अन्य धामों – मँदिरों में सातम तिथि की तैयारी लगभग पूर्ण है.
श्री करणी मँदिर निजी प्रन्यास के सचिव शँकरदान के मुताबिक 29 सितंबर को हजारों भगतों के आने की उम्मीद है. उस हिसाब से तैयारी हुई है. उस दिन सवा नौ बजे से माँ करणी की शोभायात्रा निकाली जाएगी जोकि देशनोक का भ्रमण करेगी.
कहाँ स्थित है देशनोक ..?
करणी माँ का यह मँदिर देश विदेश में चूहों का मँदिर के भी नाम से प्रसिद्ध है. माँ करणी की सेवा में जुटे उनके परम भगत कैप्टन सज्जन सिंह बताते हैं कि माध देशनोक के नाम से भी इसे जाना जाता है. यह बीकानेर से 30 किमी दक्षिण में स्थित है.
सेना से सेवानिवृत्त हुए सज्जन सिंह के घर पर भी माता की पूजा होती है. दरअसल, भारत के विभाजन के बाद हिंगलाज तक पहुँच प्रतिबंधित होने के बाद यह चरणी सगतियों के भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया है. यह मँदिर पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए भी एक लोकप्रिय गँतव्य है.
सज्जन सिंह कहते हैं कि भारत और अँतरराष्ट्रीय स्तर पर “चूहों के मँदिर” के रूप में यह प्रसिद्ध है, क्योंकि यहाँ काबा नामक कई कृंतक हैं जिन्हें पवित्र माना जाता है. माँ करणी को मानने वाले भक्त उनके साथ बहुत सावधानी से पेश आते हैं.
वे बताते हैं कि मँदिर का निर्माण मूल रूप से करणी माता के महाप्रयाण के बाद 1530 के आसपास शुरु हुआ था. करणीजी का जन्म ऋद्धि कँवर नाम से हुआ था. इनका जन्म विक्रम संवत 1444 (1387 ई.) की आसोज शुक्ल 7 को सुवाप गाँव में हुआ था.
इतिहास पर रोशनी डालते हुए वे बताते हैं कि उनके पिता मेहाजी किनिया अपने गाँव के स्वामी थे. चारणों के किनिया वँश से थे. किनिया वँश के सँस्थापक गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र के खोड़ में रहते थे.
13वीं शताब्दी में, सँस्थापक की 4वीं पीढ़ी के वँशज भीमल ने घर छोड़ दिया. भीमल उत्तरी राजस्थान के जांगलू क्षेत्र में चले आए. उन्हें शासक राय सांखला से भूमि दान में मिली. उन्होंने किनिया की बस्ती नामक एक गाँव की स्थापना की.
मेहाजी किनिया का जन्म भीमल के वँश में हुआ था. वे जोधपुर के आस-पास के क्षेत्र के शासक मेहा मांगलिया के समकालीन थे. मेहाजी किनिया को सुवा ब्राह्मण की ढाणी नामक गाँव दान में मिला था. इसी का नाम बदलकर सुवाप कर दिया गया.
बताते चलें कि यहाँ रहने वाली करणीजी की माता देवल बाई अरहा (या अधा) वँश की थीं. देवल बाई जोधपुर और जैसलमेर की सीमा पर स्थित अधा (असाड़ा) गाँव के शासक अरहा मंधा की पोती थीं.
सज्जन सिंह बताते हैं कि करणीजी का जन्म भगवती करणीजी के पिता और हिंगलाज के महान भक्त मेहाजी किनिया की प्रार्थनाओं और धर्मपरायणता की लंबे समय से प्रतीक्षित परिणति थी. उन्होंने वरदान की तलाश में पाकिस्तान के वर्तमान बलूचिस्तान प्राँत के लास बेला में हिंगलाज की लंबी और कठिन यात्रा की थी.
बताते हैं कि जब करणीजी के पिता हिंगलाज की तीर्थयात्रा कर रहे थे, तब देवी हिंगलाज ने उनकी माँ को दर्शन दिए थे. तब उन्होंने देवी के आने की भविष्यवाणी की थी ऐसी मान्यता है. करणीजी का जन्म छठी लड़की के रूप में हुआ था.
सज्जन सिंह के अनुसार उनकी माँ का गर्भकाल असामान्य रूप से लँबा था जो 21 महीने तक चला. लड़की का नाम ऋधि कँवर रखा गया था. वे बताते हैं कि देशनोक मँदिर की स्थापना गुँबद से ढके आँतरिक गर्भगृह से हुई थी. बाद की शताब्दियों में भक्तों द्वारा किए व कराए गए निर्माणों के साथ यह आकार बढ़ता गया.

