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क्यूँ जब्त होगी डीडवाना के जिलाधीश की गाडी़ ?

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नेशन अलर्ट/डीडवाना.

न्यायालय का आदेश नहीं मानना अधिकारियों को लगता है महँगा पड़ने लगा है. कोर्ट ने तहसीलदार, एसडी़एम सहित कलेक्टर के वाहन को जब्त करने का आदेश दे दिया है.

सारा मामला वक्फ़ की सँपत्ति से जुडा़ बताया गया है. कोर्ट ने उक्त आदेश क्यूँ कर पारित किया यह जानने के साथ ही इससे जुड़े अधिकारियों की मानसिकता समझने की भी जरूरत है.

क्या है प्रकरण, कैसे हुई अवमानना . . ?

दरअसल, प्रकरण वर्षों पुराना है. इस पर कोर्ट ने तकरीबन आठ वर्ष पूर्व ही फैसला सुना दिया था. फैसले का अनुपालन करने की बजाए इसे लटकाने में अधिकारियों ने ज्यादा रूचि दिखाई.

कोर्ट के जानकार बताते हैं कि मामला राज्य सरकार के खिलाफ वक्फ़ कमेटी डीडवाना से जुडा़ हुआ है. प्रकरण की शुरूआत 2003 में हुई बताई गई है.

हाकम अली खान इस केस से जुड़े हुए वकील रहे हैं. बताया जाता है कि एक सिविल वाद दायर हुआ था जोकि डीडवाना के कब्रिस्तान की जमीं से जुडा़ था.

राजस्थान के वक्फ़ न्यायाधिकरण जयपुर ने वर्ष 2015 में एक फैसला दिया था. इस फैसले में उसने गजट नोटिफिकेशन में डीडवाना कब्रिस्तान की जमीं को वक्फ़ की सँपत्ति माना था.

वर्ष 2015 की 21 दिसँबर को ट्रिब्यूनल कोर्ट द्वारा सुनाए गए इस फैसले में यह भी उल्लेखित था कि इस जमीं को राजस्व रिकार्ड में दर्ज किया जाए. रिकार्ड दुरुस्तिकरण की यह जिम्मेदारी तब तहसीलदार, अनुविभागीय दँडा़धिकारी यानिकि एसड़ीएम सहित कलेक्टर को दी गई थी.

न्यायाधिकरण ने यह सुनिश्चित करने को भी कहा था कि भविष्य में किसी तरह का बदलाव अथवा ट्राँसफर न हो. लेकिन इतने स्पष्ट आदेश के बावजूद भी इसका परिपालन नहीं हो पाया.

थक हारकर इस मामले में 2016 को एक इजराय याचिका दायर की गई. याचिकाकर्ता वक्फ़ कमेटी थी. यह याचिका अपर जिला जज के समझ दायर हुई थी.

अब अपर जिला एवँ सेशन जज राजेश कुमार गजरा ने जो फैसला सुनाया है उसमें उन्होंने उक्त तीनों अधिकारियों को प्रकरण में लापरवाह माना है. यह फैसला उन्होंने गुरूवार को दिया है.

उच्चतम न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा है कि इजराय के मामलों का निपटारा छह माह के भीतर हरहाल में हो जाना चाहिए लेकिन इसमें नहीं हुआ. प्रकरण आठ सालों से लँबित है.

कई मर्तबा के आदेश के बावजूद जब प्रशासनिक स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो यह स्पष्ट हो गया कि अधिकारी इस निर्णय को लागू करना ही नहीं चाहते. अधिकारी जानबूझकर आदेश का पालन नहीं कर रहे थे.

कोर्ट ने इसे अपने आदेश की अवमानना माना है. जज राजेश गजरा ने कहा है कि “प्रशासन के इन लापरवाह अधिकारियों को कोर्ट के आदेश नहीं मानने की खुली छूट नहीं दी जा सकती है.”