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माजीसा की दी हुई मिश्री खाते ही देखने लगा था अँधा सुनार !

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नेशन अलर्ट/जसोल.

रानी भटियानी सा ने जो मिश्री अपने मायके भिजवाई उसका सेवन करते ही अँधे सुनार को दिखाई देने लगा था. यह उस परचे का ही हिस्सा था जोकि दमामी रामा के साथ तब घटित हुआ था जब उसकी पुकार पर माजीसा ने उसे साक्षात् कागा (श्मशान घाट) में दर्शन दिए थे.

दरअसल, श्रावणी तीज को रानी सा के दूधमुँहे सुपुत्र की अकाल मृत्यु हुई थी. लाल बन्ना सा को उनकी बडी़ माँ (रानी देवडी़) ने अपनी दासी धापु के साथ मिलकर जहरीला दूध पीला दिया था जिससे उनकी मौत हो गई थी.

उस वक्त रानी भटियानी सा राजपरिवार की अन्य महिलाओं के साथ झूला झुल रहीं थीं. अनिष्ठ की आशँका होने पर वह दौडी़ दौडी़ रानीवास आईं लेकिन अपने सुपुत्र को बचा नहीं सकीं.

पुत्र वियोग में उन्हें कुछ नहीं सूझा. अँततः अपने सुपुत्र को गोद में लेकर देह त्यागने के उद्देश्य से वह भी चिता में बैठ गईं.

इधर, मँगणियार रामा नाम का दमामी कुछ समय बाद जोगीदास के गाँव से जसोल पहुँचा था. बाईसा स्वरूप कँवर व जँवाई सा कल्याण सिंह से भेंट लेने की वह इच्छा रखता था.

राज महल में लेकिन उन्हें स्वरूप कँवर कहीं नहीं दिखी. इस पर उसने रावला में पूछताछ की तो रानी के सती होने का समाचार उसे मिला.

दमामी रामा यह सुनकर रोने लगे. रोते बिलखते वह कागा पहुँचे. रानी स्वरूप कँवर की उन्होंने आराधना की.

रोते बिलखते रामा को स्वरूप कँवर ने साक्षात दर्शन दिए. सोने की पायल, चूडियाँ और पोशाक भेंट स्वरूप दिए. मिश्री देकर पीहर के लिए सँदेश दिया.

दमामी से कहा कि उन्होंने दुनियाँ छोड़ दी है और देवलोक को प्राप्त हो गई हूँ यह खबर मायके में दे दे. सँसार के दुखों का निराकरण करूँगी ऐसा बोलकर रानी स्वरूप कँवर अँतर्ध्यान हो गईं.

उन्होंने अँधे सुनार भगवान दास के मिश्री भिजवाई थी. रावला परंपरा अनुसार तेड़कर ( बुलाकर ) जोगीदास का गाँव ले जाने की बात कही थी. भेंट लेकर मँगणियार रामा अपने गाँव लौट गए.

घटना की जानकारी गाँव पहुँचने पर जोगीदास जी को दी. मिश्री लेकर रामा के साथ स्वयँ जोगीदास जी अँधे सुनार के घर गए. मिश्री खाते ही भगवान दास को दिखाई देने लगा.

यह बात जगत में फैल गई. जसोल भी पहुँची. जसोल रावला को आश्चर्य हुआ. भेंट में जेवरात की बात उन्होंने सुनीं तो खजाना देखा.

खजाने में सोने की चूडियाँ, पायल आदि नहीं थे जोकि रानी स्वरूप कँवर इस्तेमाल में लेती थी. इसी समय कागा में रात्रि के समय दीपक जलने लगे.

फिर जाकर राजा कल्याण सिंह ने नदी किनारे एक मँदिर बनवाया. समय के साथ साथ आज यह मँदिर विशाल रूप ले चुका है. इसे ही आज जसोलधाम के नाम से देश विदेश में जाना जाता है.