दासी धापु से क्यूँ चिढ़ते हैं माजीसा के भगत ?
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नेशन अलर्ट/जसोल.
जिस तरह भरत सहित अनगिनत राम भगत रानी कैकेयी की दासी मंथरा से चिढ़ते हैं ठीक उसी तरह का भाव दासी धापु के प्रति नज़र आता है. आज भी माजीसा भगत सहित जसोलवासी धापु के प्रति आदर का भाव नहीं रखते हैं.
पहले बात कैकेयी और उनकी दासी मंथरा की कर ली जाए. दोनों का बचपन एक साथ बीता था. एक दोष के चलते मंथरा अविवाहित रही.
दरअसल, कैकेयी सुँदर, गुणी और वीरांगना स्त्री थी. वह अश्वपति सम्राट की पुत्री थी. उसका विवाह राजा दशरथ के साथ हुआ था.
वैसे कैकेयी के अलावा राजा दशरथ की दो और पत्नियाँ (कौशल्या और सुमित्रा) थी लेकिन उनका लगाव कैकेयी से अधिक रहा. वह दशरथ की दूसरे क्रम की पत्नी थी.
कौन थे अश्वपति और वृहदश्व ?
जब कैकेयी का विवाह राजा दशरथ से हुआ था तो दासी मंथरा मायके से उनके साथ आई थी. कथानुसार राजा अश्वपति का एक भाई था, जिसका नाम वृहदश्व था.
उसकी विशाल नैनों वाली एक बेटी मंथरा थी, जोकि कैकेयी की बालपन से ही अच्छी सखी थी. वह राज कन्या होने के साथ बहुत बुद्धिमति भी थी.
बाल्यावस्था में ही एक रोग ने उसे घेर लिया था. उसका पूरा शरीर पसीने में भीग जाता था. वह अत्यधिक प्यास से बैचेन हो उठती थी.
प्यास से अत्यंत व्याकुल होने पर एक दिन उसने इलायची, मिश्री और चँदन से बना हुआ शरबत पी लिया. शरबत सेवन से उसके शरीर के सभी अँगों ने काम करना बँद कर दिया.
पिता वृहदश्व ने राज चिकित्सकों से उसका उपचार कराया. जिससे वह ठीक तो हो गई लेकिन उसकी रीढ़ की हड्डी में ऐसा दोष आया कि वह अँततः अविवाहित ही रही.
कैकेयी के विवाह के समय मंथरा उनकी अंगरक्षिका बनकर अयोध्या आ गई. बाद में उसने कैकेयी के कान ऐसे भरे कि प्रभु श्रीराम को वनवास भोगने जाना पडा़.
कैकेयी पुत्र भरत को अयोध्या का राजपाठ दिलवाने में उनकी माँ से कहीं ज्यादा हाथ मासी मंथरा का था. ऐसा ही कुछ धापू के साथ भी जुडा़ है.
कौन थी धापु ?

जोगीदास की सुपुत्री स्वरूपकँवर बाईसा के बडी़ होने पर उनके विवाह की चिंता सताने लगी थी. यह वह समय था जब मालानी राज्य के जसोल के रावल कल्याण सिंह के नाम की चर्चा हर तरफ हुआ करती थी.
कल्याण सिंह का विवाह देवडी़ अणँदकँवर (फूलकुँवर) से हो चुका था. दुर्भाग्य से कल्याण सिंह – अणँदकँवर की विवाह के लँबे समय बाद भी सँतान नहीं हुई थी.
उसी समय जोगीदास के गाँव से दूसरे विवाह का प्रस्ताव कल्याण सिंह को भेजा गया. प्रस्ताव कल्याणसिंह ने स्वीकार्य भी कर लिया.
कालांतर में
कल्याणसिंह – स्वरूपकँवर विवाह बँधन में बँध गए. आगे चलकर स्वरूप कँवर से कल्याणसिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. रावला गुरू ने पुत्र का नाम लालसिंह रखा.
छोटी रानी (स्वरूपकँवर) की गोद भर चुकी थी और बडी़ रानी (फूलकुँवर अथवा देवडी़) की गोद अभी भी सूनी ही थी. इस बात से वह निराश रहने लगी थीं. इसका फायदा उठाया धापु ने जोकि उनकी दासी थी.
इधर, रानी स्वरूपकँवर ने रानी देवडी़ को निराश होने की जगह कुलदेवी की अर्चना करने प्रेरित किया. माँ स्वाँगीया जी के आशीर्वाद से रानी देवडी़ को भी पुत्र हुआ.
कल्याणसिंह के दूसरे पुत्र का नाम प्रतापसिंह रखा गया.
पहले दोनों रानियों में बडा़ प्रेम हुआ करता था. रानी देवडी़ को रानी स्वरूप कँवर की सलाह पर ही माँ स्वाँगीया जी
की पूजा अर्चना करने के बाद पुत्र प्राप्त हुआ था. लेकिन छोटी रानी का सुपुत्र लालसिंह बडी़ रानी के सुपुत्र प्रतापसिंह से बडा़ था.
उधर, बडी़ रानी देवडी़ की दासी धापु ने सुपुत्रों के भविष्य को लेकर धीरे धीरे रानी देवडी़ के कान भरने शुरू कर दिए. बडे़ सुपुत्र लालसिंह के नाम से कान भरे जाते रहे.
श्रावणी तीज का पर्व जसोल में धूमधाम से मनाया जा रहा था. बाग में लगे झूले में राज परिवार से जुडी़ महिलाएं झूला झूल रहीं थीं. इनमें रानी स्वरूप कँवर भी शामिल थीं.
स्वरूप कँवर कह कर आईं थीं कि लालसिंह यदि उठ जाए तो उसे दूध पिला दिया जाए. पीछे देवडी़ रानी की दासी धापु के इशारे पर लालसिंह को जहरीला दूध पिला दिया गया.
बगीचे में रानी स्वरूप कँवर को किसी अनिष्ट की आशँका भी हुई तो वह दौडे़ दौडे़ रानीवास पहुँची लेकिन वहाँ लालसिंह को मूर्छित पाया. श्रावणी तीज को यह हादसा हुआ था.
लालसिंह की मौत के बाद स्वरूप कँवर ने भी अन्न जल त्याग दिया. अँततः अपने पुत्र को गोद में लेकर वह सती हो गईं. जसोल की खुशियाँ मातम में बदल चुकी थी. तब से ही धापु नाम से माजीसा के भगत चिढ़ते हैं.

