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पाकमाह रमजान का आगाज़ : रखा जा रहा रोजा

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नईदिल्ली.

शनिवार को दिखाई दिए गए चाँद के बाद रविवार से मुसलमानों का पाकमाह रमजान प्रारँभ हो गया है. अब रोजा रख अल्लाह की इबादत की जा रही है. प्रधानमंत्री सहित नेता प्रतिपक्ष व अन्य नेताओं ने इस पवित्र माह की बधाई देते हुए देश के लिए खुशहाली की कामना की है.

मुस्लिम धर्म के जानकार शाहिद भाई बताते हैं कि रमजान के पवित्र माह में एक विशेष नमाज अदा की जाती है जिसे तरावीह के नाम से जाना जाता है. रमजान प्रत्येक वर्ष इस्लामिक कैलेंडर के नौवें माह में आता है.

माह – ए – रमजान को इबादत, रहमत और बरकतों वाला महीना माना गया है. हर मुसलमान के लिए ये महीना बहुत अहमियत रखता है. शाहिद बताते हैं कि चाँद का दीदार होने के साथ ही नमाजों, इबादतों और दुआओं का दौर भी शुरू हो जाता है. रमजान के महीने में मुसलमान रोजे रखते हैं. अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते हैं.

उनके अनुसार माह – ए – रमजान में रोजे रखना हर एक मुसलमान का फर्ज है. वैसे इस्लाम के 5 फर्ज बताए गए हैं. इस्लाम में पांच फर्ज जो हैं उन्हें शहादत, नमाज, जकात, रोजा और हज के नाम से जाना जाता है.

क्या होती है तरावीह की नमाज . . ?

वे कहते हैं कि प्रति दिन पाँच वक्त की नमाज पढ़ना इस्लाम का एक बुनियादी हिस्सा है. इस्लाम धर्म में अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने वाले सभी लोगों पर नमाज फर्ज होती है, फिर चाहे वो मर्द हो या औरत, गरीब हो या अमीर.

शाहिद के अनुसार सभी लोगों के लिए 5 वक्त की नमाज पढ़ना जरूरी होता है. रमजान के मुकद्दस महीने में पाँच वक्त की नमाज के अलावा भी एक और नमाज पढ़ जाती है, जिसे तरावीह कहा जाता है.

देश के लिए सुख, शाँति व समृद्धि की कामना करते हुए शाहिद बताते हैं कि तरावीह की नमाज रोजाना पाँच वक्त की नमाज से अलग होती है, जो कि रमजान में ईशा की नमाज के बाद अदा की जाती है. तरावीह की नमाज सुन्नत मानी गई है.

सुन्नत का मतलब समझाते हुए वे कहते हैं कि यह आपकी अपनी मर्जी पर निर्भर करता है, कि करें या न करें. नहीं करने पर कोई गुनाह नहीं होता, लेकिन करने पर ज्यादा सवाब मिलता है. सुन्नत का मतलब होता है पैगंबर मुहम्मद के बताए हुए नक्शे कदम पर चलना. इस्लाम में, फर्ज नमाज वो नमाज होती है, जिसे पढ़ना हर मुसलमान पर फर्ज होता है.

उनके मुताबिक फर्ज नमाज न पढ़ना गुनाह माना जाता है. इस्लाम में फर्ज नमाजे जो हैं उनमें फज्र (तड़के), जुहर (दोपहर), असर (सूर्यास्त से पहले), मगरिब (सूर्यास्त के बाद) और ईशा मतलब रात में पढी़ जाने वाली नमाज. रमजान के पवित्र माह में तरावीह की नमाज ईशा के बाद की जाती है.

सुन्नत – ए – मुअक्कदा की नमाज होती है तरावीह की नमाज यानी इसे पढ़ना बेहद सवाब का काम है और इसे न पढ़ने पर कोई गुनाह भी नहीं मिलता है. इस्लाम में सुन्नत – ए – मुअक्कदा उस नमाज को कहते हैं, जिसे पैगंबर मुहम्मद ने हमेशा पढ़ा हो. ऐसा कहा जाता है कि पैगंबर साहब ने पहली मर्तबा रमजान में ही तरावीह की नमाज अदा की थी.

शाहिद कहते हैं कि तब से तरावीह की नमाज पढ़ना सुन्नत माना जाता है. 20 रकात तरावीह की नमाज पढ़ना हदीसों से साबित मिलता है. इसे स्पष्ट करते हुए वे बताते हैं कि तरावीह की नमाज 2 – 2 रकात करके 20 रकातें पढ़ी जाती हैं, जबकि पाँच वक्त की नमाज में 2, 4 या 3 रकातें होती हैं.

उनके अनुसार तरावीह की नमाज की नियत में वक्त अलग नहीं होता है. पाँच वक्त की नमाज की नियत में वक्त अलग – अलग होता है. तरावीह की नमाज में हर रकात में अलग – अलग सूरह पढ़ी जाती है, जबकि पाँच वक्त की नमाज में कोई ऐसी पाबंदी नहीं होती है.

धार्मिक जानकारों के मुताबिक तरावीह की नमाज में हर सजदे पर 1500 नेकियां लिखी जाती हैं. अल्लाह तआला आसमान से तरावीह पढ़ने वाले लोगों को देखता है और उनपर अपनी रहमत बरसाता है. इसलिए रमजान सबसे मुबारक महीना कहा जाता है.

रमजान के इस पाक महीने में अल्लाह की रहमतें दुनिया पर बरसती हैं. इस महीने में की गई इबादतों का सवाब कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है. तरावीह की नमाज में 8 या 20 रकात पढ़ी जा सकती हैं. ईशा की नमाज के बाद तरावीह की नमाज 2 – 2 रकात करके 20 रकातें पढ़ी जाती हैं यानी हर 2 रकात के बाद सलाम फेरा जाता है.

बताया जाता है कि हर 4 रकात के बाद तरावीह की दुआ या तस्बीह भी पढ़ने की रिवायत है. इसी तरह 20 रकात तरावीह की नमाज पूरी की जाती है. तरावीह की नमाज में हर रकात की शुरुआत सूरह अल – फातिहा से की जाती है. तरावीह की नमाज में दुआ में नमाजी अपने मुल्क की सलामती, परिवार की खुशियां और रोजी-रोजगार की दुआ मांगते हैं.

तरावीह की नमाज पढ़ने से अल्लाह की रहमत और बरकत बनी रहती है. तरावीह की नमाज के दौरान आप कुरआन की जो भी सूरह चाहें, उसे पढ़ सकते हैं. तरावीह की नमाज में नियत सबसे ज्यादा अहमियत रखती है. आपको बहुत सी सूरह याद नहीं हैं, तो परेशान न हों और जो सूरह याद हो वो पढ़ लें.

मुस्लिम धर्म की जानकारी रखने वालों के अनुसार मर्दों के लिए तरावीह की नमाज जमात के साथ पढ़ना बेहतर है. फिर भी यदि वह किसी वजह से मस्जिद में तरावीह की नमाज नहीं पढ़ सकते हैं, तो घर पर अकेले भी तरावीह की नमाज अदा की जा सकती है.

बताते चलें कि औरतें तरावीह की नमाज घर पर ही पढ़ती हैं. रमजान मुबारक में तरावीह की नमाज पढ़ना और नमाज के बाद कुरआन का सुनना बेहद अच्छा है. तरावीह की नमाज एक खास तरह की नमाज होती है, जो रमजान के मुबारक महीने में ही अदा की जाती है. तरावीह की नमाज एक सुन्नत है, फर्ज नहीं. इसलिए अगर कोई मुसलमान तरावीह नहीं पढ़ता तो उस पर कोई गुनाह नहीं है.