इँद्रशाह और छन्नी के लिए आने वाले दिन क्यूं हैं महत्वपूर्ण . . ?
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रायपुर.
काकाजी के नाम से प्रसिद्ध रहे स्वर्गीय इँदरचँद जैन के जाने के बाद काँग्रेस के दिल्ली दरबार में राजनांदगाँव की पकड़ कमजोर क्या हुई उसे महत्व भी देना कम कर दिया गया. लेकिन लगता है दिन बहुरने वाले हैं. तभी तो काँग्रेस सँगठन के सँभावित फेरबदल में इँद्रशाह मँडावी (मोहला) और श्रीमती छन्नी साहू (पैरीटोला) का नाम बडी़ तेजी से उभरा है.
दरअसल, काँग्रेस इन दिनों अपने चाल, चरित्र और चेहरे पर बडी़ शिद्दत से काम कर रही है. प्रदेश में ऊपर से नीचे तक काँग्रेस नए रूप रँग में आने वाले दिनों में नज़र आ सकती है.

फिलहाल, प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष बदले जाने की चर्चा चल रही है. हालाँकि पूर्व विधायक व पूर्व साँसद दीपक बैज अभी तक अपनी कुर्सी पर कायम हैं लेकिन बताते हैं कि वह कुर्सी बडी़ तेजी से हिल रही है.
. . . और कब दीपक बदल दिए गए यह सुनाई न पड़ जाए. बैज का स्थान फिर कौन लेगा ? जातिगत समीकरणों पर उलझने से पहले यह समझ लीजिए कि होगा वही जो देश के नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी, काँग्रेस महासचिव श्रीमती प्रियँका गाँधी और यूपीए की चेयरपर्सन रहीं श्रीमती सोनिया गाँधी चाहेंगी.
सोनिया सहित राहुल – प्रियँका की सोच समझ में इन दिनों काँग्रेस को विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार कायम है. हो भी क्यूं न ?
2018 का विधानसभा चुनाव जिस काँग्रेस ने दो तिहाई बहुमत से जीता था वही काँग्रेस 2023 आते आते कैसे इतनी अलोकप्रिय हो गई कि उसे महज 35 सीटें ही मिल पाईं ? क्या भ्रष्टाचार का भूत काँग्रेस सरकार पर भारी पड़ गया था ?

पहले विधानसभा में 68 ( उपचुनावों को जीतकर काँग्रेस ने 72 सीट कर ली थी ) से सीधे 35, फिर लोकसभा में दो से एक और इसके बाद नगरीय निकाय चुनाव में जिस तरह से काँग्रेस का सूपडा़ साफ हुआ है उसके बाद से नए प्रदेश अध्यक्ष की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है. ये चुनाव सँगठन स्तर पर बैज और सत्ता के स्तर पर भूपेश बघेल के प्रभावी रहते हुए काँग्रेस हारी है.
हालाँकि भूपेश पर पार्टी का भरोसा अब भी कायम है. फिलहाल पार्टी में उनका प्रमोशन, जनरल सेक्रेटरी के पद पर हो गया है. पल पल बदल रही पँजाब की राजनीतिक परिस्थितियों के बीच बतौर महासचिव वह पँजाब प्रभारी बनाए गए हैं.
इधर, दीपक बैज की रवानगी तय बताई जा रही है. दीपक के स्थान पर जिस एक व्यक्ति का नाम बडे़ जोरदार तरीके से अध्यक्ष के रूप में सुनाई पड़ रहा है, वह पहले भी प्रदेश में काँग्रेस के सत्ता के सूखे को खत्म कर चुका है.
2013 से 2018 के मध्य नेता प्रतिपक्ष रहते हुए टीएस सिंहदेव ने तत्कालीन प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के साथ मिलकर ऐसा कार्य किया था कि सत्ता में बैठी भाजपा हिल गई थी. उस समय 15 सालों तक प्रदेश की सत्ता में रही भाजपा सिर्फ़ 15 सीट जीत पाई थी.
ज्ञात हो कि 2013 में उसे 49 और काँग्रेस को 39 सीट मिली थी. एक एक सीट क्रमशः बसपा और निर्दलीय के खाते में गई थी. तब के नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष की जोडी़ को जयवीरू सरीखा माना गया था.
लेकिन भविष्य में जय और वीरू की यही जोडी़ धीरे धीरे ही सही लेकिन बिखरने लगी. काँग्रेस आलाकमान के कुछेक गलत फैसलों के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री और तत्कालीन स्वास्थ्य मँत्री के बीच सँबँध सेहतमँद नहीं रह गए थे.

अब जबकि भूपेश महासचिव बना दिए गए हैं तब टीएस बाबा प्रदेश अध्यक्ष के लिए आलाकमान की पहली पसँद बताए जा रहे हैं. यदि वाकई ऐसा होता है तो काँग्रेस दो कार्यकारी अध्यक्ष बना सकती है.
क्यूं और कैसे उभरे मँडावी और छन्नी के नाम . . ?
अब बात इँद्रशाह और छन्नी साहू के नाम कैसे उभरे की. दरअसल, काँग्रेस जातिगत समीकरणों को भी ध्यान में रखकर चल रही है.
चूँकि सिंहदेव सामान्य वर्ग के हैं इस कारण उनके अध्यक्ष बनने की सूरत में आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग का ख्याल रखना पडे़गा. वर्तमान अध्यक्ष दीपक न केवल आदिवासी हैं बल्कि बस्तर से आते हैं.
ऐसी सूरत में दीपक बैज के स्थान पर किसी अन्य आदिवासी नेता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है. बस्तर से ही लें तो लखेश्वर बघेल हो सकते हैं लेकिन इँद्रशाह मँडावी का नाम भी उभरा है.
इँद्रशाह मँडावी दूसरी मर्तबा के मोहला – मानपुर विधायक हैं. पहले उन्होंने भाजपा की कँचनमाला भूआर्य को और बाद में पूर्व विधायक सँजीव शाह को हराया.
लेकिन इसमें भी एक पेंच फँसा हुआ बताया जा रहा है. काँग्रेसी सूत्रों के अनुसार श्रीमती छन्नी साहू का नाम पहले से सँभावित प्रदेश महिला काँग्रेस अध्यक्ष के रूप में पार्टी के भीतर और बाहर चर्चा में रहा है.
छन्नी साहू कभी खेतिहर मजदूर हुआ करती थीं. बाद में वह जिला पँचायत सदस्य बनीं. अपनी शालीन लेकिन आक्रामक शैली से उन्होंने पार्टी का दिल ऐसे जीता कि काँग्रेस ने 2018 में उन्हें विधायक की टिकट दे दी.
छन्नी अँततः खुज्जी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुन लीं गईं. लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें 2023 में पुन: उम्मीदवार नहीं बनाया गया. कुछ अपनी ही सरकार का विरोध और कुछ खेमेबाजी के चलते उन्हें टिकट नहीं मिल पाई थी.

छन्नी का नाम टीएस बाबा खेमे से लिया जाता रहा है. वैसे भी पहले बिलासपुर विधायक रहे शैलेश पाँडेय और छन्नी साहू बाबा के दाएँ बाएँ रह चुके हैं.
इस कारण यदि छन्नी प्रदेश महिला काँग्रेस अध्यक्ष बनती हैं तो इँद्रशाह मँडावी काँग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बन पाएंगे. चूँकि दोनों अविभाजित राजनांदगाँव जिले और सँसदीय इलाके से आते हैं इस कारण एक ही जिले/क्षेत्र को दो महत्वपूर्ण पद पार्टी किसी कीमत पर नहीं देगी.
लेकिन किसी कारणवश छन्नी साहू उक्त पद पर नियुक्त नहीं होती हैं तो इँद्रशाह का बनना तय है. नहीं तो बस्तर और आदिवासी वर्ग की नाराज़गी न होने पाए ऐसा सोचकर लखेश्वर बघेल का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है.
क्या कहते हैं अतुल श्रीवास्तव . . ?
काँग्रेस में हाल फिलहाल होने वाले सँभावित परिवर्तन के सँबँध में “नेशन अलर्ट” ने राजनांदगाँव के वरिष्ठ पत्रकार अतुल श्रीवास्तव से बातचीत की थी. अस्वस्थता के चलते अतुल इन दिनों स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं.
वह कहते हैं कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद काँग्रेस ने वह मान सम्मान राजनांदगाँव को कभी नहीं दिया जो उसे मिलना चाहिए था. विपरीत परिस्थितियों में भी काँग्रेस के साथ राजनांदगाँव सँसदीय क्षेत्र खडा़ रहा है.

अपनी बात को स्पष्ट करते हुए श्रीवास्तव कहते हैं कि राज्य बनने के तुरँत बाद स्वर्गीय देवव्रत सिंह प्रदेश युवक काँग्रेस के अध्यक्ष हुए. उसी समय डोंगरगढ़ के पूर्व विधायक धनेश पटिला मँत्री बने थे.
बकौल अतुल इसके बाद इतने महत्वपूर्ण पद न तो सँगठन में और न ही सत्ता में काँग्रेस कभी भी राजनांदगाँव को दे पाई. सँसदीय सचिव सरीखा लालीपाप जरूर पकडा़ दिया गया.
वह इस सँभावना पर खुशी जाहिर करते हैं कि काँग्रेस में अब नांदगाँव को तवज्जो मिल सकती है. मँडावी अथवा छन्नी के रूप में यदि ऐसा होता है तो यह काँग्रेस और यहाँ के लोगों के लिए बेहतर ही होगा.