जूरी क्या आदिवासी होने की सजा भुगत रहे?
विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष/रायपुर।
आईपीएस रहे एएम जूरी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति का वास्तविक कारण चाहे जो कुछ भी रहा हो लेकिनअब इसमें सामाजिक नजरिया भी शामिल होने लगा है। डीआईजी रहे जूरी को अयोग्य करार देते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश क्या सिर्फ इस कारण थमा दिया गया क्योंकि वे आदिवासी वर्ग से आते हैं। यदि दो बीवी ही जूरी पर कार्रवाई का आधार है तो ऐसे और भी अफसर छत्तीसगढ़ में ही कार्यरत हैं जिन पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई है।
आचरण, मूलत: इसे ही वह कारण ठहराया गया है जिसके चलते एएम जूरी को समय से पहले सेवानिवृत्ति दे दी गई। आईपीएस कैडर के अधिकारियों के कार्यकाल की समीक्षा करने वाले समिति ने उन्हें अयोग्य करार दे दिया और उन पर कार्रवाई की गई।
इस कार्रवाई के बाद अब उन्हें दी गई सेवानिवृत्ति पर सवाल उठ रहे हैं। क्या जूरी को महज इस लिए कार्रवाई का सामना करना पड़ा कि वे आदिवासी समाज से ताल्लुक रखते हैं?
इस सवाल के कई मायने हैं और कई कारण। खुद पर हुई कार्रवाई के बाद जूरी के बयान को देखें तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वर्ष 2008 में शिकायत हुई थी। इसमें उन्होंने अपना पक्ष रखा था। अभी मामला कैट में विचाराधीन है। जूरी के शब्दों में यह मेरा पारिवारिक मामला है। अचानक 2012 में इस प्रकरण को दोबारा खोला गया था। कैट ने शासन से जवाब मांगा है, लेकिन अब तक जवाब नहीं भेजा गया है। यह पक्षपातपूर्ण कार्रवाई है। मेरे खिलाफ षडय़ंत्र किया जा रहा है। कोई सूचना या नोटिस तक नहीं दी गई। मामले का विस्तृत अध्ययन कर आगे की दिशा तय करेंगे।
जांच अधूरी, कार्रवाई पूरी?
जूरी ने कार्रवाई के बाद उक्त बयान में साफ किया है कि उनके खिलाफ की गई शिकायत को लेकर मामला अब भी विचाराधीन है। 9 साल पहले उनकी शिकायत की गई थी जिसमें उन्होंने अपना पक्ष भी रखा था। 2012 में मामले की जांच पुन: शुरु हुई और अब अचानक उन पर कार्रवाई की गई।
वे अधूरी जांच के बीच परिणाम निर्धारित करने के खिलाफ कोर्ट जाने का विचार कर रहे हैं। उन्हें इसमें षडय़ंत्र की बू आ रही है। दूसरी तरफ इसे उनकी जाति से जुुड़ा मसला समझा जा रहा है।
बीते दिनों में पुलिस विभाग से जुड़े कुछ और ऐसे अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है जिन्होंने आदिवासियों का पक्ष सोशल मीडिया पर रखा है। इसे आधार मानते हुए अब आरोप लग रहे हैं कि सरकार और पूरा सिस्टम आदिवासियों को निशाना बना रहा है।
जूरी के पहले जेलर रहीं वर्षा डोंगरे और उसके बाद सहायक जेलर दिनेश ध्रुव पर कड़ी कार्रवाई कर सरकार ने भले ही कोई भी संदेश देना चाहा हो लेकिन सवाल तो होना ही है और हो भी रहे हैं। क्या सरकार और उसका तंत्र आदिवासी विरोधी है? क्या इसी तरह की कार्रवाई एडीजी रैंक के उस अफसर पर हो पाएगी जो कि कथित तौर पर अपनी दो पत्नियों को लेकर विवादों में घिरा हुआ है?