पीएम का सीजेआई के आवास पर जाना एक अच्छी मिसाल है ! ( ? )
चंदन कुमार जजवाडे़
नेशन अलर्ट/9770656789
दिल्ली.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार रात भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के दिल्ली स्थित आवास पर आयोजित गणेश पूजा में भाग लिया.
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर गणेश पूजा में जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट कर लिखा, “मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ के घर गणेश पूजा में शामिल हुआ. भगवान गणेश हम सबको सुख, समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करें.”
प्रधानमंत्री के मुख्य न्यायाधीश के घर जाने और निजी समारोह में शामिल होने से विवाद भी शुरू हो गया. भारत के संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के अलग अलग होने और उनकी स्वतंत्रता को लेकर भी कई लोग अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा है कि चीफ़ जस्टिस का पीएम को निमंत्रण देना और पीएम का उसे स्वीकार दोनों ही ग़लत हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद प्रधानमंत्री के चीफ़ जस्टिस के घर जाने को अच्छी मिसाल मानते हुए कहती हैं, “ऐसा नहीं है कि जो पहले नहीं हुआ, वह कभी नहीं हो सकता. पीएम का सीजेआई के आवास पर जाना एक अच्छी मिसाल है.”
पीएम का सीजेआई के घर जाना- क्या है मामला ?
भारत की जानी मानी वकील इंदिरा जयसिंह ने अपने ‘एक्स’ अकाउंट पर लिखा, “भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच जो शक्तियों का बंटवारा है, उस सिद्धांत से समझौता किया है. मुख्य न्यायाधीश की स्वतंत्रता पर से अब विश्वास उठ गया है.”
इंदिरा जयसिंह ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) को इसकी आलोचना करनी चाहिए.
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड इसी साल 10 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. इस बीच उन्होंने कई अहम मामलों की सुनवाई भी की है.
पीएम मोदी के सीजेआई चंद्रचूड़ के घर जाने पर कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म्स यानी (सीजेएआर) ने भी बयान जारी किया है.
वकीलों के इस समूह ने कहा है, “न्यायपालिका पर संविधान की रक्षा करने और बिना किसी भय या पक्षपात के न्याय सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी है. इसे कार्यपालिका से पूरी तरह से स्वतंत्र माना जाना चाहिए.”
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई चंद्रचूड़ के कार्यकाल में कई अहम मामलों पर सुनवाई हुई है लेकिन कई लोग ऐसी आपत्तियों को सही नहीं मान रहे हैं.
शिव सेना के शिंदे गुट के राज्यसभा सांसद मिलिंद देवरा ने इस विवाद पर सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर लिखा है कि प्रधानमंत्री का गणपति आरती के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के आवास पर जाने पर बेबुनियाद टिप्पणी करना दुर्भाग्यपूर्ण है.
उनके मुताबिक़, “जब फैसला पक्ष में आता है तो विपक्ष सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता की प्रशंसा करता है, लेकिन जब चीज़ें उनके मुताबिक़ नहीं होती हैं, तब न्यायपालिका की विश्वसनीयता से समझौते का आरोप लगाते हैं. सुप्रीम कोर्ट पर इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाना एक ख़तरनाक मिसाल कायम करने वाला है.
लेकिन शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने कहा कि गणपति उत्सव में लोग एक-दूसरे के घरों में जाते हैं, प्रधानमंत्री अब तक कितने घरों में गए हैं ?
उन्होने आरोप लगाया, “हमारी शंका इतनी है कि संविधान के रखवाले इस तरह से राजनीतिक नेताओं से मिलते हैं. महाराष्ट्र सरकार की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. उसमें एक पार्टी प्रधानमंत्री हैं, क्या चीफ़ जस्टिस न्याय कर पाएंगे. हमें तारीख़ पर तारीख़ मिलती है. उन्हें इस केस से ख़ुद को अलग कर लेना चाहिए.”
महाराष्ट्र में शिव सेना और एनसीपी में टूट के बाद बनी शिंदे सरकार और इसकी वैधता से जुड़ा मामला भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
महाराष्ट्र में जल्द ही विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं वहाँ दस दिनों तक चलने वाली गणेश पूजा बड़े धूम धाम से मनाई जाती है. देशभर में बसने वाले महाराष्ट्र के लोगों के अलावा पूरे भारत में यह त्योहार मनाया जाता है.
संजय राउत के आरोपों का जवाब देने के लिए इसमें बीजेपी प्रवक्ता शहज़ाद पूनावाला भी शामिल हो गए. उन्होंने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश होते हुए केजी बालाकृष्णन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इफ़्तार में शामिल हुए थे.
बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन और बीजेपी के राज्यसभा सांसद मनन कुमार मिश्र ने भी इस विवाद पर बयान दिया है.
उनका कहना है, “जो लोग ऐसा बयान दे रहे हैं वो ख़ुद जान रहे हैं कि इससे किसी फ़ैसले पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. ये एक धार्मिक कार्यक्रम था, वहां हमारे प्रधानमंत्री ने पूजा की अगर किसी दूसरे तरह की मीटिंग होती तो वो गुप्त मीटिंग होती.
इस बीच बीजेपी नेता संबित पात्रा ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस मुद्दे पर विपक्षी दलों को निशाने पर लिया.
उन्होंने सवाल खड़े किए कि देश के प्रधानमंत्री अगर सीजेआई से मिलते हैं तो आपको आपत्ति होती है, क्या लोकतंत्र के दो स्तंभ को आपस में दुश्मनी रखनी चाहिए, हाथ नहीं मिलाना चाहिए?
संबित पात्रा ने भी दावा किया कि मनमोहन सिंह के इफ़्तार में सीजेआई शामिल होते थे. उन्होंने इसी मौक़े पर राहुल गांधी की विदेश यात्रा पर भी सवाल खड़े किए और विपक्ष से कई तरह के सवाल पूछे.
जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने पीएम मोदी के गणेश पूजा में शामिल होने के लिए सीजेआई के घर जाने को जजों के ‘कोड ऑफ़ कंडक्ट’ से भी जोड़ा है.
उनके मुताबिक़ “यह प्रधानमंत्री के लिए पूरी तरह अनुचित है कि वो एक निजी कार्यक्रम के लिए मुख्य न्यायाधीश के आवास पर जाएं. एक धार्मिक कार्यक्रम का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन करना भी पीएम और सीजेआई के लिए अनुचित है.”
क्या इस बारे में कोई दिशा-निर्देश हैं?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने बीबीसी से बातचीत में बताया कि न्यायमूर्ति वैंकटचलैया ने अपने कार्यकाल में ख़ुद जजों के पालन के लिए ‘कोड ऑफ़ कंडक्ट’ बनाए थे. उनका कहना था कि सभी जज उनका पालन करते रहे हैं.
एमएन वेंकटचलैया साल 1993-94 के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश थे.
दुष्यंत दवे का कहना है कि मनमोहन सिंह के आवास पर इफ़्तार का जो कार्यक्रम हुआ था वह एक सार्वजनिक कार्यक्रम था और उसमें सभी लोग आमंत्रित थे. पहले कभी भी पीएम या राजनीतिक व्यक्ति इस तरह से मुख्य न्यायाधीश के कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए हैं.
दुष्यंत दवे के मुताबिक़ ‘चंद्रचूड़ के पिता ख़ुद सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस थे और उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया. न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के साथ ही न्याय होना और न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए.’
मौजूदा चीफ़ जस्टिस के पिता वाईवी चंद्रचूड़ साल 1978 से साल 1985 के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश थे.
इस विवाद पर बीबीसी ने बीजेपी से जुड़ी वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद से बात की है. उनका दावा है कि जजों के लिए ऐसा कोई ‘कोड ऑफ़ कंडक्ट’ नहीं है.
पिंकी आनंद के मुताबिक़ पीएम और सीजेआई अलग-अलग कार्यक्रमों में मिलते रहे हैं और इस मामले में भी प्रधानमंत्री गणेश पूजा में शामिल होने के लिए निजी घर नहीं बल्कि सरकारी आवास में गए थे और यह सार्वजनिक मुलाक़ात थी.
उनका मानना है, “इससे पहले कोई पीएम सुप्रीम कोर्ट नहीं आए थे, लेकिन पीएम मोदी आए थे और लोगों से मिले थे. ऐसा नहीं है कि जो पहले नहीं हुआ, वह कभी नहीं हो सकता. पीएम का सीजेआई के आवास पर जाना एक अच्छी मिसाल है.”
वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट का जज रहते हुए जस्टिस पीएन भगवती ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक चिट्ठी लिख दी थी, उसके बाद इसपर बहुत बड़ा बवाल हुआ था.
उस वक़्त जस्टिस भगवती ने साल 1980 में इंदिया गांधी की चुनावी जीत पर बधाई देते हुए एक चिट्ठी लिखी थी.
दुष्यंत दवे का मानना है कि जस्टिस चंद्रचूड़ का पीएम को निमंत्रण देना और पीएम का उनके आवास पर जाना दोनों ग़लत है. इस तस्वीर को प्रसारित करना भी ग़लत है.
दवे कहते हैं कि सीजेआई को ऐसा करने से पहले एक हज़ार बार सोचना चाहिए था.
(साभार : बीबीसी न्यूज)