दौड में थे 17 लेकिन पास हुए सिर्फ 4
भोपाल
एन्युअल कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट यानि कि एसीआर के सहारे अब तक केन्द्रीय सेवा के लिए चुने जाने वाले अफसरों को नई प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। दरअसल केन्द्र ने कई वर्षो से चली आ रही प्रक्रिया में रद्दोबदल किया है। इसी का नतीजा है कि मध्यप्रदेश के 17 में से सिर्फ 4 अफसर केन्द्रीय सचिव पद के लिए इंपेनल हो पाए हैं। ये अफसर 1984 से 1985 बैच के हैं। 1984 बैच के आलोक श्रीवास्तव के अलावा 1985 बैच के दीपक खांडेकर, इकबाल सिंह बैंस व आरएस जुलानिया नए मापदंडों में खरे उतरे हैं।
खासबात यह है कि चयन से पहले इन अफसरों का 360 डिग्री प्रोफाइल तैयार करवाया। यानी इनके बारे में रिटायर हो चुके आईएएस अफसरों के अलावा उन अफसरों से फीडबैक लिया गया, जो पिछले तीस साल में इनके अधीन काम कर चुके हैं।
सीनियर-जूनियर से लिया गया फीडबैक
कार्मिक मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने मंत्रालयों में सचिव अथवा उनके समकक्ष पद के लिए अफसरों की एसीआर के अलावा उनकी 30 साल की सर्विस का ट्रैक रिकार्ड खंगाला है। इसके लिए रिटायर हो चुके सीनियर मोस्ट अफसरों से लेकर उनके साथ जिन जूनियर अफसरों ने काम किया है, उनकी सहायता ली है। इतना ही नहीं, सरकार ने इन अफसरों के बारे में इंटेलीजेंस से भी गोपनीय रिपोर्ट प्राप्त की है। सरकार की मंशा मंत्रालयों की कमान ऐसे अफसरों को देने की है, जिनकी कार्यशैली प्रभावशाली रही हो। यही वजह है कि मप्र के कई अफसर इस पद की दौड़ से बाहर हो गए हैं।
वरिष्ठता सूची के आधार पर मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह और केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत विजया श्रीवास्तव को भी सचिव के समकक्ष श्रेणी में रखा गया था। यानी, बीपी सिंह केंद्र में जाते हैं तो वे सचिव नहीं बन पाएंगे। बल्कि केंद्रीय पीएसयू या अन्य किसी संस्थान में ही उनकी सेवाएं ली जाएंगी।
सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने मंत्रालयों में सचिव अथवा उनके समकक्ष पद के लिए अफसरों की एसीआर के अलावा उनकी 30 साल की सर्विस का ट्रैक रिकार्ड खंगाला है। इसके लिए रिटायर हो चुके सीनियर मोस्ट अफसरों से लेकर उनके साथ जिन जूनियर अफसरों ने काम किया है, उनकी सहायता ली है। इतना ही नहीं, सरकार ने इन अफसरों के बारे में इंटेलीजेंस से भी गोपनीय रिपोर्ट प्राप्त की है। सरकार की मंशा मंत्रालयों की कमान ऐसे अफसरों को देने की है, जिनकी कार्यशैली प्रभावशाली रही हो।