नांदगाँव : लड़ने नहीं आएँगे बल्कि यहाँ से लड़ने जाएँगे कांग्रेसी
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रायपुर/राजनांदगाँव.
चुनाव के समय किसी भी स्थान के व्यक्ति (काँग्रेसी) को राजनांदगाँव से चुनाव लड़वाना लगता है काँग्रेस को अब महँगा पड़ने लगा है. तभी तो रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए राजनांदगाँव निवासी डा. आफताब आलम ने दावेदारी कर दी है.
उल्लेखनीय है कि नांदगाँव विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र से बीते चुनाव काँग्रेसी की ओर से बाहरी प्रत्याशी लड़ते रहे हैं. इनमें से कोई सफल हो जाता तो कोई बात नहीं होती लेकिन सारे के सारे असफल ही हुए.
तब से नांदगाँव के काँग्रेसियों में जबर्दस्त आक्रोश देखा जा रहा है. इसका प्रत्यक्ष उदाहरण नांदगाँव जिला पँचायत के पूर्व उपाध्यक्ष सुरेंद्र दास वैष्णव (दाऊजी) का वह भाषण है जो उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री के समक्ष सोमनी क्षेत्र में दिया था.
उक्त भाषण में सुरेंद्र दाऊ द्वारा उठाई गई बातें इतनी गँभीर थी कि मँच पर बैठे काँग्रेसियों के चेहरे तमतमा गए थे और मँच के नीचे से तालियों की गड़गडा़हट सुनाई दी थी. नतीजा क्या निकला . . . सुरेंद्र दाऊ से काँग्रेस ने ही मुँह मोड़ लिया.
दो विस, एक लोस चुनाव में बाहरी प्रत्याशी उतारे थे काँग्रेस ने . . .
विधानसभा चुनाव की बात पहले हो जाए. 2018 के विस चुनाव में काँग्रेस ने तब के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को घेरने के लिए श्रीमती करूणा शुक्ला को नांदगाँव के चुनावी मैदान में उतारा था.
भले ही इस चुनाव में करूणा दीदी ने डा. सिंह को जीत के लिए नाकों चने चबवा दिए रहे हों लेकिन बाहरी प्रत्याशी होने का खामियाजा हार के रूप में उन्हें झेलना पडा़ था.
तब तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को 80 हजार 589 वोट प्राप्त हुए थे. अपने तेज तर्रार तेवर के लिए पहचानी जाने वाली करुणा को 63 हजार 656 वोट हासिल हुए थे.
चूँकि मुख्यमंत्री रहते हुए रमन महज 16 हजार 933 मतों से जीते थे इस कारण इस बार वह नांदगाँव को लेकर सँशय की स्थिति में थे. लेकिन इस बार भी काँग्रेस ने बाहरी प्रत्याशी उतार कर रमन सिंह की बल्ले बल्ले कर दी.
2023 में हुए विधानसभा चुनाव में डा. रमन के खिलाफ काँग्रेस ने गिरीश देवाँगन को उम्मीदवार बनाया था. गिरीश ने “आपका भाँचा”
जैसे वाक्यों का उपयोग कर नांदगाँव से रिश्ता जोड़ने की कोशिश भी की थी.
लेकिन बाहरी प्रत्याशी होने का दाग गिरीश भी नहीं धो पाए. गिरीश को कुलजमा 57 हजार 415 मत मिले थे जोकि विजयी प्रत्याशी डा. रमन सिंह के मुकाबले 45 हजार 84 कम थे.
मतलब 2018 के मुकाबले 2023 के विस चुनाव में काँग्रेस की और जबरदस्त किरकिरी हुई. यही हाल लोकसभा चुनाव का भी रहा.
काँग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में राजनांदगाँव से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को प्रत्याशी बनाया था. पूर्व मुख्यमंत्री बघेल चूँकि पडोसी जिले दुर्ग के मूल निवासी बताए जाते हैं इस कारण नांदगाँव के काँग्रेसी उन्हें लेकर सहज नहीं हो पाए.
नतीजतन, भाजपाई सँतोष पांडेय के हाथों भूपेश बघेल को हार झेलनी पडी़. इस चुनाव में सर्वाधिक रोचक आँकडा़ उस नांदगाँव विधानसभा का था जिसकी उपेक्षा का आरोप भूपेश पर लगते रहा था.
लोकसभा चुनाव में भूपेश को नांदगाँव विस से महज 50 हजार 991 मत मिले थे जोकि संतोष के मुकाबले 57 हजार 666 कम थे. विस चुनाव के हिसाब से मतवार देखा जाए तो यह लीड़ डा. रमन सिंह से भी बडी़ थी.
बहरहाल, सँतोष पांडेय के हाथों भूपेश बघेल को 44 हजार 365 मतों से हार झेलनी पडी़ थी. कुल मिलाकर बाहरी काँग्रेसियों को चुनावी मैदान में नांदगाँव से प्रत्याशी बनाना यहाँ की जनता और काँग्रेसियों को रास नहीं आया.
अब इसके दुष्परिणाम दिखाई देने लगे हैं. आने वाले समय में रायपुर दक्षिण में विधानसभा का उपचुनाव होना है. यह सीट बृजमोहन अग्रवाल के लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने के चलते खाली हुई है.
रायपुर दक्षिण से काँग्रेस के डा. आफताब आलम ने दावेदारी कर दी है. साफ सुधरी छवि के डाक्टर आफताब मूलत: राजनांदगाँव के रहने वाले बताए जाते हैं.
पिछले ही दिनों वे नांदगाँव के अन्य काँग्रेसियों के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज से मिल आए हैं. नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत से भी नांदगाँव के काँग्रेसियों ने आफताब आलम को रायपुर दक्षिण से प्रत्याशी बनाने की माँग की है.
बताया तो यह तक जाता है कि प्रदेश कांँग्रेस अध्यक्ष बैज और नेता प्रतिपक्ष डा. महंत ने इस संदर्भ में गंभीरता से विचार करने का भरोसा दिया है. आने वाले दिनों में नांदगाँव के काँग्रेसी इस विषय पर भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव से भी मिलने की योजना बना रहे हैं.
बहरहाल, मध्यप्रदेश खनिज विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष कुतबुद्दीन सोलंकी, पूर्व निगम अध्यक्ष रमेश डाकलिया, अधिवक्ता कामदेव वर्मा, हेमू सोनी, फरमान अली जैसे कुछेक नाम हैं जोकि आफताब के लिए लॉबिंग करते देखे जा सकते हैं. मतलब काँग्रेस को बाहरी प्रत्याशी का मुद्दा अभी परेशान करते रहेगा.