कमिश्नर काँवरे ने बताया क्या होती है कमिश्नरी!
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रायपुर.
देश में एक चुनाव आयुक्त हुए थे . . . टीएन शेषन ! बिना नियम कायदे कानून बदले उन्होंने राजनीतिक दलों को कानून का पाठ पढा़ दिया था. न तो शेषन जैसे अधिकारी फिर हुए और ना ही कायदे की परिपाटी रही. फिर भी अब ऐसे अफसर कहीं भी, कभी भी मिल ही जाएँगे जो नियमसंगत चलने का प्रयास करते हैं. इनमें से एक महादेव काँवरे हैं जिन्हें सरकार ने राजधानी रायपुर का सँभाग आयुक्त बना कर रखा है. छापामार शैली वाले काँवरे, कैसी होती है कमिश्नरी आसपास वालों को इन दिनों समझा रहे हैं.
ज्ञात हो कि डा. संजय अलंग अभी हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं. अलंग अलग फितरत के अफसर हैं अथवा थे कहिए. साहित्य का आदमी जितना भला मानष हो सकता है उतने ही भले थे डाक्टर अलंग.
अलंग की रवानगी के बाद उस पद पर महादेव काँवरे को सरकार ने बैठाया. इनकी ईमानदारी की ऐसे मिसाल दी जाती है कि इन्होंने तब आबकारी आयुक्त की जिम्मेदारी सँभाली थी जब के समय को भाजपा आबकारी घोटाला कहते हुए भुनाती रही है.
दरअसल, तब काँवरे ने बिना किसी भी लागलपेट के गलत काम करने से साफ इंकार किया था. भाजपा के बडे़ नेताओं को यह बात पता थी. वह आईएएस काँवरे की इस ईमानदारी के कायल भी थे.
तभी तो जैसे ही परिस्थिति बनी सरकार को वैसे ही काँवरे याद आए. साय सरकार ने काँवरे को रायपुर का कमिश्नर बना दिया. अब राजधानी जैसी जगह में पदस्थ रहते हुए कम से कम कमिश्नर जैसे अधिकारी के लिए करने कोई बहुत ज्यादा काम रह नहीं जाता है. जो रहता भी है वह खबर का हिस्सा नहीं होता.
लेकिन जहाँ चाह है, वहाँ राह है . . . काँवरे जैसे आईएएस अफसर इस तथ्य से वाकिफ भी हैं और लोगों को परिचित भी करा रहे हैं. 3 अगस्त को कार्यभार सँभालने के महज दस दिनों के अंदर काँवरे ने रायपुर सँभाग में पदस्थ कर्मचारियों – अधिकारियों में बेचैनी पैदा कर दी है कि कब किसकी कहाँ कैसे वाट न लग जाए.
एसडीएम को थमा आए नोटिस. . .
अमूमन, आम आदमी की सोच में एसडीएम या फिर अनुविभागीय दंडाधिकारी बहुत बडा़ अधिकारी होता है. हो भी क्यूं न . . . आम आदमी का वास्ता एसडीएम से ही पड़ता है. जिले के राजा माने जाने वाले कलेक्टर्स से तो गाहेबेगाहे ही वह मिल पाता है.
एसडीएम कोर्ट में तकरीबन हर रोज अनगिनत आम आदमी अपनी समस्या के निदान के लिए जी हूजुरी करते नज़र आते ही हैं. फिर एसडीएम साहब के पास अनगिनत नेताओं – अधिकारियों के भी ऐसे काम आते रहते हैं जोकि कायदे से हो नहीं सकते लेकिन एसडीएम की कृपा से होते ही हैं.
मतलब, एसडीएम से पँगा बडे़ से बडा़ नेता अथवा अधिकारी लेता नहीं है. इस चक्कर में एसडीएम साहब और भी ज्यादा बलशाली हो जाते हैं. लेकिन हनुमान जी के सामने भीम के बल की क्या बिसात ?
तो महादेव काँवरे नामक आईएएस से सँभवतः पहली मर्तबा रायपुर एसडीएम का सामना हुआ हो. अनुविभागीय राजस्व अधिकारी यानि कि एसडीएम और तहसीलदार के दफ़्तर का आकस्मिक निरीक्षण करने कमिश्नर काँवरे साहब निकले थे.
ठीक सुबह दस बजे वह तब दफ़्तर पहुँचे थे जब कई लोग अपने अपने घरों से कार्यालय जाने रवाना हुए थे. तहसील कार्यालय में उन्होंने कई शाखाओं में, कई पँजियों और दस्तावेजों को देखा.
बारिक नज़र में आनलाइन रजिस्ट्रेशन नहीं पाए जाने का मामला मिलते ही वह तहसीलदार को कारण बताओ नोटिस थमाने का निर्देश देते हुए आगे बढ़ गए. राजस्व प्रकरण तलब करने पर उन्हें वहाँ पर भी गड़बडी़ मिली.
बहरहाल, लंबे समय से आदेश के लिए लंबित पडे़ प्रकरण पर उन्होंने किंतु परंतु करने के स्थान पर सीधे एसडीएम को नोटिस थमा दी. मालूम हो कि इन दिनों नंदकुमार चौबे नामक डिप्टी कलेक्टर के कँधों पर रायपुर एसडीएम की जिम्मेदारी है.
उल्लेखनीय है कि बिना किसी भी ठोस कारण के, कोई भी अधिकारी, किसी भी स्तर पर, कैसी भी फाइल यदि रोक कर रखे रहता है तो वह या तो लापरवाह है या फिर भ्रष्ट तरीके अपनाने की सोच रही होगी ऐसा प्रशासनिक क्षेत्र में माना जाता है.
कमिश्नर काँवरे ने ऐसे ही एक मामले में अब एसडीएम नंदकुमार चौबे से जवाब तलब किया है. एसडीएम चौबे के अधीन उनके ही दफ़्तर में कई ऐसी फाइलें कमिश्नर को देखने को मिलीं जोकि बिना किसी उचित कारण के आदेश के लिए लंबित पडी़ थी.