आदिवासी दिवस : काँग्रेसी-भाजपाई शासनकाल में बढ़ते चले गए अपराध
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रायपुर.
विश्व दिवस पर यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि कितने सुरक्षित हैं आदिवासी ? आंकड़ों पर गौर करें तो चौंकाने वाले तथ्य उभर कर सामने आते हैं. प्रदेश और देश में शासन कर चुकी/रही क्रमशः काँग्रेस और भाजपा के समय आदिवासियों के प्रति अपराध साल दर साल बढ़ते चले गए.
हमारे आदिवासी भाई बहन आज आदिवासी दिवस मना रहे हैं. प्रदेश को आदिवासी आबादी के हिसाब से न्याय क्यूं नहीं मिल पाया इस पर भी गौर करना जरूरी है.
छठे नंबर पर था छत्तीसगढ़ . . .
वर्ष 2021 तक प्राप्त अंतिम आँकड़ों पर नज़र दौडा़ई जाए तो छत्तीसगढ़, आदिवासी आबादी के साथ हुए अपराध के मामले में देश में छठवे स्थान पर था. यानि कि उससे ऊपर पाँच और राज्य थे.
यह आँकडा़ देश के 36 राज्यों का है. इस हिसाब से छत्तीसगढ़ की स्थिति कोई ज्यादा बेहतर नहीं रही है. जातिगत जनगणना की आवाज बुलंद करने वाली काँग्रेस के ही राज में छत्तीसगढ़ के आदिवासी परिजन साल दर साल ज्यादा प्रभावित हुए.
सनद रहे कि दिसंबर 18 से लेकर दिसंबर 2023 तक छत्तीसगढ़ में काँग्रेस की सरकार हुआ करती थी. गौरतलब तथ्य यह है कि 2018 में आदिवासी आबादी के खिलाफ अपराध के कुलजमा 388 प्रकरण दर्ज किए गए थे.
यदि सरकार ठीक से अपना काम करती तो इसमें कमी आती लेकिन अगले ही साल ( 2019 ) इसमें वृध्दि दर्ज की गई थी. 2019 में छत्तीसगढ़ के 427 आदिवासी भाई बहन अपराध के शिकार हुए थे.
साल 2020 में यह अंतर और बढ़ गया. तब राज्य के 502 आदिवासी अपने विरूद्ध हुए अपराध की चपेट में आए थे. 2021 में ऐसे आदिवासियों की सँख्या 506 तक पहुँच गई थी जोकि अपराध झेल रहे थे.
बहरहाल, देश का गृह मंत्रालय मानता है कि आदिवासियों के प्रति और जिम्मेदार होने की जरुरत है. उसके आँकड़े इस ओर इशारा भी करते हैं.
देश में वर्ष 2018 के दौरान 6 हजार 528 आदिवासी अपराधिक गतिविधियों का शिकार हुए थे. यह सँख्या बढ़कर 2019 में 7 हजार 570, 2020 में 8 हजार 272 और साल 2021 में 8 हजार 802 हो चुकी थी.
अकेले 2021 के आंकड़ों को लिया जाए तो मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य था जहाँ पर आदिवासी आबादी सर्वाधिक प्रभावित थी. मप्र में तब 2 हजार 627 मामलों ने उसे देश में पहले स्थान पर पहुँचा दिया था.
उसी अवधि में तब राजस्थान में 2 हजार 121 मामलों की जानकारी मिली है. इसी समय एक अन्य पडोसी प्रांत ओडिसा में 676 मामले सामने आए थे.
आदिवासी बहुल बस्तर से लगे सीमावर्ती प्रांत तेलंगाना में 512 और छत्तीसगढ़ – मध्यप्रदेश की सीमा से सटे राज्य महाराष्ट्र में 628 मामले आदिवासी आबादी के खिलाफ हुए अपराधों के थे.