दीर्घकालीन रणनीति से ही माओवाद से निपटा जा सकता है : विश्वरंजन
रायपुर।
नक्सलवाद पर काबू पाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरुरत है. यह सलाह छत्तीसगढ़ के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) विश्वरंजन ने दी है. उनके अनुसार माओवाद पर काबू पाने के लिये लंबी रणनीति बनाये जाने की ज़रुरत है. किसी इलाके से अगर माओवादी थोड़े समय के हट भी जायें तो यह उनकी रणनीति का ही हिस्सा होता है. वे दुबारा उसी इलाके में पूरी तैयारी और रणनीति के साथ लौट सकते हैं. वे ऐसे हार नहीं मानने वाले हैं. उनके लिये दीर्घकालीन नीति बनानी होगी.
विश्वरंजन ने कहा कि माओवादियों को जिस तरीके का प्रशिक्षण दिया जाता है, वह सेना के प्रशिक्षण की तरह है. लेकिन हमारी सीआरपीएफ जैसी फोर्स को लडऩे के लिये तो प्रशिक्षित किया जाता है लेकिन माओवादियों से लडऩे का प्रशिक्षण उन्हें भी नहीं दिया जाता. उन्हें विशेष तौर पर प्रशिक्षित करने की ज़रुरत है.
गहराई से विश्लेषण करते हैं नक्सली
विश्वरंजन ने कहा कि माओवादियों को इस तरह की लड़ाई में स्ट्रैटज़ी और टैक्टिस का पूरा प्रशिक्षण होता है. वे देश के किसी भी हिस्से में हुई पुलिस मुठभेड़ का पूरी गहराई के साथ विश्लेषण करते हैं, उस पर अपने साथियों से चर्चा करते हैं और फिर उसके सकारात्मक-नकारात्मक पहलू पर विचार करते हुये अपनी अगली रणनीति को तय करते हैं. पुलिस में इसका घोर अभाव है.
उन्होंने कहा कि माओवादियों से लडऩे की रणनीति बने, उनके हमलों को लेकर प्रशिक्षण दिया जाये तो बहुत ही सफलतापूर्वक ऑपरेशन किये जा सकते हैं.
सेना की जरुरत नहीं
विश्वरंजन ने कहा कि बस्तर में सेना को तैनात करने की ज़रुरत नहीं है. ऐसा नहीं है कि बस्तर के सारे आदिवासी माओवादी हैं. मेरा मानना है कि जो लड़ाई पुलिस लड़ सकती है, उसके बजाये सेना को उस लड़ाई में शामिल करना कोई बेहतर रणनीति नहीं होगी.
माओवादियों के पीछे हटने के दावे पर उन्होंने कहा कि माओवादी अपनी लड़ाई को हमेशा दीर्घकालीन युद्ध कहते हैं. उनके दस्तावेज़ बताते हैं कि वे ऐसी दीर्घकालीन लड़ाई में पीछे हटने को एक सामान्य प्रक्रिया मानते हैं. यह संभव है कि माओवादियों को सरकार ने बैकफूट पर डाल दिया हो. लेकिन इसका मतलब यह कभी नहीं लगाया जाना चाहिये कि ऐसा करने से माओवादी हार मान लेंगे. उनका विश्वास है कि आगे-पीछे आने-जाने की प्रक्रिया में भी अंतत: वे अपनी लड़ाई में जीत हासिल ज़रुर करेंगे.
विश्वरंजन ने कहा कि जब भी माओवादी बैकफूट पर जाते हैं तो वो उस अवसर का उपयोग रणनीतियों को समझने, उसमें फेरबदल करने और आगे की लड़ाई की तैयारी में लगाते हैं. वे इतनी आसानी से चुप बैठने वाले नहीं हैं. माओवादियों के खिलाफ अगर लडऩा है तो सरकार को दीर्घ कालीन रणनीति बनानी होगी.