क्‍या डायरेक्‍ट आईएएस नहीं बनना चाहते आबकारी सचिव ?

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नेशन अलर्ट/www.nationalert.in
जनचर्चा…
छत्‍तीसगढ़ में आबकारी विभाग बीते कुछेक वर्षों से जनचर्चा का विषय बना हुआ है। इस विभाग में हाल के वर्षों में ज्‍यादातर समय प्रमोटी आईएएस अफसर ही बतौर सचिव पदस्‍थ होते रहे हैं। डायरेक्‍ट आईएएस ने इस विभाग की तरफ से अपना मुंह इस हद तक मोड़ा है कि पलटकर कभी देखने की फुरसत भी उन्‍होंने नहीं की है।

क्‍या कारण है कि डायरेक्‍ट आईएएस आबकारी विभाग से दूरी बनाए हुए हैं ? प्रमोटी आईएएस को ही आबकारी विभाग के सचिव का दायित्‍व मिलते रहा है। अभी देखिए न…जनकप्रसाद पाठक जो कि प्रमोटी आईएएस अफसर हैं को हटाकर इस विभाग में सचिव के पद पर दुर्ग के संभागायुक्‍त महादेव कावरे को पदस्‍थ कर दिया।

प्रशासनिक लॉबी में जेपी के नाम से प्रसिद्ध पाठक के अलावा कावरे भी उसी श्रेणी के अधिकारी हैं। हालांकि पाठक को इस तरह बदला जाना लोगों की समझ से परे है। मीडिया संस्‍थानों में तो इस बात की चर्चा हो रही है कि जिस अधिकारी के अधीन पूरे प्रदेश की आबकारी लॉबी हुआ करती थी उसे बड़ा बाबू बनाकर दुर्ग भेज दिया गया है।

डायरेक्‍ट आईएएस दरअसल, कुछेक वर्षों से आबकारी सचिव बनने की दौड़ से बाहर चल रहे हैं। इसका कारण प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के रूख को माना जा रहा है। ईडी ने समय समय पर आबकारी में हुए तथाकथित घोटाले को लेकर जो जुर्म दर्ज करने की प्रक्रिया चालू की है, समंस जारी करने की प्रक्रिया चालू की है, गिरफ्तार करने की जो प्रक्रिया चालू की है उससे आईएएस अफसरों की नींद उड़ गई है।

आईएएस अफसर गौरव द्विवेदी के पहले और बाद में शायद ही किसी डायरेक्‍ट आईएएस को आबकारी में रूचि लेते देखा गया हो। गौरव की भी नियुक्ति को हुए चार साढ़े चार साल होने को आ रहे हैं। निरंजन दास जो कि प्रमोट होकर आईएएस बने थे ने पहले आबकारी आयुक्‍त का दायित्‍व निभाया और 31 जनवरी 2023 को इसी पद से सेवानिवृत्‍त हो गए। लेकिन इसके बाद उन्‍हें संविदा नियुक्ति दी गई और फिर से एक बार आबकारी उनके हिस्‍से आया।

यही जिम्‍मेदारी सेवानिवृत्‍त होने के बाद भी आबकारी का प्रभार संभालने वाले निरंजन दास के लिए महंगी पड़ी। निरंजन दास आज कहां हैं इसकी जानकारी अच्‍छे अच्‍छे को नहीं है। क्‍यूं… क्‍योंकि निरंजन दास को ईडी ने फर्जी-बोगस होलोग्राम से जुड़े मामले में आरोपी बनाते हुए उनके खिलाफ यूपी में जुर्म दर्ज किया है।

हालांकि इस मामले में निरंजन दास इकलौते आरोपी नहीं हैं। उनके साथ सेवानिवृत्‍त आईएएस अफसर अनिल टुटेजा, आबकारी के विशेष सचिव रहे अरूणपति त्रिपाठी आरोपियों के नामों की सूची की शान बढ़ा रहे हैं। इन सबके चलते छत्‍तीसगढ़ में डायरेक्‍ट आईएएस आबकारी सचिव बनने की दौड़ में शामिल होने से इनकार करते रहे हैं।

तभी तो छत्‍तीसगढ़ में जनचर्चा के मुताबिक पहले जेपी पाठक आबकारी सचिव बनाए गए। इसके बाद महादेव कावरे को दुर्ग कमिश्‍नर के पद से हटाकर एक तरह से भारी भरकम विभाग देते हुए आबकारी आयुक्‍त की जिम्‍मेदारी सौंपी गई है। उन्‍हें राज्‍य प्रशासनिक सेवा से अखिल भारतीय सेवा में पदोन्‍नत करने का फैसला तकरीबन आठ साल पहले हुआ था।

तब रायपुर के कलेक्‍टर ठाकुर राम सिंह हुआ करते थे। ठाकुर और सत्‍यनारायण राठौर, चंद्रकांत उइके, हिरालाल नायक, श्‍यामलाल धावड़े, नरेंद्र दुग्‍गा के साथ महादेव कावरे को 2013 का रिक्‍त पदों का कैडर आबंटित करते हुए आईएएस बनाया गया था। अब वह आबकारी विभाग में पहुंच गए हैं जहां क्रियाकलापों से ज्‍यादा चर्चा लोगों के बीच ईडी और उसके द्वारा की जाने वाली कार्यवाही को लेकर हो रही है।

ईश्‍वर करे तमाम तरह के वाद विवाद के बावजूद महादेव कावरे काजल की कोठरी से बेदाग बाहर निकल सके। जनचर्चा कहती है कि डायरेक्‍ट आईएएस ने विवादों के बीच आबकारी सचिव-आयुक्‍त बनने से इनकार कर दिया था इसकारण कावरे की नियुक्ति हुई है। कावरे अपनी इस नियुक्ति को पाक साफ साबित कर दें।

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