क्या रमन को कवर्धा-डोंगरगांव से उतारने की सोच में है भाजपा ?
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राजनांदगांव। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के संदर्भ में भाजपा इन दिनों गुणा भाग करने में लगी हुई है। संभवत: उन्हें या तो कवर्धा या फिर डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में उतारा जा सकता है। ये दोनों ही क्षेत्र इन दिनों कांग्रेस के कब्जे में हैं। यहां से डॉ.रमन सिंह पहले विधायक रह चुके हैं।
राजनांदगांव में डॉ.रमन सिंह की राजनीतिक पारी 2008 से प्रारंभ हुई थी। इसके पहले वह मुख्यमंत्री बनने के बाद डोंगरगांव विधानसभा उपचुनाव जीतकर 2004 में नवगठित छत्तीसगढ़ प्रदेश में विधायक बने थे। अब एक बार फिर उनके भविष्य को लेकर किंतु परंतु के दौर से भाजपा आलाकमान गुजर रहा है।
गृहनगर है कवर्धा
दरअसल कवर्धा डॉ.रमन सिंह का गृहनगर है। यहां से इन दिनों कांग्रेस के मोहम्मद अकबर विधायक हैं। कवर्धा से रमन सिंह की चुनावी राजनीति की यात्रा 1990 में प्रारंभ हुई थी। तब उन्होंने 31366 मत (47.71 प्रतिशत) प्राप्त कर कांग्रेस के जगदीश चंद्रवंशी को परास्त किया था। जगदीश को महज 15337 (23.32 प्रतिशत) मत प्राप्त हुए थे।
1993 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर रमन सिंह ने भाजपा के लिए यह सीट जीत ली थी। तब उन्हें 29430 (40.72) मत प्राप्त हुए थे। जबकि उनकी प्रतिद्वंदी रहीं रानी शशिकला देवी जिन्हें 21703 (30.02) मत प्राप्त हुए थे हार गईं थी।
1998 के आते आते सिंह का प्रभाव कवर्धा विधानसभा क्षेत्र में कमजोर पड़ गया था। तब पहली बार उन्हें 37524 (40.68) मत प्राप्त करके कांग्रेस के योगेश्वरराज सिंह के हाथों हार झेलनी पड़ी थी। राजपरिवार से जुड़े सिंह को 57.41 प्रतिशत याने कि 52950 मत प्राप्त हुए थे।
इसके बाद रमन सिंह का भाग्य जब डांवाडोल नजर आ रहा था तब लोकसभा के चुनाव हो गए। इस चुनाव में कवर्धा विधानसभा से हारे हुए रमन सिंह को भाजपा ने राजनांदगांव लोकसभा संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया था।
रमन सिंह का मुकाबला तब के दिग्गज कांग्रेसी रहे स्व.मोतीलाल वोरा से था। जब देश-प्रदेश के सारे छोटे बड़े अखबार मोतीलाल वोरा की जीत तय मान रहे थे तब उन्हें आश्चर्यजनक रूप से डॉ.रमन सिंह ने शिकस्त दी थी। इसके बाद उन्होंने पलटकर पीछे नहीं देखा।
रमन सिंह तब राजनांदगांव संसदीय क्षेत्र के पहले ऐसे सदस्य थे जिन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिला था। इसी बीच 2003 के छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव ने अपनी आहट दे दी थी। तब केंद्रीय मंत्री व वर्तमान में राज्यपाल रमेश बैस की प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने की नानुकूर के बीच डॉ.रमन सिंह को यह दायित्व मिला था।
इस दायित्व के मिलने के साथ ही रमन सिंह के भाग्य का सितारा ऐसा उदित हुआ कि उन्होंने 2018 तक छत्तीसगढ़ में एक छत्र राज किया। चूंकि रमन विधानसभा के सदस्य नहीं थे और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था इसकारण उन्हें कहीं से उपचुनाव लड़ना था।
चूंकि तब कवर्धा सीट पर कांग्रेस के योगेश्वरराज सिंह बतौर विधायक काबिज थे इसकारण रमन सिंह को कोई दूसरा क्षेत्र चुनना था। डोंगरगांव विधायक रहे प्रदीप गांधी ने मौके का फायदा उठाया और अपनी ही पार्टी के डॉ.रमन सिंह के लिए यह सीट खाली कर दी।
2003 में प्रदीप गांधी 42784 वोट अर्जित कर विधायक बने थे। तब उन्होंने गीतादेवी सिंह जिन्हें 36649 मत मिले थे को हराया था। प्रदीप गांधी 47.09 व गीतादेवी सिंह 40.34 मत अर्जित करने में सफल रहे थे।
इस तरह से रमन सिंह पहली मर्तबा उपचुनाव जीतकर डोंगरगांव से विधायक बने थे। बाद में उन्होंने 2008, 2013 व 2018 में राजनांदगांव विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर इसे अपनी कर्मभूमि बना लिया था। अब भाजपा उन्हें वापस या तो डोंगरगांव या फिर कवर्धा से उतारने की उधेड़बुन में लगी हुई है।
अकबर-दलेश्वर को हराना चाहती है भाजपा
इन दिनों कवर्धा विधानसभा क्षेत्र से मोहम्मद अकबर और डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र से दलेश्वर साहू कांग्रेस के मजबूत विधायक हैं। दोनों ही सीट भाजपा के कब्जे में पहले रही है। इन दोनों सीट से डॉ.रमन सिंह का भी पहले से रिश्ता रहा है।
2018 के विधानसभा चुनाव में मोहम्मद अकबर ने 56.63 फीसदी मत प्राप्त करके अशोक साहू को जिन्हें 32 फीसदी मत मिले थे हराया था। यही अशोक साहू 2013 में 93645 मत अर्जित करके मो.अकबर को हराने में सफल रहे थे। उस समय अकबर को 91697 मत मिले थे।
2008 में इस सीट से भाजपा के सियाराम साहू जिन्हें 78817 मत मिले थे योगेश्वरराज सिंह को हराने में सफल रहे थे। उस वक्त कांग्रेस के योगेश्वरराज सिंह को 68409 मत मिले थे। दोनों के बीच यह दूसरी मर्तबा लड़ाई थी।
क्योंकि 2003 में योगेश्वरराज सिंह ने 42.48 फीसद मत अर्जित करके 39 फीसदी वोट अर्जित करने वाले सियाराम साहू को शिकस्त दी थी। तब कांग्रेस के योगेश्वर को 51092 व सियाराम को 46904 मत मिले थे।
यह सीट एक तरह से कांग्रेस-भाजपा के बीच झूलती रही है। पहले इस सीट पर कांग्रेस का एकतरफा कब्जा हुआ करता था जबकि डॉ.रमन सिंह के आने के बाद यह सीट भाजपा की झोली में भी जाती रही। अब इस बार मो.अकबर को हराना भाजपा की प्राथमिकता में बताया जाता है।
दरअसल मो.अकबर के आने के बाद से कवर्धा सीट पर भाजपा कुछ हद तक कमजोर पड़ी है। यदि उनके समक्ष डॉ.रमन सिंह जैसा कोई दमदार प्रत्याशी उतार दिया जाता है तो हवा का रूख भी बदल सकता है। कवर्धा में सांप्रदायिक सद्भाव इन दिनों संकट में भी नजर आ रहा है। भाजपा इस अवसर का फायदा उठाने की सोच में लगी हुई है।
डोंगरगांव विधानसभा सीट को लेकर भी भाजपा आलाकमान सोचने मजबूर हुआ है। दरअसल रमन सिंह के इस विधानसभा सीट को छोड़ने के बाद कांग्रेस यहां दिन प्रतिदिन मजबूत हुए जा रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में दलेश्वर साहू ने बतौर कांग्रेस प्रत्याशी 84581 मत प्राप्त किए थे। जबकि उनके प्रतिद्वंदी रहे पूर्व सांसद मधुसूदन यादव 65498 मत प्राप्त कर हार गए थे।
2013 के भी विधानसभा चुनाव में दलेश्वर विजयी हुए थे। तब उन्हें 67755 मत मिले थे। उनके निकटतम उम्मीदवार रहे दिनेश गांधी जो कि पूर्व सांसद व पूर्व विधायक प्रदीप गांधी के भाई हैं को 66057 मत मिले थे।
इसके पहले 2008 में खेदूराम साहू ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। तब उन्होंने गीतादेवी सिंह को हरा दिया था। खेदूराम को 61344 व गीतादेवी को 51937 मत मिले थे। 2003 में प्रदीप गांधी 42784 मत प्राप्त करके गीतादेवी जिन्हें 36649 मत मिले थे से जीत गए थे।
प्रदीप गांधी के इस्तीफा देने के बाद इस सीट पर हुए विधानसभा उपचुनाव में मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने कड़ी टक्कर के बावजूद गीतादेवी सिंह को हराया था। लेकिन नतीजा कोई इतना संतोषजनक नहीं था कि डॉ.रमन सिंह इस सीट से वापस लड़ने की सोच सकते थे।
2008 में उन्होंने राजनांदगांव विधानसभा सीट को चुना था। 2008, 2013 और 2018 में डॉ.रमन सिंह ने राजनांदगांव सीट जीतकर यहां कांग्रेस को बेहद कमजोर कर दिया है। यदि इस बार उन्हें डोंगरगांव अथवा कवर्धा सीट से भाजपा लड़ाने की सोच रही है तो इसका कारण भी यही है।
राजनांदगांव से भाजपा किसी और प्रत्याशी को उतारकर कवर्धा या फिर डोंगरगांव सीट को कांग्रेस के हाथ से वापस छिन लेना चाहती है। डॉ.रमन सिंह इस सोच में भाजपा को एक बेहद मजबूत उम्मीदवार नजर आ रहे हैं।
चूंकि कवर्धा उनका गृहनगर है और डोंगरगांव सीट से वह पहले एक बार उपचुनाव जीत चुके हैं इसकारण ये दोनों ही क्षेत्र उनके लिए एक सुरक्षित सीट माने जा रहे हैं। यदि ऐसा होता है तो आने वाला समय कांग्रेस के मो.अकबर और दलेश्वर साहू को कवर्धा व डोंगरगांव में दिन में तारे देखने मजबूर होना पड़ सकता है।