एक पैर से दिव्यांग हैं योगी की पहली पसंद के अफसर

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लखनऊ।

यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने 2003 बैच के आईएएस अफसर रिग्जियान सैम्फिल को अपना विशेष सचिव नियुक्त किया है। सैम्फिल की साफ-सुथरी छवि की वजह से ही योगी ने उन्हें अपना विशेष सचिव बनाने का फैसला किया।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले जिस अफसर पर अपना भरोसा जताया है, वो सूबे के अन्य अफसरों से कुछ अलग हैं। योगी ने अपने कार्यालय के लिए सचिव पद पर 2003 बैच के आईएएस अफसर रिग्जियान सैम्फिल को चुना है। इसके पीछे की वजहों को लेकर चर्चा गर्म है।दरअसल, सैम्फिल भगवा तो नहीं पहनते पर उनकी पूरी कार्यशैली किसी संत व फ़कीर से कम नही है। बुधं शरणम् गच्छामि के मन्त्र को अपना आधार मानकर गरीब मजबूर व बेसहारा के लिए वे कुछ भी करने को उठ खड़े हो जाते हैं। एक पैर से दिव्यांग सैम्फल कठिन मेहनत के साथ ही अपने कर्तव्यों का समय से अनुपालन करते हैं।

सरल स्वभाव के हैं
आईएएस अधिकारी रिग्जियान सैम्फिल को सीएम योगी ने अपने मुख्यमंत्री सचिवालय में विशेष सचिव के पद पर तैनात किया है। उनकी यह मुख्यमंत्री कार्यालय में यह पहली तैनाती है। रिग्जियान सैम्फिल इससे पहले अखिलेश यादव के विशेष सचिव भी थे।उसके बाद भी योगी आदित्यनाथ सरकार में रिग्जियान सैम्फिल विशेष सचिव के साथ ही अपर मुख्य परियोजना निदेशक वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट, पर्यटन और अपर अधिशासी निदेशक सिफ्सा की जिम्मेदारी संभालेंगे। वर्ष 2003 बैच के आईएएस अफसर रिग्जियान की पहचान बेहद सरल स्वभाव के अफसरों में होती है। उनकी तैनाती से यह संदेश भी मिला कि नई सरकार अच्छे अधिकारियों को अहम पदों पर तैनात करने में कोई कोताही नहीं करेगी।

बता दें कि सैम्फिल मूल रूप से जम्मू-कश्मीर के लेह इलाके के रहने वाले हैं। बताया ये भी जाता है कि बचपन में ही परिवारीजन जम्मू में अलगाववादियों के अत्याचार के शिकार हुए। सबकुछ इनके परिवार का हड़प लिया। जान बचाकर किसी तरह माता-पिता ने रिग्जियान और छोटे भाई को लेकर जम्मू छोड़ दिया। वहां से इनका परिवार देहरादून आ गया। तबसे सैम्फिल के परिवारीजन यहीं रह रहे हैं। बेहद सादगी और दयालु ह्रदय के ईमानदार छवि के सैम्फिल जब बहराइच में जिलाधिकारी थे तब इन्होंने जनहित के एक से बढ़कर एक काम किये।

गरीबों के हीरो बन गए
इसके पूर्व कुशीनगर में भी आमजन के लिए रिग्जियान ने इतना काम किया कि गरीबों के हीरो बन गए। यही वजह रही तब योगी ने इन्हें सराहा था। इसी दौरान सैम्फिल योगी के संपर्क में आ गए थे।

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में 2011 में एक फैसला लागू हुआ। सभी दोपहिया गाडिय़ों को पेट्रोल तभी मिलेगा जब चलाने वाले के पास हैल्मेट हो गया। देखते ही देखते शहर में बिना हेल्मेट वाली बाइक दिखना बंद हो गईं। इस फैसले को तेज़तर्रार और इनोवेटिव आईपीएस रिग्ज़्यान सैँफल ने लागू करवाया था। वही रिग्ज़्यान सैंफल जिन्हें यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अपना विशेष सचिव नियुक्त किया है। रिग्ज़य़ान इससे पहले अखिलेश यादव के भी विशेष सचिव रह चुके हैं। रिग्ज़्यान सैंफल का आईएएस के तौर पर काम न सिर्फ रोचक है बल्कि उनकी मोटिवेट करने वाली भी।

रिग्ज़्यान डीएम के तौर पर दो कारणों से चर्चित रहे। पहला डीएम के तौर पर भ्रष्ट अधिकारियों वगैरह पर की गई कार्यवाहियों के चलते। डीएम के तौर पर नई पोस्टिंग से पहले अखबारों में उनके पिछली पोस्टिंग में करवाए ट्रांसफर्स, एफआईआर और सस्पेंशन्स की खबर छपती थी। रिग्ज़्यान की सबसे बड़ी खासियत उनके समस्याओं को सुलझाने के बहुत ही बेसिक मगर कारगर उपाय होते हैं। बहराइच में डीएम के तौर पर उन्होंने बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए बड़ा काम किया।

ऊंचे टीले पर हैंडपंप लगवाए
बाढ़ आने पर सबसे बड़ी समस्या साफ पीने के पानी की होती है। रिग्ज़्य़ान ने इन इलाकों में पिरामिड शेप के ऊंचे टीले बनवाकर हैंडपंप लगवाए। ये उपाय सुनने में जितना आसान लगता है, ज़मीन पर उससे कहीं ज़्यादा कारगर हुआ।
इस आइडिया के चलते रिग़्ज़्यान को लंदन की इकोनॉमिस्ट मैग्ज़ीन ने अपने आर्टिकल में जगह दी थी। दिन में 16 घंटे काम करने वाले और 2003 से 2008 के बीच सिर्फ दो वीकऑफ लेने वाले रिग्ज़्यान को इकोनॉमिस्ट ने दुनिया के सबसे हार्डवर्किंग ब्यूरोक्रैट्स में से एक भी कहा था। रिग्ज़्यान ने इससे पहले राशन की कालाबाज़ारी रोकने का भी एक नया तरीका निकाला था। जैसे ही राशन की दुकानों पर स्टॉक पहुंचता। सारे राशनकार्ड वालों के मोबाइल पर एसएमएस अलर्ट आ जाता। इसके अलावा रिग्ज़्यान दिव्यांगों की मदद के लिए ‘मुमकिन हैÓ नाम का पोर्टल भी चलाते हैं।

खटखटाना पड़ा था कोर्ट का दरवाजा
लद्दाख के राजघराने से ताल्लुक रखने वाले रिग्ज़्यान ने दिल्ली के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रैजुएशन और दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। बचपन में एक ट्रक हादसे में उनका एक पैर मुडऩा बंद हो गया था। 2003 में सिविल सर्विस जॉइन करने के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। परीक्षा में 120वीं रैंक के साथ वो रेवेन्यु सर्विस पाने के काबिल थे, मगर उनके पैर को बहाना बनाकर इन्फॉर्मेशन सर्विस में भेज दिया गया था। जिस के खिलाफ उन्होंने कोर्ट में अपील जीती, बाद में रिग्ज़्यान ने अपने काम से साथ के कई अधिकारियों को पीछे छोड़ दिया।

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