याज्ञवल्क्य मिश्रा
रायपुर.
छत्तीसगढ की सियासत जिस कदर तल्ख और कड़वाहट से लबरेज़ होती जा रही है, वहाँ अगर छत्तीसगढ़ की राजनीति के तीनों ही शीर्षस्थ धु्रव एक साथ मौजूद हों तो नजर भला हटेगी कैसे. आप आगे पढ़ें उसके पहले यह जान लीजिए कि सूबे की सियासत मे तलवारें खींची हुईं हैं.. आरोप प्रत्यारोप के कड़वे दौर के बाद मामला कोर्ट कचहरी एफआईआर मुकदमा की ओर बढऩे लगा है. यूँ समझिए कि समुद्र के उपर सतह भले शांत दिखे पर भीतर तूफ़ान आया हुआ है.
ऐसे में यदि इस तू$फान के प्रतीक तीन धु्रव एक मंच पर नजर आएँ तो वो अनूठा ही होगा न मामला..! सोचिए कि, हालात ऐसे हैं कि विधानसभा में विधायिका के दायित्व निर्वहन के अनिवार्य संयोग को छोड़ दिया जाए, जहाँ पर भी तीनों ध्रुवों के प्रतिमान व्यक्तियों के बीच मर्यादित ही सही मगर जंग छिड़े रहती है.. जिन्हें लेकर यह उम्मीद लगाना कठिन हो कि ये एक साथ अगल-बगल मुस्कुराते बैठ जाएँगे वहाँ यह जादू हो गया कि तीन ध्रुवों ने अपनी साझी उपस्थिति दे दी हो..तो वह शाम कैसे भुलाई जाएगी..।
यह शाम थी हरिभूमि मीडिया समूह के चैनल आईएनएच के टाटा स्काई में लांचिंग के उस मौक़े की.
लेकिन, अगर केवल यह कहा जाए कि लॉंचिंग थी, इसलिए सूबे की सियासत के तीन ध्रुव इक_ा हुए तो यह बात सिरे से गलत होगी. दरअसल यह जादू उसने दिखाया जिसके बारे में यह यक़ीनन ऐसा लिखा जा सकता है. वो शब्दो का ऐसा चितेरा है जो फूल से मार देता है. वो फूल जिनसे चोट नही लगती.. पर यह वह चितेरा है, जो यूँ शब्दों की फूल भरी माला गूँथता है, जो मोहती है.. और पता नही चलता कि ..वाह सी लगती पंक्ति कब मर्म बेधी आह हो जाती है वो भी फूल जैसे शब्दों से. यह हिमांशु द्विवेदी हैं और यह इनकी ही मेज़बानी थी जिसने नामुमकिन की हद तक मुश्किल इस संयोग को मुमकिन करा दिया.
अब राजनीति की इस त्रयी धारा, जिसमें एक का नाम भूपेश बघेल दूसरे डॉ रमन सिंह और तीसरे अजीत जोगी. एक मंच पर अगल-बगल आ जाएँ तो कुछ ना कुछ तो होना था.. और वो हुआ.. जोगी ने मर्मबेधी शब्द बाण छोड़ा तो उन्हे भूपेश से मुस्कुराते चेहरे के साथ जवाब मिला, यह संयोग ऐसा था कि ना तो इसे जोगी भूलेंगे ना भूपेश.. और हाँ वे डॉ रमन तो कतई नहीं.. जो चिर परिचित शालीनता और सौम्यता के साथ मुस्कुराते रहे.
वक्ता आए प्रेमप्रकाश पांडेय.. जिन्होंने दो बाते कहीं.. वे वैसे भी जब कुछ बोलते हैं तो उसके अर्थ गहरे होते हैं.. प्रेमप्रकाश पांडेय ने कहा
कुंभ चल रहा है तीन नदियों का संगम में.. आज एक कुंभ यहाँ भी दिख गया है. तीन लोगों को संगम यहां भी दिख रहा है.
इसके बाद दूसरी बात जो प्रेमप्रकाश ने कही, वह कार्यक्रम का हिट हो गया. बाद में इसका जवाब अजीत जोगी ने दी और फिर मंच में देर तक बल्कि यूँ कहे कि हर वक्ता के लिए जब उसकी बारी आई तो मुस्कुराहट का सबब बनी..
प्रेमप्रकाश पांडेय ने कहा
संयोग ये भी है कि, इन तीन में एक मुख्यमंत्री है.. एक पूर्व मुख्यमंत्री है.. और भूतपूर्व मुख्यमंत्री है..
अजित जोगी शब्दों के जादूगर हैं..उन्होने बात पकड़ी और जब उनकी बारी आई तो उन्हांने कहा
भई, ऐसा है कोई जीवित व्यक्ति भूत नही हो सकता.. तो यह भूत शब्द आपत्तिजनक है. आपको मुझे संबोधन देना ही हो तो.. मैं शब्द बताता हूँ, उसका उपयोग करिए.. छत्तीसगढ का प्रथम मुख्यमंत्री।
जोगी के तुरंत बाद संबोधन की बारी आई शालीन सरल डॉ रमन की.. उन्होने संबोधन में मुस्कुराते हुए कहा, प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी, रमन सिंह के प्रथम कहते ही जमकर ठहाके लगे।
अलबत्ता, इस पर नहले पर दहला जैसा जवाब आया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ओर से.. वे मुस्कुराते हुए आए और उन्होने मंच से कहा
प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी.. और प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जी.
सीएम भूपेश बघेल का यह वो अंदाज था कि मंच और प्रदेश के बौद्धिक प्रबुद्ध जनों की सभा ठहाकों को रोक नही पाई..
लेकिन इसके पहले भी कुछ हुआ.. मंच पर चिर-परिचित परस्पर विरोधी राजनैतिक विचारधारा के प्रतीक तीनों जब मंच पर बैठे थे तो अचानक किसी बात पर बहुत ज़ोर से हँसे. लोग उत्सुक थे कि आखिर हुआ क्या? लोगों की उत्सुकता को शांत किया अजीत जोगी ने. जब जोगी संबोधित कर रहे थे उन्होने संबोधन के दौरान कहा
आप लोग सोच रहे होंगे कि हम सब हँसे क्यों तो मै बता देता हूँ.. दरअसल, जब दीप जला कर मुख्यमंत्री जी लौटे तो मैने पूछा -जला दिया न..!
जोगी के इस ब्यौरे को सून पूरी सभा बहुत ज़ोरों से खिलखलाई .. और जोगी की बातों का मर्म समझ लोग देर तक हँसते रहे.
हालाँकि बाद में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने संबोधन में कहा
जोगी जी वाकपटू हैं, और यह भी है कि, उनके बगैर नही सधता उनके साथ से भी ..उनके भरोसे में कई निपट भी गए.. अब वे बोले जला दिया तो मैने कहा कि दीपक जला दिया.. हालाँकि मुझे लगता है वो हालिया विधानसभा चुनाव को लेकर बोल रहे थे.
मुख्यमंत्री भूपेश का यह बयान एक बार फिर हँसाने के लिए पर्याप्त था. क्योंकि यह बात भी जोगी की उस बात की तरह गहरे असर रखती थी.. जिसमें जोगी जी ने कहा
क्यों जला दिया न.
(साभार)