शहरी-ग्रामीण सत्ता के चुनाव में सरकार की परेशानी का सबब बनेंगे ये मुद्दे
जनचर्चा…
नेशन अलर्ट / 97706 56789 .
विधानसभा-लोकसभा चुनाव के बाद अब शहरी व ग्रामीण सत्ता को लेकर चुनाव होने हैं. इसकी प्रक्रिया शनिवार से शुरू भी हो गई है.
लेकिन जनचर्चा कहती है कि कुछ मुद्दे प्रमुख तौर पर सरकार को परेशानी में डाल सकते हैं. ये मुद्दे कौन से हैं यह जानने हमने जनचर्चा के माध्यम से लोगों से मेल मुलाकात की.
तो हमें जो कुछ पता चला वह आपके सामने है. जनचर्चा के दौरान लोगों ने बताया कि पुलिस भर्ती से लेकर शराबबंदी व धान का मुद्दा सरकार को परेशान करेगा.
लोग कहते हैं कि पुलिस भर्ती होनी चाहिए थी लेकिन उसे रद्द कर दिया गया. थक हारकर कुछ अभ्यर्थी अब हाईकोर्ट की शरण में पहुंचे हैं.
हाईकोर्ट से ही अब न्याय की उम्मीद रह गई है. दरअसल पुलिस भर्ती पुरानी सरकार के समय का फैसला है. नई सरकार आने पर किंतु-परंतु करते हुए इसे निरस्त कर दिया गया.
लगता है यह निरस्तीकरण अब सरकार को महंगा पडऩे जा रहा है. जनचर्चा के मुताबिक दो हजार 259 पदों पर अभ्यर्थियों ने सिपाही बनने आवेदन किया था.
एक आवेदक के पीछे यदि चार, पांच अथवा छ: लोगों का परिवार जोड़ लिया जाए तो क्रमश : 9036, 11295 , 13554 लोग इससे प्रभावित हो गए हैं ऐसा लगता है.
अब यही प्रभावित लोग सरकार के खिलाफ वोट कर सकते हैं. साथ ही साथ इतने हजार परिवारों ने भर्ती प्रक्रिया को लेकर कितना जहर अपने नाते रिश्तेदारों के बीच उगला होगा वह अलग से सरकार के खिलाफ जाएगा.
इसी तरह शराब का विषय है. सरकार ने विधानसभा चुनाव के पहले पूर्ण रूप से शराब बंद करने का वायदा जनता से किया था. लेकिन सरकार में आते आते यह वायदा कहां गया इसकी कोई खोज खबर नहीं है.
आज भी शराब उसी तरह बिक रही है जिस तरह पूर्ववर्ती सरकार के समय बिकती थी. बल्कि ये कहिए कि पूर्ववर्ती सरकार की तुलना में आज ज्यादा काला बाजारी होती है.
लोगों को गांवों में घरों तक शहरों में ठिकानों तक शराब मौके पर उपलब्ध करवाई जा रही है. ऐसा क्यों हो रहा है ? सरकार का तो फैसला था कि वह शराबबंदी करेगी लेकिन उसने ऐसा कुछ किया नहीं.
इससे राज्य की महिला मतदाता ज्यादा प्रभावित नजर आती हैं. महिलाओं को उम्मीद थी कि शराब बंद होगी तो उनका घर परिवार थोड़ा सा सुधर जाएगा. दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया.
जनचर्चा के अनुसार तीसरा मुद्दा इससे भी भारी है. इस मुद्दे से सीधे किसान जुड़े हुए हैं. किसान तो किसान हैं. उसमें क्या कांग्रेसी और क्या भाजपाई ?
धान खरीदी के इस विषय पर जनचर्चा बताती है कि एक तो खरीदने की शुरुआती दिनांक में वृद्धि कर सरकार ने उनके साथ नाइंसाफी की है.
दूसरी ओर समर्थन मूल्य का मामला अलग से है. राज्य सरकार ने वायदा किया था कि वह पच्चीस सौ रूपए क्विंटल में धान खरीदेगी लेकिन खरीद रही है 1815-1835 रूपए में ही.
अब पच्चीस सौ रूपए को लेकर राज्य और केंद्र सरकार आमने सामने हैं. राज्य सरकार का कहना है कि उसे पच्चीस सौ रूपए क्विंटल में खरीदे गए धान को लेने की अनुमति केंद्र से यदि मिल जाए तो वह खरीद लेगी.
जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि समर्थन मूल्य के ऊपर यदि बोनस कोई राज्य सरकार देती है तो वह धान अथवा कोई और फसल नहीं खरीदेगी. यह विषय अब गंभीर हो चला है.
जनचर्चा कहती है कि राजनीतिक लड़ाई अपनी जगह है लेकिन इसमें नुकसान किसानों को हो रहा है. किसान चाहते हैं कि उनका धान पच्चीस सौ रूपए क्विंटल में ही सरकार खरीदे.
किसानों की यह भी चाहत है कि यह पच्चीस सौ रूपए उसे धान बेचते ही साथ मिल जाए लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है. सरकार ने एक समिति बनाकर उसे जिम्मा दिया है कि वह एक रास्ता निकाले कि किसानों को किस तरीके से अंतर की राशि का भुगतान किया जाएगा
इससे किसान आक्रोशित हैं. इसका असर शहरी व ग्रामीण सत्ता के लिए होने वाली जंग में दिखाई दे सकता है. यदि समय रहते इस मसले का हल नहीं ढूंढा गया तो सरकार को परेशानी हो सकती है
जनचर्चा बताती है कि ये तीनों मुद्दे ऐसे हैं जो कि सरकार की नाक में दम कर सकते हैं. सरकार को चाहिए कि वह अभी से इन मुद्दों का निराकरण तलाशना चालू कर दे नहीं तो ऐसा नहीं हो कि सरकार के हाथ से शहरी-ग्रामीण सत्ता निकल जाए.
यक्ष प्रश्न . . .
प्रदेश के किस कलेक्टर को फोन पर दिए गए जवाब के चलते अगले ही दिन हटाया गया था ?