रायपुर।
क्या माओवाद अथवा बस्तर को एसआरपी कल्लूरी से बेहतर कोई और आईपीएस नहीं समझता है…? क्या कल्लूरी के बगैर नक्सलवादी बेकाबू हो गए हैं? क्या कल्लूरी के रहते नक्सली घटनाएं नहीं होती थीं? ये चंद ऐसे सवाल हैं जो कि बुर्कापाल (सुकमा) में हुए नक्सली हमले के बाद घुम-फिर कर सोशल मीडिया में दिखाई दे रहे हैं. कल्लूरी समर्थित संगठनों ने तो उन्हें वापस लाने की मांग भी रख दी है.
एसआरपी कल्लूरी इन दिनों अच्छी व बुरी खबर के कारण चर्चा का विषय रहे हैं. आईपीएस कल्लूरी जब बस्तर के आईजी हुआ करते थे तब वे कई मामलों में घिरे थे. उनके खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लगे थे. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आईपीएस कल्लूरी को तलब भी किया था. इसी दौरान कल्लूरी पहले छुट्टी पर भेजे गए और फिर बाद में उनकी बस्तर से रवानगी ही हो गई.
क्या संदेश चल रहे
सोशल मीडिया पर चल रहे संदेशों में कहा जा रहा है कि बस्तर में आईजी रहते हुये एसआरपी कल्लुरी ने माओवादियों की कमर तोड़ दी थी. पिछले 30 सालों में सबसे अधिक मुठभेड़ और सबसे अधिक आत्म समर्पण कल्लुरी के कार्यकाल में हुये हैं. कहीं गंभीरता के साथ तो कहीं जुमले के बतौर नारे लिखे जा रहे हैं-सिंघम की वापसी की मांग तेज होती जा रही है. बस्तर से राजधानी तक नारे लग रहे-कल्लूरी को वापस लाओ.
दूसरी ओर 6 अप्रैल, 2010 को सुकमा में 76 सीआरपीएफ जवानों की मौत की भी याद दिलाई जा रही है. उस समय शिवराम प्रसाद कल्लुरी दंतेवाड़ा में डीआईजी पुलिस थे. सोशल मीडिया में सवाल उठ रहा है कि कल्लुरी माओवादी हमलों के इतिहास के इस सबसे बड़े हमले के लिये जि़म्मेवार हैं.
97 फीसदी समर्पण खारिज
एक संदेश में लिखा गया- 30 मार्च 2016 को दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 7 जवान शहीद हुए, 11 अप्रैल 2015 को कंकेरलंका में एसटीएफ के 7 जवान शहीद हुये, 13 अप्रैल 2015 को किरंदुल में सीएएफ के 5 जवान मारे गये, 17 मई को बीजापुर में 3 जवान, 15 जुलाई को बीजापुर में ही 4, 2015 में 41 जवान और 2016 में 36 जवान शहीद हुये. इन तमाम शहादत के समय शिवराम कल्लुरी ही बस्तर के आईजी पुलिस थे.
जवाब में दूसरे आंकड़े भी गिनाये जा रहे हैं कि किस तरह शिवराम प्रसाद कल्लुरी के समय बस्तर में 1900 से भी अधिक खूंखार माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया. जवाब में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि लेकिन राज्य सरकार की अपनी ही कमेटी 97 प्रतिशत लोगों के समर्पण को खारिज क्यों कर देती है?
गाली-गलौच से इतर होने वाली इन बहसों में कई तथ्य सामने आ रहे हैं, आंकड़े तैयार हो रहे हैं लेकिन इन सारी बहसों में जो खास बात है, वो ये कि माओवादियों के खिलाफ सब तरफ गुस्सा है. बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो चाहते हैं कि इस बार आर या पार की लड़ाई हो और इसके लिये बस्तर की कमान फिर से शिवराम प्रसाद कल्लुरी को सौंपी जाये.